श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! सात कोस की परिक्रमा – “गोवर्धन पूजन” !!
भाग 2
ये तो लड़कियों के कुण्डल हैं ………कन्हैया हँसे ।
हाँ, तो मेरी भाभी को पहना देना……….मनसुख सहजता में बोला ।
तेरी भाभी ? हाँ मेरी भाभी ! ला दे कुण्डल …..मैं उसी को दे देता हूँ ……ये कहते हुए श्रीराधा रानी के पास मनसुख गया और उनके हाथों में दे दिया…….लाल मुख मण्डल हो गया था श्रीराधारानी का शरमा गयीं थीं वो ।
हे बृजवासियों ! वर माँगों मैं तुम सबसे बहुत प्रसन्न हूँ ।
गोवर्धन नें अब भोग पानें के बाद सब से वर माँगनें के लिये कहा ।
तात ! अद्भुत बात ये हुयी वहाँ ……सबनें यही वर माँगा की कन्हैया के प्रति हमारा प्रेम ऐसे ही बढ़ता रहे ……..कन्हैया ही हमारा एक मात्र प्रिय हो ।…….उद्धव विदुर जी को ये कथा सुना रहे हैं ।
श्रीराधारानी नें हाथ जोड़कर और नेत्रों को बन्दकर के माँगा कि …….मेरा सुहाग श्रीकृष्ण ही बनें …………
मैया यशोदा नें माँगा – मेरे लाला पर कभी कोई विपदा न आये ।
पर कुल मिलाकर सबनें श्रीकृष्ण के लिये ही माँगा …….क्यों कि श्रीकृष्ण के सिवा इनका कोई है ही नही ।
“तथास्तु”………कहकर गोवर्धन महाराज अंतर्ध्यान हो गए थे ।
पर एक आश्चर्य हो गया …….इस आश्चर्य से मनसुख बड़ा प्रसन्न है ।
सब लोग सोच रहे थे सारा का सारा भोग गोवर्धन महाराज पा लेंगे …और पा भी लिया था सारे थाल खाली हो गए थे ।
पर जैसे ही गोवर्धन महाराज अंतर्ध्यान हुये ……..थालों में भोग प्रसाद पहले जैसा था वैसा ही भर गया ।
कन्हैया नें साष्टांग प्रणाम किया गोवर्धन को ………फिर तो सबनें प्रणाम किया ………….मनसुख नें तो बारम्बार प्रणाम किया ………क्यों की भोग प्रसाद सामनें आगया था वापस ।
पंगत लगी अब ……..महर्षि शाण्डिल्य नें कन्हैया से पूछा ……प्रदक्षिणा पहले लगायी जाए या फिर भोग सब बैठकर पाएंगे !
हाथ जोड़कर कन्हैया नें कहा ……..नही , महर्षि ! ये अर्चना इन्द्र की नही है ……जिसमें भूखों रहना पड़े व्रत उपवास करना पड़े …..ये तो गोवर्धन महाराज का प्रसाद है ……..सब पाएंगे पहले प्रसाद ………फिर उसके बाद नाचते गाते गोवर्धन की परिक्रमा देंगे ।
महर्षि गदगद् हैं इस शालग्राम स्वरूप गोवर्धन की पूजा करके ।
अन्य कोई द्विज जब इस “गोवर्धन पूजा” का रहस्य जानना चाहता है ….तो महर्षि शाण्डिल्य उससे कहते ……..ये गोलोक धाम के विशाल शालग्राम हैं ………..शालग्राम से भी ज्यादा इनकी शिला पूजनें का फल है ……ये सदा हरिदासवर्य हैं ..यानि समस्त हरिदासों में श्रेष्ठ ।
सबनें प्रसाद पाया ……कढ़ी भात, बाजरे की खिचड़ी……..ये इस गोवर्धन पूजन में आवश्यक बना दिया था कन्हैया नें……..बाकी अन्य मिष्ठान्न ……..पकवान …….नाना प्रकार के व्यंजन……..पर ये अब सब प्रसाद है……..सबनें आनन्दित होकर प्रसाद पाया ।
अब ? महर्षि नें कन्हैया से पूछा ।
“परिक्रमा”…….गोवर्धन नाथ की प्रदक्षिणा…..कन्हैया नें कहा ।
आगे आगे गौ को किया गया……….सुन्दर सुन्दर गौएँ हैं ……हल्दी के छापे उनके देह पर लगाये गए थे ……सोनें से सींग मढ़ी गयी थी …..चाँदी से खुर मढ़े गए थे ।
इनको आगे आगे रखा गया……..ब्राह्मणों को इनके पीछे ……..जिसमें महर्षि शाण्डिल्य इत्यादि थे ………और उनके पीछे बृजराज जी बृषभान जी गणमान्य व्यक्ति थे ……..उनके पीछे बृजवासिन थीं ….सुन्दर सुन्दर सजी धजी गीत गाती हुयी चल रही थीं……….बरसानें वाली सखियाँ अलग थीं और नन्दगाँव की अलग ।
श्रीराधारानी नें आनन्दित होकर गीत गाना शुरू किया था …….सब पीछे गा रही थीं……”गोवर्धन महाराज तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो” ।
दान घाटी से परिक्रमा प्रारम्भ हुई …………….सबनें प्रणाम किया इस भूमि को ….और चल पड़े ………आहा ! क्या दिव्य शोभा बन गयी थी उस गोवर्धन परिक्रमा की …………….बीच बीच में सखाओं के मध्य चल रहे कन्हैया दूसरो को नाचनें के लिये उकसाते ……….तब वो ग्वाला जब नाँचता तब हँस हँस कर सब पागल हो जाते ।
अब जतीपुरा में सब परिक्रमार्थी पहुँचे थे ………ये जतीपुरा गोवर्धन पर्वत का मुख कहा जाता है ……..यहाँ ग्वालों नें दूध से गिरी गोवर्धन का अभिषेक किया …………कुछ देर बैठे पूरी श्रद्धा से प्रणाम निवेदित करते हुए ये लोग बढ़े ।
राधा कुण्ड श्याम कुण्ड…….इन कुण्डों में सबनें स्नान किया था ।
पता ही नही चला सात कोस कैसे जल्दी पूरे हो गए ?
श्रीराधारानी नें ललिता सखी से कहा था ।
ऐसा लग रहा है मिनटों में पूरी हो गयी परिक्रमा !
क्यों की दान घाटी आ गयी थी ………….और अब परिक्रमा पूरी करके सब लोग अपनें अपनें घरों में जानें वाले थे ।


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