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August 1, 2025 11:38 am

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! कामदेव का दिग्विजय – “अथःरासपञ्चाध्यायी” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! कामदेव का दिग्विजय – “अथःरासपञ्चाध्यायी” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! कामदेव का दिग्विजय – “अथःरासपञ्चाध्यायी” !!

भाग 2

भगवान नारायण नें मोहिनी का रूप धारण किया है ?

आनन्दित हो उठे महादेव……मुझे उस रूप के दर्शन करनें हैं ।

हृदयाकाश में आकर नारायण भगवान नें कहा ….हे आशुतोष ! वो रूप मेरा असुरों को मोहित करनें के लिये था…..आपके लिये वो रूप नही है ।

“पर रूप तो आपका है”…….भगवान शंकर इतना ही बोले ।

ठीक है ……अगर आप उस रूप को देखना ही चाहते हैं तो ! भगवान नारायण इतना ही बोले थे ।

आज सायंकाल की वेला है……….पार्वती जी साथ में हैं ….गणपति भी साथ में हैं ……….

तभी सामनें देखा ……..एक अत्यन्त सुन्दरी कन्दुक खेलती हुयी आरही है…..खेलते खेलते कन्दुक भगवान शंकर के पास ही चला आता है …….वो गेंद लेने जाती है……भगवान शंकर नें उसे देखा …….इतनी सुन्दर , वो गेंद लेकर गयी……पर उसके पीछे महादेव चल दिए ! …….कामदेव अट्टहास कर उठा था उस समय ।

भागी वो सुन्दरी…….आगे जाकर महादेव नें उस सुन्दरी को अपनें बाहों में खींच लिया ……………….

कामदेव हँसा ………..खूब हँसा……..अपनें आपको दिग्विजयी मान लिया इसनें………..इस को लगा कि मैने महादेव को हरा दिया ……..पराजित हो गए मुझ से ये ।

अब बचा कौन ? कौन है जो मुझ कामदेव से लड़ेगा ।

मैं मनोज हूँ ……..मैं मन्मथ हूँ ………सबके मनो को मथ देता हूँ ।

हा हा हा हा हा हा हा !……….वो कामदेव अट्टहास कर रहा था ।

तभी –

नारायण ! नारायण ! नारायण !

देवर्षि नारद जी वहाँ उपस्थित हो गए थे ।

बड़े प्रसन्न लग रहे हो कामदेव ! देवर्षि नें पूछा था ।

ओह ! आप ? देवर्षि नारद ! क्यों प्रसन्न न होऊं ! मुझे कोई हरा नही सकता ……….मैं सदैव विजयी रहा हूँ …….रहता हूँ ।

और हाँ …..आपको भी तो मैने पराजित किया था ! देवर्षि के सामनें हँसा कामदेव…….उस विश्व मोहिनी से विवाह करना आप चाहते थे ।

नारद जी नें बात को बदल दिया ……और बोले……मेरी छोड़ो …….तुम बताओ ……क्या चाहते हो ? युद्ध ! पर मुझ से कौन लड़ेगा ?

भगवान श्रीराघवेंद्र के सामनें तुम्हारी दाल नही गली ! देवर्षि नें कहा ।

इस बात पर कामदेव अब चुप हो गया …….फिर बोला …….जो एक पत्नीव्रत धर्म का पालन करके बैठा हो ………वहाँ मैं क्या करता ?

पर महादेव नें तुम्हे भस्म कर दिया था….ये घटना क्यों भूल जाते हो ?

इस बात पर भी कामदेव बगलें झाँकनें लगा ।

वो सारी बातें छोडिये…….देवर्षि ! कोई अच्छा मेरे साथ युद्ध करनें वाला वीर बताइये ! कामदेव फिर बोला – बहुत दिन हो गए कोई वीर मिला नही !

तो फिर गोलोक चले जाओ ! देवर्षि नें आँखें मटकाते हुए कहा ।

गोलोक ? कामदेव चौंका ।

हाँ ….गोलोक धाम ! वृन्दावन बिहारी लाल के पास …….जाओ वहाँ ।

वो गोलोक जो वैकुण्ठ से ऊपर है …….कामदेव नें पूछा ।

हाँ हाँ…..वही ……जाओ ! कामदेव ! वहाँ जाओ …..और वृन्दावन बिहारी से लडो……..देवर्षि इतना बोलकर वहाँ से चल दिए थे ।

कामदेव कुछ देर तक तो सोचता रहा ……..फिर उसनें गोलोक में ही जानें की सोची……चलो ! वृन्दावन बिहारी से ही दो दो हाथेँ हो जाएँ ।

कामदेव चल पड़ा था गोलोक धाम की ओर……हाथ में धनुष था उसके तो पुष्पों के पाँच बाण तुरिण में थे …………….अहंकार में भरा हुआ कामदेव आज वृन्दावनबिहारी को चुनौती देनें के लिये जा रहा था । अहो ! उद्धव बोले ।

*शेष चरित्र कल –

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Author: admin

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