श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! गोवर्धन को जाऊँ मेरी वीर – “गोवर्धन पूजन” !!
भाग 5
आहा ! महामहोत्सव का रूप ले लिया था “गोवर्धन पूजन” नें ।
कितनें सरल और निर्दोष थे ये सब बृजवासी …….प्रेम करते थे अपनें कन्हैया से……फिर जहाँ प्रेम होता है वहाँ प्रेमी की हर बात स्वीकार होती ही है……एक बार श्रीकृष्ण नें कहा……अपनें देवता को त्याग दो और मेरे देवता गोवर्धन की पूजा करो……त्याग दिया ।
देवता उत्पात मचायेगा……वज्रपात करेगा…..प्रलय ले आएगा …….
अब कुछ भी करे …….कन्हैया की बात हमें माननी ही है ……….क्यों की प्रेम है । उद्धव स्वयं उत्सव मूर्ति हैं…..आज इस उत्सव की लीला गाते हुये उद्धव आनन्दित हो उठे थे ।
तात ! प्रेम के लिये तात मात सुत दारा गृह – इन सबको छोड़ते तो देखा गया है ……पर इन बृजवासियों नें तो अपनें देवता को ही त्याग दिया …….प्रेम जो करवाये कम ही है – ये कहते हुए उद्धव हँसे ।
अमावस्या कल ही तो थी …….कार्तिक अमावस्या ……….क्या जगमग कर उठा था पूरा बृजमण्डल ……..दीप मालिकाएँ जगमगा उठीं थीं ।
आज प्रतिपदा है ……..कन्हैया नें अमावस्या के दूसरे दिन का ही मुहूर्त बताया था समस्त बृजमण्डल को …………..
प्रातः उठकर स्नान किया बृजरानी नें ………….सुन्दर इत्र फुलेल लगाया …………लाल सुन्दर साड़ी पहनी …………..केशों को बांध कर जूड़ा बनाया ……..गजरा और लगा दिया उसमें ।
लाल बड़ी सी बन्दी माथे में ………आँखों में कजरा ।
कन्हैया को अच्छा लगता है उसकी मैया सजी धजी रहे ………..इसलिये ही ये सजती है …………..
“बहुत सुन्दर लग रही हो …….ऐसी लग रही हो जैसे मैं अभी तुम्हे ब्याह करके लाया हूँ” …………..हँसते हुए बृजराज नें बृजरानी को छेड़ा …….शरमा गयीं बृजरानी …….लाल मुखमण्डल हो गया था उनका ।
“बच्चों के सामनें आप कुछ भी बोलते हो “! यशोदा मैया अभी भी शरमा रही हैं …….गोरी मैया शरमाते हुये बहुत अच्छी लगती हैं ।
आप तो तैयार ही नही हुये ? बृजराज को देखकर मैया बोलीं ।
आइये इधर …………सुन्दर रेशमी पीली धोती बृजराज को दी ……..फिर वैसी ही बगलबन्दी ऊपर ………सुन्दर पटका जिसमें अद्भुत मोतियों का काम हुआ है ……….सिर में पगड़ी, हीरे की कलँगी उसमें और लगा दी………बाबा नें आज आभुषण धारण किये ……गले में मोतियों की माला….हाथों में सोनें के कडुवा…..हीरे उसमें जड़े हुए थे ।
और मस्तक में केशर का तिलक ……………
बाबा हँसे ……….बृजरानी ! अब बाहर आजाओ …………..लोग आगये हैं बाहर ………..और फिर बरसानें के बृषभान जी को भी तो लेकर चलना है और उनके साथ भी सुना है पूरा बरसाना ही चलेगा गोवर्धन पूजन के लिये ।
ये कहते हुये बृजराज बाहर आगये ……..बाहर कन्हैया हैं ……..गम्भीर हैं आज ………सब कन्हैया से ही पूछ रहे हैं ………….
कृष्ण ! कृष्ण ! महर्षि शाण्डिल्य पधार चुके थे उन्होंने कन्हैया को बुलाया ………..कन्हैया तुरन्त दौड़े हुये आये……..आज्ञा महर्षि ! सिर झुकाकर पूछा ।
*क्रमशः ….


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