श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! महारास की पूर्व भूमिका – “चीरहरण प्रसंग” !!
भाग 1
प्रेम के साधक इस साधना में अपनें को खपा देते हैं ……..
ये साधना है प्रतीक्षा की साधना । प्रतीक्षा ! हाँ ……..पत्ता भी हिले तो लगे वो आया ……..आहट भी हो तो लगे वो आया ……नभ में बादल भी छा जाएँ तो लगे वो आया ………हर पल हर क्षण “वो आया” की रट साधक लगाता रहता है …………….
तात ! प्यारे की प्रतीक्षा कितनी सुखद और आनंददायी है ….ये तो प्रतीक्षा में बैठे प्रेमियों को ही पता है ………..दिन गिनना, आशाओं को लेकर दिन गिनना ……कोई पल ऐसा नही जाता जिसमें प्रियतम की सुखद स्मृति न हो ……….पर तात ! उद्धव इतना ही बोल पाये ।
विदुर जी नें उद्धव से पूछा था – क्या गोपियों को कोई वर प्राप्त हुआ श्याम सुन्दर से ? या कोई आश्वासन ?
हाँ तात ! वर मिला बृजांगनाओं को श्याम सुन्दर द्वारा ।
“मैं आनें वाली शरद में तुम्हारे साथ महारास करूँगा ! बस उस समय तक तुम प्रतीक्षा करो ” ।
उद्धव प्रसंग सुनानें लगे थे यमुना के तट पर ।
गोपियाँ भींगी हुयी हैं ………श्याम सुन्दर नें वस्त्र दिए गोपियों नें वस्त्र धारण किये थे………लजा रही हैं अभी भी ये गोपियाँ ।
दृष्टि नीचे है इनकी………प्रिय के दर्शन करके मुखमण्डल लाल हो गया है…….हल्की मुस्कुराहट मुख में है…………
इनके संकोच को हटाया श्याम नें……और प्रगाढ़ आलिंगन में भर लिया था ।
स्त्रियों में लज्जा पुरुषों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही होती है …….बिना प्रिय के आगे बढ़े वे आगे बढ़ती नही हैं ।
पर अब तो खुल गयीं ……क्यों की कमल की सुंगध लिए श्याम सुन्दर की भुजाओं नें कस लिया था इन्हें ।
गोपियाँ अब चरणों में बैठ गयीं …….उनके नेत्रों से प्रेमाश्रुओं की धार बह चली थी …….चरणों को ही निहारती रहीं वे सब ।
क्या चाहती हो ? कमल नयन नें पूछा ।
आपके ये चरणारविन्द !………एक गोपी बोली ……..दूसरी को अवसर मिला तो उसनें कहा – इन कोमल कोमल चरणों को अपनें वक्ष में रखना चाहती हैं ………पर डरती हैं प्रिय ! कि हमारे वक्ष तो कठोर हैं ……..पर आपके चरण ! ओह ! माखन से भी कोमल ।
*क्रमशः …


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