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August 1, 2025 10:59 am

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! गोवर्धनधारी साँवरे !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! गोवर्धनधारी साँवरे !!-भाग 1                                              : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! गोवर्धनधारी साँवरे !!

भाग 1

गोवर्धन प्रदक्षिणा के बाद खिलखिलाते हुये , आनन्द विभोर समस्त गोप गोपी अपनें अपनें घरों की ओर लौट रहे थे………सबके मुख में यही बात थी – कहाँ आनन्द आता था “इन्द्र पूजन” में……….अरी ! हमें तो छूनें कि भी मनाई थी …….बस हाथ जोड़कर फूल फेंकते रहो इन्द्र ध्वज में ।

ऊपर से व्रत और उपवास भी……..गोपियाँ बोल रही थीं ।

नजर उतारियो बृजरानी ! अपनें लाला के…….एक बूढी गोपी यशोदा जी को सलाह भी दे रही थी ।

अरी ! सबकी नजर कन्हैया पर ही तो थी…….सब कैसे घूर घूर के देख रहे थे ………नजर लग जायेगी कन्हैया के…….उतार दियो नजर …….नही तो हम उतार देंगी !

नही नही…..उतार दूँगी, अवश्य उतार दूँगी । बृजरानी कहतीं ।

छप्पन भोग में भी कितनौ आनन्द आयौ……..एक ग्वाला बोल रहा था ।

नयी रीत शुरू कर दी अपनें कन्हैया नें……आज तक तो देवों के पूजन में व्रत उपवास रखते थे……पर कन्हैया कि नई रीत …….देह को दुःख क्यों देना….प्रसाद है ये भोग…..इसे खूब खाओ और भजन करो…..भैया ! भरपेट ही भजन में मन लगै ! मनसुख बोला …..तो सब हँसे ।

श्रीराधारानी अपनी सखियों के साथ हैं ……उनका बरसाना आनें वाला है…..सखियाँ उनको छेड़ रही हैं……कन्हैया पीछे ही हैं……कभी कभी श्रीराधारानी किसी बहानें से पीछे मुड़ कर अपनें प्यारे को निहार लेती हैं ।

तभी –

काले काले मेघ आकाश में छा गए……..ये अचानक हुआ था ।

कार्तिक मास में इस तरह बादलों का छा जाना ……..किसी के समझ में नही आरहा था ……..भयानक मेघों कि गर्जना अब शुरू हो गयी थी ……..ग्वाल गोपी सब डर रहे थे ।

वर्षा शुरू हो गयी………..पर ये वर्षा कुछ अलग थी …….इनकी बुँदे प्रलयंकारी थे…….इतनें मोटे बून्द नभ से गिरते कभी किसी नें देखे नही थे…….अब तो हवा भी प्रचण्ड वेग से चल पड़ी थी ।

कुछ ही देर में चारों ओर जल ही जल दिखाई देनें लगा था ………

गौएँ भींग रही थीं ……….गोपियाँ इधर उधर वृक्षों के नीचे जहाँ जगह मिली वहीं खड़ी हो गयी थीं …….पर अब शीत के कारण वो सब कांपनें लगीं ……….जिनके बालक गोद में थे …….वो तो बैठ गयीं और अपनें बालक को छुपा कर वर्षा के जल से बचानें का प्रयास कर रही थीं ……पर वर्षा का रूप इतना रौद्र था कि कौन बच सकता था ।

गौएँ गोप गोपी अब शीत के कारण थर थर कांपनें लगे थे …………..उनको लगा उनके घर तो आज गिर ही जायेंगे ……जल मग्न होंने वाले हैं

*क्रमशः ….

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