श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! कंस के धोबी का वध !!
भाग 1
वे त्रिभुवन सुन्दर, भुवनमोहन मुस्कुराते हुये मथुरा के राजपथ से होकर नगर की और बढ़ते ही जा रहे हैं ……….मार्ग के दोनों ओर नर नारियों की भीड़ उमड़ पड़ी है , इन दोनों बालकों को देखनें के लिये ।
ब्राह्मण , क्षत्रिय यादव वैश्य सब खड़े हैं……..ब्राह्मण आशीष देते हैं श्रीकृष्ण बलराम को …….यादव दही और माखन खानें का विशेष आग्रह करते हैं …….तब ये नवनीतप्रिय कुछ अपना मुख जूठा करते हुये आगे बढ़ जाते हैं …….वैश्य अपनें प्रतिष्ठानों में बुलाते हैं …….क्षत्रिय पूछते हैं – “शस्त्र चलाना आता है या नही ? कंस तुम लोगों को मार सकता है ….सावधान रहना”……..पर ये बात सुनकर मुस्करा देते हैं श्रीकृष्ण …..वे तो हमारे मामा जी हैं …..मारेंगे काहे ? क्षत्रिय नारियाँ मुग्ध हो जाती हैं इनकी मुस्कुराहट पर ।
तात ! जैसे जैसे आगे बढ़ते जा रहे हैं श्रीकृष्ण, मार्ग में भीड़ बढ़ती ही जा रही है……..वसुदेव के पुत्र आगये ! देवकी के सुत आगये ! मथुरा में हल्ला हो गया है…….चहुँ ओर बस यही चर्चा है ।
पुष्प बरस रहे हैं……..ग्वाल बाल ये सब देखते हैं तो कहते हैं ……बड़ा भारी स्वागत हो रहा है कन्हैया !…….
“कंस मामा हैं हमारे” ………ये कहते हुये खूब हँसते हैं श्रीकृष्ण ……मामा के घर में भान्जे का स्वागत तो होगा ही ना !
तेरे मामा हमारे भी तो मामा हुए ……..भोला मनसुख पीछे से कहता है ।
तो तेरे मामा से भी मिलना है ! श्रीदामा नें पूछ लिया ।
हम क्या, वही मिलेगें ……….अपनें भान्जे से नही मिलेंगे ? श्रीकृष्ण हँसते हुये कह रहे हैं ……ठिठोली कर रहे हैं अपनें सखाओं से ……इस रूप का दर्शन करके मथुरा के नर नारी आनन्दित हैं ।
तभी –
एक विशालकाय व्यक्ति, काला रंग था उसका …..मूंछे ऐंठी हुयीं थीं…..सिर में सतरंगी पगड़ी बाँधी थी , पोटरी कंधे में डाले चला जा रहा था……..देखनें पर ग्वाल बाल भी समझ गए कि ये धोबी है ।
क्या कन्हैया ! हमारे वस्त्र तो पुरानें हैं .श्रीदामा नें कहा ………और मेरे वस्त्र में तो दही माखन भी लग गया है …….गन्दा लग रहा है ……मनसुख बोला ……..ऐसे वस्त्र पहन कर “राजा मामा” से मिलेंगे …….क्या सोचेंगे वो ……कि कैसे भान्जे हैं …..कपड़े पहनने का भी शऊर नही है………..मधुमंगल क्यों पीछे रहता …..वो भी बोल पड़ा ……वस्त्र अच्छे मिल जाते तो और आनन्द आता …….तब ज्यादा आनन्द आता ……..नगर में अच्छे वस्त्र पहन के घूमते ……तोक सखा नें भी हाँ में हाँ मिलाई ।
अच्छा शान्त हो जाओ……..मैं कुछ देखता हूँ……..श्रीकृष्ण नें जैसे ही ये कहा……..”बोलो कृष्ण कन्हैया लाल की” मनसुख पूरी प्रसन्नता से चिल्लाया……..सब ग्वाल बाल ही नही…….मथुरा के नर नारी भी जोर से बोले ………”जय जय जय” ।
“हट्टो ! कहाँ से आजाते हैं जँगली लोग”…………वही काला सा पुरुष धोबी आगया था उसे अभिमान था कि ……मैं राजा कंस का धोबी हूँ ………..तो उसी अहंकार के कारण उसनें ग्वाल बालों को अपमानित करते हुये बोला …..”हट्टो ! कहाँ से आजाते हैं …..जँगली लोग”….
श्रीकृष्ण का ध्यान नही गया इस ओर ……..पर सखाओं को बहुत बुरा लगा ………क्या करते अपमान को पचा गए बेचारे ।
क्रमशः …
