श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! ज्ञान बह गया अश्रुओं में – “उद्धव प्रसंग 25” !!
भाग 1
बहना ही था ……प्रेम के आगे कौन टिक पाया है …..ये प्रेम पन्थ है ….इसकी उल्टी ही रीत है …..इसके अपनें ही संविधान हैं ।
इस प्रेम पथ में कोई रोये तो समझना वो हंस रहा है ….और कोई हंसे तो समझना वो रो रहा है ……इस मार्ग में बन्धन ही मुक्ति है और मुक्ति ही बन्धन है ………इस मार्ग में तात ! ज्ञान ही अज्ञानता है और अज्ञानता ही ज्ञान है ……प्रियतम ही सर्वस्व है ……उसकी ख़ुशी ..हमारी ख़ुशी बन जाती है ….उसका दुःख हमारा दुःख बन जाए तो समझना प्रेम नगरी में हम आगये हैं ।
मुझे कितना अहंकार था ……..कि मैं ज्ञानी ….मैं शास्त्रवेत्ता …….मैं देवगुरु बृहस्पति का शिष्य ………..पर मेरा समूचा ज्ञान इन गोपियों के अश्रुओं में बह गया था ……..मैने सम्भालना चाहा पर वो बह गया ……अब मैं क्या करूँ ? रात होनें वाली थी …………..ललितादि सखियाँ श्रीराधारानी को लेकर जा रही थीं बरसानें …………
तुम बरसानें आओ ना उद्धव ! वहीँ सत्संग करेंगे !
ललिता नें चलते चलते कह दिया था ।
हाँ ………मैं आनन्दित हो उठा ……..बस मैया यशोदा को कह कर आजाऊंगा ………..ये कहकर मैं जानें लगा नन्दभवन कि ओर तो समस्त गोपियों नें कहा…..हम भी अपनें घर का काम निपटाकर चलेंगी बरसानें……रात भर कुञ्जों में बैठकर प्रियतम की चर्चा करेंगे !
पर तुम्हारे घरवाले ? ये कैसा प्रश्न था मेरा …….अब क्या पूछेंगें !
हंसी थीं गोपियाँ …………हम “प्रेम सन्यासन” हैं “सब मिथ्या है” तुम तो केवल कहते हो उद्धव ! पर हमें तो अनुभव है कि …….हमारे प्रियतम के सिवा सब मिथ्या है ……..एक मात्र सत्य हमारा प्रियतम ही है ।
ये कहकर वो गोपियाँ अपनें अपने घरों की ओर चली गयीं थीं ।
मैं उन्हें देखता रहा …..आहा ! मैं इन्हें क्या समझता था ……पर ये तो महान योगिनी हैं ………..इनके आगे बड़े बड़े योगी, बड़े बड़े त्यागी, बड़े बड़े ज्ञानी भी तुच्छ लगते हैं ।
मैं नंदभवन गया ………वहाँ फिर वो वात्सल्य की मूर्ति मैया यशोदा …मेरे लिये माखन लेकर बैठीं थीं ……..पता नही क्यों मैया को देखते ही मैं भी शिशु ही बन जाता हूँ ………माखन की कटोरी मेरे हाथ में न देकर उन्होंनें अपनें हाथों से मुझे आज खिलाया ।
ओह ! वात्सल्य के झरनें मानों फूट पड़े थे ………….मुझे रोमांच हो रहा था …………नेत्रों से मैया के अश्रु और वक्ष से दूध की धार बह चली थी ………वो कुछ देर बाद – मेरा लाला , कन्हैया ! मुझे कन्हैया कहकर पुकारनें लगीं थीं …………..
मैं उन्हें देखता रहा …..उनके वात्सल्य सिन्धु में अवगाहन करता रहा ।
मैया ! मैं बरसानें जाऊँगा ! मैने हाथ धोते हुये मैया से कहा था।
पर अब तो रात हो रही है…..सुबह चले जाना…….मैया का कहना था ।
नही ……..मुझे आज बरसानें जाना है …..नीरव रात्रि में बरसानें के कुञ्जों और सरोवरों का सौन्दर्य मुझे देखना है ………..वहाँ मेरे स्वामी नें विभिन्न लीलाएँ की थीं ……है ना मैया !
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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