*श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! गोवर्धन को जाऊँ मेरी वीर – “गोवर्धन पूजन” !!
भाग 6
बाबा हँसे ……….बृजरानी ! अब बाहर आजाओ …………..लोग आगये हैं बाहर ………..और फिर बरसानें के बृषभान जी को भी तो लेकर चलना है और उनके साथ भी सुना है पूरा बरसाना ही चलेगा गोवर्धन पूजन के लिये ।
ये कहते हुये बृजराज बाहर आगये ……..बाहर कन्हैया हैं ……..गम्भीर हैं आज ………सब कन्हैया से ही पूछ रहे हैं ………….
कृष्ण ! कृष्ण ! महर्षि शाण्डिल्य पधार चुके थे उन्होंने कन्हैया को बुलाया ………..कन्हैया तुरन्त दौड़े हुये आये……..आज्ञा महर्षि ! सिर झुकाकर पूछा ।
गोवर्धन की पूजा किस विधि से की जाए ?
हे गुरुदेव ! गोवर्धन पर्वत स्वयं नारायण के स्वरूप हैं ………..इसलिये तुलसी , तुलसी की मञ्जरी …….यमुना जल , दूध दही घी मधु शर्करा इन सबसे गिरी गोवर्धन की अर्चना की जाए ।
नारायण , विष्णु, हरि, माधव केशव इन्हीं नामों का उच्चारण करते हुए गिरिराज गोवर्धन का पूजन हम सब करें ।
मुस्कुराकर महर्षि शाण्डिल्य नें श्रीकृष्ण की बात स्वीकार की ।
चलो ! चलो ! अब गाड़ियों को सजाया जाए……….कन्हैया प्रणाम करके महर्षि के पास से चले गए और दूसरी ओर जाकर बैलगाड़ियों को भी सजानें की व्यवस्था में स्वयं लग गए थे ।
गायों को सजाना है ना कन्हैया ? बलभद्र भैया नें आकर पूछा ।
हाँ …दाऊ ! उन्हें तो मुख्य सजाना है……उनको नहलाओ…..फिर हल्दी की छाप उनपर लगाओ…….सुवर्ण से उनकी सींग सजाओ …….चाँदी उनके खुर में लगाओ …….पीला वस्त्र उन्हें उढ़ाओ ।……बड़े भैया बलभद्र को समझा कर भेज दिया था कन्हैया नें
देखते ही देखते सहस्त्रों बैलगाड़ियाँ तैयार हो गयीं थीं ….गायों को स्वयं बलराम जी नें सजाया था ।
बैलगाड़ियों में छप्पन भोगों को रखा गया – छप्पन भोग, एक एक भोग, छप्पन प्रकार के थे …….अब सब अपनी अपनी बैलगाड़ियों में बैठ गए ……..सज धज कर आगे बृजपति ही चले …. भाई उपनन्दादि उनके साथ थे ………..
कन्हैया अपनें सखाओं के साथ बैठे …………इसी बैलगाडी की सबसे ज्यादा शोभा हो रही थी जिस में श्रीकृष्ण विराजे थे ।
बरसानें से होकर जायेगें ये सब गोवर्धन के लिये ………..बरसानें वाले प्रतीक्षारत हैं………….जैसे ही गाड़ियाँ बरसानें से गूजरी सब आनन्दित हो उठे …….बृषभान जी और बृजराज दोनों गले मिले ……….बृजरानी और कीर्ति रानी दोनों प्रेम भाव से मिलीं और साथ में ही बैठीं ।
बृषभान नन्दिनी अपनी अष्टसखियों के साथ बैठीं हैं …………श्याम सुन्दर को निहार रही थीं पर जैसे ही श्याम सुन्दर नें श्रीराधारानी को देखा ………श्रीराधा नें दृष्टि घुमा ली ।
अब तो बैलगाड़ियों की लाइन बहुत लम्बी हो गयी थी ……पर दूर से देखनें में अद्भुत छटा लग रही थी इन सबकी ……….पीले पीले रेशमी वस्त्रों से सजे थे सारे बृषभ ।
गीत गाते हुए ……..जयजयकार करते हुए सब गोवर्धन की ओर चले जा रहे हैं……आनन्दित हैं सब ……….उत्साह उमंग अद्भुत है सबमें ।
बोलो – “गोवर्धन नाथ की” …….कन्हैया नें कहा ……..तो पीछे से सब बृजवासी बोल उठे – “जय जय जय जय” ।
गोर्वधन में पहुँचकर साष्टांग प्रणाम स्वयं कन्हैया नें किया था ।
बस – फिर तो सब प्रणाम करनें लगे थे गिरी गोवर्धन को ।
महर्षि शाण्डिल्य नें पुरोहित अब कन्हैया को ही बना दिया ……….
महर्षि भी कन्हैया से ही पूछ रहे थे…क्या करना है ….क्या नही करना ।
पूजन की विधि जैसे शालग्राम भगवान की होती है वैसे ही हो रही थी ।
चौंसठ सुवर्ण के दोनों में यमुना जल डालकर उसमें तुलसी दल छोड़कर उन्हें पँक्ति बद्ध रखा गया था ………गोपियों को पूजन की आज्ञा नही दी गयी तो कन्हैया नें महर्षि शाण्डिल्य से कहा …..महर्षि ! ये इन्द्र याग नही है ………ये गिरी गोवर्धन की अर्चना है ….इसमें सबको अधिकार मिले ………..महर्षि नें स्वीकृती दी ।
अब तो सब गोपियाँ भी उत्साह से गोवर्धन का पूजन करनें लगीं थीं ।
बोलो – गिरिराज गोवर्धन की …….जय जय जय जय !
मनसुखा नाचते गाते बीच बीच में जयकारा लगा रहा था ।
*क्रमशः …
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