श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! ऋषि अगस्त्य का कैलाश में भोजन – एक अद्भुत प्रसंग !!
भाग 1
ऋषि अगस्त्य का भी आव्हान किया कन्हैया नें ?
विदुर जी नें आश्चर्य से पूछा ।
उद्धव ! सुदर्शन चक्र नभ से गिरते हुए जल को वाष्प बनाकर उड़ा रहे थे ……ये तो समझ में आगया …….पर ऋषि अगस्त्य ?
उनका आव्हान जल पीनें के लिये था …..कन्हैया नें ऋषि अगस्त्य को इस लिये बुलाया कि ……आप आओ और जल पीयो ।
उद्धव ने विदुर जी को कहा ।
पर क्यों ? विदुर जी का प्रश्न ।
क्यों की वे प्यासे थे…..और ऋषि अगस्त्य की प्यास बुझाना कोई सामान्य बात नही थी…..जलधि सागर को ये पहले ही खारा कर चुके थे……इसलिये इनको मीठा जल इतना कहाँ से मिलता….और ये प्यासे भी थे तो सतयुग के प्यासे थे…….द्वापर में आकर इनकी प्यास बुझी थी ……..उद्धव हँसते हुए ये प्रसंग बता रहे थे ।
हे देवभाग नन्दन उद्धव ! मुझे इस प्रसंग को विस्तार से बताओ ……..हुआ क्या था ? ऋषि अगस्त्य इतनें प्यासे क्यों थे ?
और सतयुग की प्यास उनकी द्वापर में क्यों बुझी ?
उद्धव मुस्कुराते हुये उस दिव्य प्रसंग को सुनानें लगे ।
बात है सतयुग के अन्त की ………..त्रेता युग प्रारम्भ होनें जा रहा था पृथ्वी में ……………
अभिमान हो गया था पार्वती माँ को ……..मेरे पास जो भी आता है वो एक फल या कोई एक कन्द पा कर हाथ जोड़ते हुए चला जाता है ….भरपेट भोजन कराऊँ कोई ऋषि आये तो ……..तब मुझे आनन्द आएगा ! कैलाश में बैठे हैं भोले नाथ ………..उनके बाम भाग में माँ पार्वती ………सहज भाव से पार्वती जी नें भगवान आशुतोष से अपनें हृदय की बात कह दी थी …….पर अहंकार सूक्ष्म होता है ।
तुम भरपेट किसी ऋषि को भोजन नही करा सकतीं !
महादेव भी बोल दिए ।
मैं अन्नपूर्णा हूँ …………..हँसी पार्वती जी ………..मैं जगत का पेट भरती हूँ …………आप ऋषि की बात करते हैं ………..बुलाइये ! मैं भी देखती हूँ कि ऋषि कितना खायेगें ………और अगर तृप्त होकर खाएं तो मुझे भी आनन्द आएगा । पार्वती जी नें भोले नाथ से कहा ।
भोलेनाथ नाम ऐसे ही तो नही पड़ा है इनका……..तुरन्त नेत्र बन्द कर लिये……और ऋषि अगस्त्य को निमन्त्रण दे आये ।
लो ! मैने तुम्हारी कामना पूरी कर दी ……..आरहे हैं एक ऋषि !
नाथ ! एक ऋषि ? कमसे कम शत की संख्या तो होती ……..
हँसे भोले नाथ ………एक ऋषि का ही पेट भर देना ।
लो आगये !
बात कर ही रहे थे महादेव पार्वती जी से कि सामनें से पधारे ऋषि अगस्त्य !
सरल और सहज इतनें हैं की उठकर ऋषि अगस्त्य को श्री शंकर भगवान नें प्रणाम किया…….पार्वती जी को भी प्रणाम करना ही पड़ा ।
आप भगवन् ! आज का भोजन प्रसाद हमारे यहाँ ही कीजियेगा ……….मेरी अर्धांगिनी पार्वती की यह इच्छा है ………क्यों पार्वती ? महादेव नें पार्वती की ओर देखा ……….जी ! जी ऋषिवर ! आज का भोजन प्रसाद हमारे यहाँ करें । पार्वती माँ की बात सुनकर महादेव से बोले ऋषि……..अभी इच्छा नही है ……..पर आप कहते हैं तो मैं मना कैसे करूँ……थोडा बाल भोग कर लूँगा ………अगस्त्य ऋषि नें बस इतना ही कहा ।
बाल भोग ? पार्वती जी नें विचार किया ……..बाल भोग पानें की बात कर रहे हैं ये तो…….गयीं रसोई में…….चार पूड़ी, सब्जी, हलुआ , खीर यही सब बनाकर ले आईँ ……अन्नपूर्णा को क्या देरी लगती ! सामनें ऋषि के सजा दिया ।
अब ऋषि अगस्त्य देखें और हँसे ………जोर से हँसे ।
क्रमशः …


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