Explore

Search

July 20, 2025 9:06 pm

लेटेस्ट न्यूज़
Advertisements

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!!”चीरहरण” – प्रेम की ऊँचाई में..!!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!!”चीरहरण” – प्रेम की ऊँचाई में..!!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!!”चीरहरण” – प्रेम की ऊँचाई में..!!

भाग 2

उद्धव बोले – तात ! गोपियों के अनुष्ठान को अपूर्ण करनें की ताकत है किसी में ? स्वयं देवी कात्यायनी में भी नही है ।

अब दर्शन करो – “उन गोपियों नें सुन्दर पवित्र हृदय से कात्यायनी भगवती की आराधना अनुष्ठान प्रारम्भ की थी ….एक महिनें तक का अनुष्ठान था उनका …….पूरा मार्गशीर्ष महीना ।

वैसे तात ! श्रीकृष्ण प्रथम दिन ही उनकी कामना पूरी कर सकते थे ….पर नही किया …..कारण ? कारण ये कि …..जितना विरह प्रियतम के लिये हृदय में जलता रहेगा उतना ही प्रेम और और पक्व होकर मधुर बन जाएगा ……….प्रेम मार्ग में प्रतीक्षा की बड़ी महिमा है ।

प्यारे के निरन्तर स्मरण से हृदय के समस्त अशुभ नष्ट हो जाते हैं ……..मलीन वासनाएं हृदय में जन्मों जन्मों के जमा हैं ……सूक्ष् रहती हैं वे वासनाएं …….वे भी जल जाएँ …….ऐसी कृपा करके एक महिनें तक श्याम सुन्दर नें गोपियों को अनुष्ठान करनें दिया ।

आज अंतिम दिन है……ब्रह्ममुहूर्त से भी पूर्व 3 बजे ही आगयीं सब गोपियाँ, यमुना के घाट पर ……वस्त्रों को रख दिए किनारे में ….तात ! ये घाट स्त्रियों का था …और अन्धकार भी होता ही है उस समय ……क्यों की सुबह के तीन बज रहे थे …इस समय कौन आएगा वहाँ ?

सम्पूर्ण वस्त्रों को उतार कर ……सब गोपियाँ खिलखिलाती हुयी यमुना में उतरीं…….खेलनें लगीं यमुना में……हाय ! उस दिन की बात !

एक गोपी बोलनें जा रही थी , पर चुप हो गयी !

यमुना जल को उछालती हुयी दूसरी गोपी बोली ……….बता ना ! क्या हुआ था उस दिन ? क्या तुझे भी छेड़ दिया था उस प्यारे नें ।

अरी ! छेड़ा कहाँ ………..हद्द कर दी थी उस दिन …….वैसे बात तो दो वर्ष पूर्व की है । ….वो सखी दो वर्ष पहले की बात बता रही थी ।

सब गोपियाँ उसके पास आगयीं ………बता ना ?

खेल रहे थे अपनें सखाओं के साथ गेंद श्याम सुन्दर ………..फिर चुप हो गयी वो सखी ……..अरी ! बोल ! हमसे कहा लाज ?

गेंद खो गया खेलते हुए ………कहीं चला गया होगा ………..मैं उधर से गूजरी तो मेरे पीछे ही पड़ गया वो साँवरा ! क्या कहके ? दूसरी गोपी नें पूछा ।

“मेरी गेंद तेनें छुपा ली है” ………हाय ! सब गोपियाँ हँसनें लगीं …….जोर जोर से हँसनें लगीं ………..उनकी खिलखिलाहट से वातावरण प्रेमपूर्ण हो गया था ।

फिर क्या कहा तेनें ?

जब हँसी कुछ रुकी तब एक गोपी नें पूछा ।

मैं क्या कहती पागल ! मैं तो लाज के मारे !

कुछ देर रुक कर वो सखी फिर बोली ………….मुझ से कह रहा था ! तेनें दो दो गेंद क्यों छुपाएँ हैं !

गोपियों की हँसी अब फूट पड़ी थी………कोई हाय ! हाय वीर ! कहकर शरमा रही थीं तो कोई – नटखट नें कुछ और तो नही किया ? ये कहकर उस सखी को छेड़ भी रही थीं ।

यहाँ होता ना ! मैं तो उसे बताती ………..एक गोपी को काम ज्वर चढ़ गया था ………..मैं उसके गालों को पकड़ कर …..वो बस इतना ही बोल पाईँ ……फिर तो दस बीस डुबकी एक साथ लगानें लगी वो यमुना में ।

अरी ! ज्यादा डुबकी मत लगा….सर्दी है, कहीं सर्दी गढ़ लग गयी तो !

गढ़ तो श्याम सुन्दर गया है , हाय ! सर्दी की क्या मज़ाल की वो गढ़ जाए ………..

हाँ , गर्मी चढ़ रही है तुझे तो वीर ! लगा डुबकी …………ये कहते हुए सब गोपियाँ भी डुबकी लगानें लगीं …………एक दूसरे पर जल उछालनें लगीं ………..कमल पुष्प को तोड़कर एक दूसरे पर फेंकनें लगीं ।

कमल के पराग चारों ओर फ़ैल रहे थे ……..उनकी सुगन्ध से वातावरण और मादक हो चला था …..उफ़ !


ओह ! सखी ! बहुत समय हे गयो ……अब तो यमुना जल से बाहर निकलो ! एक गोपी सबको समझानें लगी ।

और कात्यायनी भगवती की पूजा भी तो करनी है …………फिर मन्त्र का जाप भी …………चलो चलो ! सब गोपियाँ ये कहते हुए जैसे ही बाहर आनें को उद्यत हुयीं …………..वस्त्र कहाँ हैं हमारे ? एक गोपी नें देखा किनारे पर वस्त्र ही नही है ।

फिर जल में बैठ गयीं शरमा कर……..वस्त्र कहाँ है ? एक दूसरी से पूछनें लगीं ….बन्दर ले गए ? नही नही …इतनें सुबह कहाँ बन्दर ?

आँधी आई नहीं ……तूफ़ान आया नही ……फिर वस्त्र कहाँ गए ?

तभी – वो देखो ! एक गोपी नें दिखाया ऊपर …….कदम्ब का वृक्ष था एक पुराना ……..वो वृक्ष यमुना के तट पर ही था ………..उसकी एक डाली यमुना के मध्य तक गयी थी ……………

श्याम सुन्दर ! हाय ! ये कैसे आगये ? सखियाँ मत्त हो यमुना में अपनें अंगों को छुपा रही थीं ।

पर श्याम सुन्दर नें कदम्ब के चारों ओर गोपियों के वस्त्रों को लटका दिया है …..लहँगा , फरिया सब इधर उधर ……और स्वयं उस डाल पर लेट गए हैं उल्टे …..और नीचे देख रहे हैं अपनी प्यारी गोपियों को ….कि मेरे बारे में ये क्या क्या कहती रहती हैं ।

गोपियाँ आनन्दित हैं ……अति आल्हादित हैं ……….क्यों की अनुष्ठान पूर्ण हुआ है इनका ……….ये जिसको चाह रही थीं ……वो स्वयं प्रकट हो गया था ……”जिससे” माँग रही थीं नन्दनन्दन …..वो भगवती नही प्रकट हुयीं …..बल्कि “जिसे” माँग रही थीं वो प्रकट हो गया ….आहा !

उद्धव की वाणी अवरुद्ध हो गयी आज ……….वो प्रेम के रस में सरावोर होगये थे …….”ये प्रेम की ऊँचाई इन गोपियों की” ……इतना ही बोल सके उद्धव………फिर मौन हो गए ।

सच ! प्रेम अनुभूति है ……..शब्द से परे ।

admin
Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

Leave a Comment

Advertisement
Advertisements
लाइव क्रिकेट स्कोर
कोरोना अपडेट
पंचांग
Advertisements