श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! नन्दगाँव में महापंचायत !!
भाग 1
हे बृजराज ! आपको पंचायत में बुलाया गया है ।
दो ग्वालों नें आकर नन्द महाराज को कहा ।
पंचायत ? सुनिये जी ! ऐसी क्या बात हो गयी कि आपको पंचों नें बुलवाया ? बृजरानी नें अपनें पति से, पंचायत की बात से चिंतित हो पूछा था ।
मुझे नही पता……वैसे चिन्ता की क्या बात !……जो भी बात है वो वहाँ जानें पर पता चल ही जायेगा ।
चलो ! इतना कहकर बृजराज पंचायत में चले गए थे ।
हजारों बृजवासी पंचायत में आये हुये हैं ………..पूरे बृज के लोग हैं ……
पञ्च बैठे हुए हैं ………………
बृजराज के वहाँ जाते ही सबनें प्रथम तो उठकर स्वागत किया …….क्यों की बृज के ये पालक जो हैं ………..फिर बृजराज को बिठाकर चर्चा सबके सामनें प्रारम्भ की ?
क्या श्रीकृष्ण आपके ही पुत्र हैं ?
हाँ , हाँ मेरा ही पुत्र है श्रीकृष्ण …………..बृजराज तुरन्त बोले ।
पर ये प्रश्न यहाँ क्यों उठाया जा रहा है मेरी समझ में नही आया ।
बृजराज नें पूछा ।
यहाँ अधिकतर लोगों का मानना है कि श्रीकृष्ण आपका पुत्र नही है !
बृजराज फिर वही बात दोहराते इसलिये पंचों नें कहा ……….इन सबका कहना है कि ………..अगर बृजपति का पुत्र श्रीकृष्ण होता तो सात कोस के गोवर्धन को कैसे उठाता ? हमसे तो एक पत्थर नही उठता !
पंचों की इस बात पर सब हँसे …………….बृजराज के समझ में नही आरहा कि ये मेरे कन्हैया की प्रशंसा हो रही है या निन्दा ।
नन्द का सुत …….सामान्य बृजवासी बालक ही तो होगा ……….फिर सात वर्ष का बालक गोवर्धन कैसे उठा लेगा ? पंच लोग यही बोल रहे थे ।
आप कहना क्या चाहते हैं ? बृजपति नें स्पष्ट जानना चाहा ।
सबका कहना है कि…..आपका पुत्र देवता है …..या कोई भूत प्रेत !
“इसलिये…..हम सबनें निर्णय किया कि”……पंचो नें उस महापंचायत में स्पष्ट कह दिया – “भूत प्रेत या देवता हमारी जाति विरादरी में नही रह सकते इसलिये हम श्रीकृष्ण को अपनी जाति से अलग करते हैं ।
नही , ऐसा मत कीजिये ………..श्रीकृष्ण बृजराज का ही पुत्र है ।
बृषभान जी नें उस पंचायत में उठकर अपनी बात कही ।
हे बृषभान जी ! आप श्रीकृष्ण के नामकरण संस्कार में उपस्थित थे ?
पंचो नें बृषभान जी से पूछा ।
बृषभान जी कोई उत्तर दे नही पाये ।
“क्यों की नामकरण संस्कार में किसी को निमन्त्रण नही दिया गया था”
बृजराज नें उत्तर दिया ।
वही तो हम जानना चाहते हैं की क्यों नही निमन्त्रण दिया गया था ?
पंचों नें बृजराज से फिर पूछा ।
हे बृजराज ! आप कन्हैया के करवट बदलनें का उत्सव मनाते रहे …..सबको निमन्त्रण दिया …….कन्हैया के घुटवन चलनें का उत्सव मनाते रहे ……सबको बुलाया ……..पर बालक के नामकरण संस्कार में क्यों किसी को नही बुलाया ……….और बृजपति ! किसी को न भी बुलाते …..पर आपनें तो अपनें मित्रों को भी निमन्त्रण नही दिया ……..ये बृषभान जी आपके घनिष्ठ मित्रों में से हैं …….इनको भी नही ।
पंच लोग बोलते जा रहे थे – गांवों के वृद्ध जनों का कहना है कि नाम करण में जो कुण्डली बनती है ………..उससे बालक का पता चलता है कि ये बालक किसका है ? कहीं आप कुछ छिपा तो नही रहे ?
नही, मैं कुछ नही छुपा रहा ………..सब सच सच बताता हूँ ……….
बृजराज नें जल पीया ………….पसीनें पोंछे और समस्त बृजवासी समाज को सच बतानें लगे ।
*क्रमशः ….


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