श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “प्रेमी गोपाल” – एक झाँकी !!
भाग 1
प्रेम की गली बहुत संकरी है ……उसमें एक ही जा सकते हैं ।
प्रियतम का चिन्तन करते हुये वो प्रेमी भी अपनें आपको भूल जाता है ……फिर जब सामनें प्रियतम हो…..तब तो मात्रप्रिय ही है ….प्रेमी खो गया मिट गया……ये प्रेम गली है ही ऐसी ।
“सुनो ! इस गाय को उस स्थान में बाँध दो…….और उस भूरी को उधर”………….श्याम सुन्दर गौचारण करके गोष्ठ में आगये हैं ……..अपनें सखाओं को कह रहे हैं ……..समझा रहे हैं …………कि किस गौ को किस स्थान पर बाँधना है ।
“आहा ! सखी देख तो कितनें सुन्दर लग रहे हैं श्याम सुन्दर ……..हृदय से चरणों तक झूलती वनमाला ……और सिर में ?” श्रीराधारानी अपनी सखियों के साथ गोष्ठ में आचुकी हैं ……….और दूर खड़ी होकर श्याम सुन्दर को निहार रही हैं ।
सिर में ………….. गाय के खुर को बाँधनें की जो रस्सी होती है ना …….दूध दुहते समय गौ लात न मारे इसके लिये बाँधा जाता है ….उस रस्सी को श्याम सुन्दर नें अपनें सिर में बाँध रखा है ………पीताम्बरी को कमर में कस लिया है ……………और अपनी प्यारी गौ के पास बैठ गए हैं …………..मुस्कुराता उनका मुखारविन्द है ………..
“नही नही ……..अभी बछड़ों को मत हटाओ ……उन्हें भरपेट दूध पीनें दो …..जब स्वयं मुँह हटा लें तब दूध दुहना ……ग्वालों को कह रहे हैं श्याम सुन्दर ……..और हाँ …पहले शीतल जल से थन को धोना ….फिर दुहना …………अद्भुत ! श्याम सुन्दर सबको समझा रहे हैं ।
अच्छा भैया ! अब तू हमें सिखाएगा ? हमारे सामनें तू नंगा डोलता था …….मधुमंगल सखा श्याम सुन्दर को हँसते हुए बोला ।
श्रीराधारानी और सभी सखियाँ हँसीं …..खूब हँसी ……सखा भी हँसे ।
*क्रमशः….


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