श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! ऋषि अगस्त्य का कैलाश में भोजन – एक अद्भुत प्रसंग !!
भाग 2
बाल भोग ? पार्वती जी नें विचार किया ……..बाल भोग पानें की बात कर रहे हैं ये तो…….गयीं रसोई में…….चार पूड़ी, सब्जी, हलुआ , खीर यही सब बनाकर ले आईँ …… अन्नपूर्णा को क्या देरी लगती ! सामनें ऋषि के सजा दिया ।
अब ऋषि अगस्त्य देखें और हँसे ………जोर से हँसे ।
आप हँसते क्यों हैं ? पार्वती जी नें पूछा ।
मैं ये सोच रहा हूँ कि इन सामग्रियों को डालूँ कहाँ ……कान में या नाक में या आँख में ? मतलब ? पावर्ती जी नें पूछा ।
देखो ! माँ !
खिलाना है तो अच्छे से खिलाओ …..ऋषि का कहना था ।
प्रसन्न हो गयीं अन्नपूर्णा ………..वो गयीं रसोई में …….और पचास पूड़ी साग, खीर बाल्टी भरके …..बना ले आईँ ।
पर ये क्या ! पचास पूड़ी का एक गोला बनाया ऋषि नें और एक ही बार में खा गए ……खीर पी गए पूरी बाल्टी ।
और लाइये ! ऋषि नें मुस्कुरा कर कहा ।
ओ और लाऊँ ? ऋषि बोले – अभी तो शुरुआत हुयी है ।
बस – पार्वती जी बना रही हैं …..और अब ऋषि अगस्त्य खा रहे हैं …….
तात ! 11 दिन हो गए……..खाते खाते ऋषि अगस्त को 11 दिन हो गए थे ……….सुस्तानें का समय नही है पार्वती जी को ।
गणेश जी को बुलवाया …………हलवाई के रूप में गणेश जी बैठ गए ……अब ये पूड़ी सेक रहे हैं …..गणेश जी की पत्नियाँ बुलाई गयीं …ऋद्धि सिद्धि ये पूड़ियाँ बेल रही हैं…….पर ऋषि का तो अखण्ड भोजन चल रहा है …….28 दिन हो गए अब भोजन करते करते ।
पार्वती जी रसोई में आईँ – गणपति ! क्या चल रहा है ? पूछ रही हैं ।
पसीनें पोंछनें की फुर्सत नही है माँ ! गणपति बोले – माँ ! जाओ तो पूछो उन ऋषि को ….कि और कब तक चलेगा उनका ये भोजन ?
माता जी ! हमारे हाथ दूख रहे हैं …..ऋद्धि सिद्धि की भी हालत खराब हो गयी है अब तो ।
पार्वती जी ऋषि अगस्त्य के पास गयीं……हाथ जोड़ा और बोलीं –
महाराज ! प्रणाम ! ऋषि नें एक दो बार में तो सुना भी नही …..क्यों की उनका ध्यान भोजन में था ……..तीसरी बार में सुन लिया ……पर वे बोले ……अभी फुर्सत नही है फिर कभी आना माँ ! अभी भोजन कर रहे हैं ……….पार्वती जी नें मन ही मन कहा ……..28 दिन हो गए कब आऊँ ? पर बाहर से पार्वती जी बोलीं – ऋषिवर ! मैं तो इतना ही कहनें आयी थी की आधा भोजन हो जाए तो पानी पी लेना चाहिये ।
ऋषि अगस्त्य बोले ……आप चिन्ता न करें आधा भोजन हो जाएगा तो हम स्वयं पानी पी लेंगे ……….पावर्ती जी नें अपना माथा पकड़ा …..28 दिन हो गए भोजन करते हुए इनका अभी तक आधा भोजन नही हुआ ।
तात ! 41 दिन हो गए अब तो ……..अब .पार्वती जी समझ गयीं कि मेरे अहंकार को तोड़नें के लिये भोले नाथ नें ये लीला रची है …….
हाथ जोड़कर कहा भगवान शंकर से – भगवन् ! मेरी क्या चले ! मैं हार गयी ………..अब आप ही रुकवा दो इन ऋषि के भोजन को ।
पार्वती जी नें प्रार्थना की ।
क्यों ! तुम तो कहती थीं…….मैं अन्नपूर्णा हूँ……..मैं जगत को खिला सकती हूँ ……अब क्या हुआ ?
भगवन् ! आप गर्व हारी है ……..मेरे गर्व को आपनें हर लिया है ……..अब बस ये कृपा करो कि…….पार्वती जी की बातें सुनकर भगवान शंकर मुस्कुराये …………उधर – डकार आयी ऋषि अगस्त्य को ……हाँ , माता ! अब जल पिलाओ ।
पार्वती जी नें कहा ……..जल ? हे ऋषिवर ! जल अब मैं कहाँ से लाऊँ ………सागर को तो आपनें पहले ही खारा कर दिया है……जलाशय या नदी के जल से तो आपकी प्यास बुझनें वाली है नही ।
मुस्कुराते हुए आशुतोष बोले – हे ऋषि ! द्वापर में गोलोक बिहारी नन्दनन्दन अवतरित हो रहे हैं इस धरा धाम में…….उस समय इन्द्र कुपित होकर वर्षा करेगा ….प्रलयकारी वर्षा…..वो जल आप पी लेना ।
पर महादेव ! ये तो सतयुग का ही अन्त चल रहा है ………द्वापर आनें में तो देरी है ?
महादेव नें सहज उत्तर दिया ……..आप ऋषि हैं ………एक समाधि लगा लीजिये दो युग बीत जायेंगे……..आप तो सब जानते ही हैं ।
प्रणाम करके ऋषि अगस्त्य चले गए थे…..
और वो समाधि में बैठ भी गए ।
द्वापर युग आगया था……..नन्दनन्दन अवतार लेकर अपनी लीला को प्रस्तुत कर रहे थे …………..तात ! आज इन्द्र की पूजा छुड़वा कर श्रीकृष्ण चन्द्र जू नें गोवर्धन की पूजा करवा दी थी ……….उसके कारण इन्द्र कुपित हो उठा था …………और उसनें महाप्रलय में बरसनें वाले मेघों को आदेश दिया………..बादल छा गए …..मूसलाधार वर्षा शुरू हो गयी थी …….और ये शीघ्र रुकनें वाली भी नही थी ।
उस समय ….हे ऋषि अगस्त्य ! आप आइये और जल पीजिये !
नन्दनन्दन के इस निमन्त्रण नें ऋषि की समाधि तोड़ दी थी …….वे उठे और बृजमण्डल में चले आये ……….जल अपार बरस रहा था …..सतयुग के प्यासे ऋषि अब द्वापर में बड़े प्रेम से अपनी प्यास बुझा रहे थे ।
उस समय भगवान शंकर और भवानी पार्वती ऊपर से इस दृश्य को देखकर बहुत प्रसन्न थे ।
क्रमशः ….


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