श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! उपासना किसकी, देवता की या भक्त की – “गोवर्धन पूजन” !!
भाग 1
हाँ तात !
उपासना किसकी ? एक अहंकारी देवता की या एक भक्त की ?
उद्धव पूछते हैं ।
देवता में अच्छाई के अहंकार हैं पर भक्त तो भाव और प्रेम के कारण नम्र है........फिर किसकी उपासना एक अहंकार की या भाव और प्रेम से झुके प्रेमी हृदय की ?
देवता तो कोई भी हो सकता है …….पर भक्त होना अपनें आपमें धन्यता है……भक्त के होनें से ही पृथ्वी धन्य हो जाती है….भक्त के कारण ही वायुमण्डल भावपूर्ण हो उठता है ।….उद्धव विदुर जी को बता रहे हैं ।
कार्तिक का महीना प्रारम्भ हुआ ही था ………..शीत ऋतु के आगमन की तैयारी थी ……..वातावरण बड़ा ही सुखप्रद हो उठा था ।
सात वर्ष के कन्हाई हो गए हैं ……….बृज मण्डल कन्हैया की इस अवस्था पर इठला रहा था ……….गौएँ चरानें आज नही गए कन्हैया ……..बस इधर उधर घूमते रहे दिन भर ……………फिर घर में आगये थे ……उनके साथ उनके सखा भी थे …..भूख लगी है कन्हैया को ।
मैया मैया ! कुछ खानें को दे ना !
रसोई में मैया यशोदा थीं उनके पास गए और कुछ माँगनें लगे थे ।
कुछ नही है, बाहर जा ! मैया नें कन्हैया को बाहर जानें को कहा ।
“पर तू पकौड़ी बना तो रही है” ……..तल रही थीं पकौड़ी यशोदा जी ।
हाँ , पकौड़ी बना रही हूँ पर भगवान के लिये …..तेरे लिए नही …..और पहले हमारा भगवान भोग लगायेगा फिर तू ……समझे ?
आज स्वभाव में कुछ तेजी थी मैया यशोदा के ।
पर – एक पकौड़ी ! छूनें ही जा रहे थे कन्हैया ।
मैने कहा ना ! छूना नही ……ये भगवान के लिए है ।
हँसे कन्हैया ……मैया बृजरानी को रोष हुआ ………हँसता क्यों है ?
क्यों की मैं ही तो हूँ सबसे बड़ा भगवान …….फिर ये दूसरा भगवान कौन आया है मेरे घर ? कन्हैया हँसते रहे ।
मैया यशोदा को पकौड़े तलनें थे इसलिये ज्यादा कुछ न बोलकर वो अपना काम करनें लगीं…..तभी कन्हैया नें एक पकौड़ी को छू लिया ।
रोष में आकर मैया यशोदा नें एक चपत कन्हैया के गाल में लगा दिया था……रोनें लगे कन्हैया…….यशोदा मैया नें रसोई से बाहर निकाल दिया कन्हैया को……वे रोते रोते बाबा बृजराज के पास गए ।
*क्रमशः ….
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