श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! वृन्दावन में अश्रुपात !!
भाग 1
गहवर वन में श्रीराधारानी की मूर्च्छा टूटी…..सुबह होनें वाली थी ….पक्षियों की चहक , सखियों के आवागमन से श्रीराधारानी उठीं ।
उठते ही – हा प्रिय ! हा प्रियतम ! कहाँ गए नाथ ! पुकारनें लगीं ।
ललिते ! वे आये थे ना ! आये थे ! फिर क्यों चले गए ?
ललिता सखी पास में ही खड़ी है उससे श्रीजी पूछ रही हैं ।
बता ना ललिते ! क्यों गए वे ? क्या मैने उनका मन दुखाया ? मैं हूँ ही ऐसी ………मैने यही तो किया है ।
वे मथुरा जा रहे हैं ! ललिता सखी नेत्रों में अश्रु रोककर जैसे तैसे ये वाक्य बोल सकी थी ….पर शायद श्रीराधारानी सुन न सकीं । कहाँ जा रहे हैं ? श्रीराधारानी को सुध बुध नही है ।
कहाँ जा रहे हैं वे ? बता ना ! ललिता क्या बताये ………नभ में लालिमा छानें वाली है ……..फिर सूर्योदय भी हो जायेगा ………..और सूर्योदय होते ही श्याम सुन्दर………ओहो ! ललिता के अश्रुपात ।
क्यों रो रही है तू ? मत रो वे आएंगे ! देखना ! वे भी “प्यारी ! प्यारी” पुकारते हुये आएंगे ……..श्रीराधारानी बोले जा रही हैं ।
ललिता नें नभ की ओर देखा …..और चिल्लाई ……….
प्यारी जू ! वे मथुरा जा रहे हैं ।
क्या ! क्या ललिते ! क्या कहा तेनें, वे मथुरा जा रहे हैं ?
बस ये सुनते ही श्रीराधारानी नन्दगाँव की ओर दौड़ीं …………..उन कोमल चरणों में कितनें काँटे गढ़े होंगे …………पर इन कृष्णप्रिया को परवाह क्या ? चूनरी कहाँ गयी पता नही ………..ये पागलों की तरह दौड़ रही हैं ……………श्याम सुन्दर ! श्याम सुन्दर ! बस यही पुकार इनके मुखारविन्द से निकल रही है ।
पीछे ललिता विशाखा रंगदेवी सुदेवी सब सखियाँ दौड़ रही हैं ।
हट्ट ! तुझे नही छूआ था श्यामसुन्दर नें , तू तो झूठी है ……मुझे छूआ था ……यहाँ , नही यहाँ ! अरे ! हटो ……….मेरी तो मटकी फोड़ी थी ।…….ये तो पुरानी बात कर रही है ……11 वर्ष से भी ज्यादा के होगये हैं श्याम सुन्दर ……मटकी फोड़ेगा तेरी ! सब गोपियाँ हँसनें लगीं……..यमुना के किनारे एकत्रित हुयी हैं ……..होती हैं नित्य …….जल भरनें के लिये सब आती हैं ……..तो अपनी अपनी बातें करती हैं ………पर बातों के मूल में होते हैं…..श्यामसुन्दर ।
मेरी चूनरी खींच के भाग गए थे………वो सखी बहुत हँस रही है आज …….उसकी हँसी ही नही रुक रही……..अरी ! चुप होजा अब …….ज्यादा नही हँसते ………नही तो रोना पड़ता है ……..वो दूसरी गोपी बोल गयी । क्यों ? क्यों रोना पड़ेगा ? कोई श्यामसुन्दर हमें छोड़कर थोड़े ही जायेंगे………वो तो यहीं रहेंगे …..यहीं ……..ये कहते हुये जल की मटकी उठाती है वो गोपी और चल दी अपनें घर की ओर …….सब गोपियों नें यही किया…..मटकी सिर में रखकर चल दीं थीं ।
प्रिया जू ! रुकिये ! रुकिये स्वामिनी ! रुकिए !
वो भानुदुलारी दौड़ रही हैं नन्दालय की ओर…..उन्हें देह की कोई सुध नही है……..वस्त्र इधर उधर उड़ रहे हैं हवा में ……पर इन्हें कोई भान नही है ….हा श्याम सुन्दर ! हा श्याम सुन्दर ! बस यही पुकार चल रही है उनकी ।
ललितादि रोती हुयी अपनी स्वामिनी के पीछे पीछे दौड़ रही हैं …….ये रोकना चाहती हैं ….पर श्रीजी कहाँ रुकनें वाली हैं आज ।
ललिता ! क्या हुआ ? नन्दगाँव की एक गोपी नें ललिता को पकड़ कर पूछ लिया ………ललिता रुकी ……….उसकी साँस चढ़ रही थी …….इसकी भी दशा विलक्षण थी ……निरन्तर अश्रुपात ।
“श्यामसुन्दर मथुरा जा रहे हैं अभी” !
*क्रमशः …
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