श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! कामदेव जब हारा – “रासपञ्चाध्यायी” !!
भाग 1
ये अद्भुत युद्ध था , कामदेव और श्रीकृष्ण का !
जब कामदेव नें देखा श्यामसुन्दर अपनी गोपियों को देखकर मुस्कुरा रहे हैं ……….और कह रहे हैं ……मैं तो तुम्हारे प्रेम की परीक्षा ले रहा था ……तुम्हारा मन मुझ में है कि नही ………तुम्हारा सर्वस्व मैं हूँ की नही !
पर हे गोपियों ! तुमनें उस दुस्तर मोह की रस्सी को तोड़ दिया है …..जिसे बड़े बड़े योगी तक तोड़ नही पाते और उलझे रह जाते हैं ।
ये कृष्ण सच में तुम्हारा ऋणी है………ये कहते हुए श्रीकृष्ण नें गोपियों को प्रणाम किया था ।
कामदेव अब प्रसन्न हुआ………..तुरन्त उसनें अपना धनुष सम्भाला ………..पुष्पों के बाण निकाले तुरिण से …………
तात ! आत्माराम अपनी ही आत्मा से रमण करनें के लिये तैयार हुए ।
युद्ध की भूमि गोपियों का गौर अंग था ………..कामदेव नें उसी में प्रवेश किया ………….पर श्रीकृष्ण भी सर्वेश्वर हैं ………..कामदेव के पिता को ही श्रीकृष्ण नें अपना भक्त बना लिया है……….तात ! कामदेव का बाप है …”मन” ……इसलिये तो कामदेव को “मनोज” या “मनसिज” कहा जाता है ……..और श्रीकृष्ण नें गोपियों के मन को ही अपना बना लिया था ……….मन श्रीकृष्ण का हो गया ………ये युद्ध की अद्भुत नीति थी नन्दनन्दन की ……………।
कामदेव नें देखा ………इस नवल किशोर नें तो मन को ही अपनें वश में कर लिया ……….कामदेव कुछ समझ पाता कि ………श्रीकृष्ण नें हँसते हुये गोपियों के मन में काम को प्रवेश करनें दिया ।
उस गौर वदन गोपियों का श्रीकृष्ण स्पर्श करनें लगे थे …………नृत्य शुरू हो गया था वृन्दावन में ………..हजारों गोपियाँ और उनके साथ हजारों रूपों में रूपायित होते श्रीकृष्ण ।
अपनें बाहों में भर रहे थे अपनी प्यारी गोपियों को श्याम सुन्दर …….
वो नृत्य करते हुए चूम रहे थे गोपियों को ……….कामदेव हँस उठा …….अब मैं पराजित करूँगा इसे……मैं इसके मन में काम उद्दीपन भरूंगा । पर कामदेव अभी भी समझ नही रहा कि ये तो “मदन गोपाल” हैं ………..’मदन” इनका क्या बिगाड़ेगा !
क्रमशः ….
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