श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “प्रेमधर्म” सब धर्मों से श्रेष्ठ है” – माथुर ब्राह्मणियों पर कृपा !!
भाग 2
कानों में कमल के कुण्डल हैं …….उनकी घुँघराली अलकें उनके कपोलों पर लटक रही हैं । आहा !
उन ब्राह्मणियों नें कन्हैया के इस प्रेमपूर्ण झाँकी का जब दर्शन किया ……मुग्ध हो गयीं……..कुछ देर तक तो उन्हें देहभान भी न रहा ………वो चाहती थीं की आलिंगन करूँ नन्दनन्दन को…… चाहती थीं कि वे वृन्दावन बिहारी को …….उनकी सुरभित भुजाएँ इनके गले में पड़ें…….पर – देह भान भूल कर स्तब्ध हो निहारती रहीं वे सब ।
कुछ खिलाओगी भी या ऐसे ही देखती रहोगी ?
मनसुख नें उन ब्राह्मणियों को झंकझोरा ।
तब नन्दनन्दन को खीर अपनें हाथों से खिलानें लगीं ये सब ………….कोई भात और साग खिला रही हैं …….कोई हलुआ लाइ थी वो खिलानें लगी ।
मुग्ध हैं सब …….कुछ भान नही है इनको …..ये सब भूल चुकी हैं ।
सन्ध्या की वेला हुयी …….तब श्याम सुन्दर उठे ……और मुस्कुराते हुए बोले – आप लोग अब अपनें अपनें घरों में जाओ !
घरों में ? हँसी सब ब्राह्मणियां ………कौन सा घर ? कैसा घर ?
अब तो ये चरण ही हमारे घर हैं ………हम इनको छोड़कर कहीं नही जाएंगीं ……..हे नाथ ! हमें अपनें चरणों से दूर मत करो !
नेत्रों से अश्रु झरनें लगे उन ब्राह्मणियों के ।
पर हमारे पति हमें अब स्वीकार नही करेंगे । यज्ञ पत्नियों नें कहा ।
अरे ! स्वीकार की बात करती हो……..प्रेम और बढ़ेगा तुम्हारे प्रति तुम्हारे पतियों का…..श्रद्धा बढ़ेंगी…….तुम जाओ तो ।
नन्दनन्दन नें समझाया…..लौटनें की इच्छा नही थी इन सबकी……पर लौट गयीं………….।
सामनें खड़े हैं इनके पति …………….डर रही थीं ये सब माथुर ब्राह्मणियाँ, पर एक अद्भुत घटना घट गयी ।
सब पतियों नें अपनी पत्नियों को हाथ जोड़कर प्रणाम किया ………अपनी पत्नियों के प्रति उनके मन में श्रद्धा जाग गयी थी ।
वे सब ब्राह्मण आपस में कह रहे थे …….यज्ञ हमनें किया ……..पर उसका फल तो इन्होनें प्राप्त किया ……….हमनें तो “स्वाहा स्वाहा” करके धूआँ मात्र उड़ाया ……..पर सर्वोच्च पुरुषार्थ प्रेम को तो इन्होनें ही पाया है ………यज्ञ का फल श्रीकृष्ण ही तो हैं ……….जो हमें नही इन्हें मिला है …….ऐसा कहते हुए सबनें अपनी पत्नियों को प्रणाम किया …..और ये भी कहा साथ में …….प्रेम धर्म ही सर्वोच्च धर्म है ।
कन्हैया भी अपनें सखाओं के साथ नन्दगाँव पहुँच गए थे ।
तात !
उद्धव नें ये प्रसंग भावपूर्ण होकर विदुर जी को सुनाया ।
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