श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “जब बृजवासी वैकुण्ठ गए” – एक अद्भुत प्रसंग !!
भाग 1
तुम लोग उदास क्यों हो ? देखो ! हँसते खेलते ही तुम लोग अच्छे लगते हो ……ऐसे उदास मत बैठा करो……….
गौचारण करनें के लिए सब ग्वाल बाल आये हुये थे……..किन्तु जब सबको उदास देखा कन्हैया नें तो कह दिया ।
सुन कन्हैया ! तू एक बात सच सच बताना , हैं !
हाँ हाँ …….पूछो ! मैं सच ही बताऊंगा…..कन्हैया भी बोल दिए ।
तू भगवान है ? श्रीदामा नें पूछा ।
ये क्या प्रश्न है ? कन्हैया हँसे ।
बताना ! तू भगवान है ? मनसुख नें भी पूछ लिया ।
पर ये प्रश्न पूछ क्यों रहे हो तुम लोग ! मैं तो तुम्हारा सखा हूँ …….
पर बृजराज बाबा कह रहे थे कि ……….कल उन्हें वरुण लोक में ले जाया गया था ……पर जैसे ही तू गया वहाँ ……..तो तेरी बड़ी स्तुति हुयी वरुण देवता तेरे पाँव धोकर पीनें लगे थे………….
“बाबा कुछ भी बोलते हैं” ……….कन्हैया नें सखाओं की बातों को गम्भीरता से नही लिया ।
नही …..पर हम भी विचार करते हैं…..तो लगता है कि तू भगवान है !
मधुमंगल बोला ।
क्या विचार करते हो ?
जैसे – गोवर्धन पर्वत को तेनें ही उठाया था यही सच्चाई है …….हमारी लाठी तो दिखावे के लिये थीं ………ये बात हम जानते हैं ।
और तेनें कितनें राक्षसों से हमें बचाया ……..कालीय नाग को तेनें ही नथा …….हमारे वश की बात थी ? दावानल पान किया ………आग को पी जाना सामान्य मानवी के वश की बात कहाँ है !
सखाओं की बातों को बीच में ही काटते हुए बोले कन्हाई ………तुम लोग कहना क्या चाहते हो ?
तू भगवान है !
हाँ , मैं भगवान हूँ ………..कन्हैया बोल पड़े ।
तू सच बोल रहा है ! तू सच में भगवान है ? सखा भी विचित्र हैं ……..फिर पूछनें लगे ।
हाँ हाँ …..मैने कहा ना ! मैं भगवान हूँ ……कितनी बार कहूँ !
सब सखा श्रीकृष्ण के पास आगये …………भगवान का तो वैकुण्ठ लोक होता है…….तेरा भी वैकुण्ठ है क्या ? मनसुख नें पूछा ।
हाँ है वैकुण्ठ ! सहजता में श्रीकृष्ण बोल दिए ।
तो हमें दिखा ! श्रीदामा बोला ।
ठीक है …………इतना कहकर श्रीकृष्ण नें तुरन्त अपनें नेत्र बन्द किये ।
सखाओं नें सोचा नही था कि …..कन्हैया इतनी जल्दी मान जायेगा ।
पर तू ध्यान कर क्यों रहा है ? श्रीदामा नें फिर पूछा ।
तुम सबके लिये “गरूण” को बुला रहा हूँ…….तुम सब गरूण में बैठकर वैकुण्ठ जाना……..और दर्शन कर लेना ………कन्हैया बोले ।
चौं रे ! तू नही जायेगा हमारे साथ ? सखाओं नें पूछा ।
मैं तो हूँ हीं वैकुण्ठ में………..कन्हैया हँसे ।
तभी देखते ही देखते गरूण वहाँ आपहुँचे थे………बैठो इनके ऊपर …….ये तुम सबको वैकुण्ठ ले जायेगें …………
पर हमें वापस आना है वृन्दावन ! मनसुख चिल्लाया ।
कन्हैया हँसे………गरूण में सब बैठ गए थे……..बस देखते ही देखते गरूण उड़ चले …….सखाओं को आनन्द आरहा था ।
स्वर्ग, सत्य, ब्रह्मलोक, और कैलाश सब पीछे छूटते चले गए ……..
गरूण नें अब जाकर अपनी गति रोकी……..क्यों की वैकुण्ठ लोक आगया था ।
दिव्य लोक है ये वैकुण्ठ लोक ………..वहाँ के वातावरण में ही ‘ॐ नमो नारायणाय”….ये मन्त्र गूँज रहा है……..वैकुण्ठ के द्वार पर चक्र और शंख के विशाल चिन्ह बने हुए हैं ……….चारों और भगवद् पार्षद इधर उधर शान्त भाव से विचरण कर रहे हैं ……..सबकी चार भुजाएँ हैं ………सबके करों में चक्र शंख गदा और कमल है ………..चारों ओर से सुगन्ध प्रकट हो रही है, कमल की सुगन्ध ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –


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