श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! छप्पन भोग की झाँकी – “गोवर्धन पूजन” !!
भाग 1
महर्षि ! आप पुरुषसूक्त का पाठ करें …..आपके साथ द्विजवर्ग भी जो आया हुआ है यहाँ, वो भी पाठ करेंगे ……उस समय यमुना जल से अभिषेक होगा गिरिराज गोवर्धन का ।
नन्दनन्दन नें हाथ जोड़कर महर्षि शाण्डिल्य को निवेदन किया था ।
इतनौ जल ? सात कोस के हैं तेरे गिरिराज भगवान ! इतनौ जल कौन लावैगो ? और यमुना जी तनिक दूर पे हूं हैं ।
मनसुख नें साफ मना कर दिया ।
महर्षि की ओर से मुड़कर मनसुख की ओर देखा कन्हैया नें ………अरे ! इतने ग्वाल बाल हो तो सही ……लै आओ जल !
श्रीदामा नें कहा – सात कोस के तेरे भगवान हमारे जल लावै तो भींग जांगे ? लाला कन्हैया ! इतनौ जल यमुना जी ते नही आ पावैगो !
अच्छो ? सोचनें लगे कन्हैया ।
रुको !
एकाएक तेजपूर्ण मुखमण्डल हो गया कन्हैया का …….उनके नेत्र बन्द थे ……..वो एक एक नाम का स्मरण कर रहे थे ……और उनके नाम लेनें मात्र से वो उपस्थित ।
गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी , गोमती, गोदावरी, मन्दाकिनी, अलकनन्दा, गण्डकी ……….इन सब नदियों का स्मरण किया बस – सब उपस्थित थीं वहाँ ।
देखते ही देखते …….एक दिव्य कुण्ड प्रकट हो गया………
महर्षि शाण्डिल्य नें उस जल का छींटा लिया स्वयं ……….आनन्दित होकर बोले – इसमें तो सम्पूर्ण तीर्थों का जल है ……….विश्व की सारी नदियों का जल इसमें समाया हुआ है………आचमन किया महर्षि नें …………और मुस्कुराते हुये उस कुण्ड का नाम भी रख दिया ……….
“मानसी गंगा”……क्यों की नन्दनन्दन नें अपनें मन से इन गंगा जी को प्रकट किया था ….इसलिये नाम रखा मानसी गंगा ।
अब तो सब बृजवासी आनन्दित हो मानसी गंगा से ही जल लेकर गोवर्धन महाराज पर चढानें लगे……….सात कोस के गिरी गोवर्धन का अभिषेक भी देखते ही देखते सम्पन्न हो गया था ।
चन्दन लगाया गोवर्धन को………..साष्टांग सबनें प्रणाम किया ।
अब ? सब मुड़े कन्हैया की ओर ।
अब क्या ! छप्पन भोग लगेगा गोवर्धन महाराज को ।
कन्हैया नें कहा ………और साथ ही साथ अपनें सखाओं को कहा ……..भोग के जितनें थाल हैं सबमें भोग सजाकर लाओ ….और यहाँ गोवर्धन भगवान के सामनें रख दो ……….सजाकर रखना ……पँक्ति बद्ध करके रखना …………..
कन्हैया की बात मानकर सब ग्वाले बैलगाड़ियों में चले गए …..उनमें रखे हुये थे भोग के थाल ……..उन्हीं थालों में विभिन्न प्रकार के भोग थे ……बस पँक्तिबद्ध खड़े हो गए सब…….एक ग्वाला दूसरे को थाल पकड़वाता है……..दूसरा तीसरे को …….ऐसे करके थाल को सजाया गया……..एक भोग छप्पन प्रकार के थे……..गिनती करनें के लिये जो ग्वाला बैठा था वो भी भूल रहा था, इतनें पदार्थ हो गए ।
*क्रमशः ….


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877