श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! बृजवासी लौटे वृन्दावन !!
भाग 2
मूर्च्छा से जागे बृजराज …………….
उनके चरणों के पास उनका लाला कन्हैया है …………चारों ओर मनसुखादि बृजवासी और वसुदेव देवकी आदि सब थे ………
बृजराज नें जब अपनें सामनें देखा आचार्य गर्ग भी खड़े हैं …….बड़े संकोची हैं ये नन्द बाबा …….उठकर बैठ गए ।
“हे ब्रजपति ! मुझे क्षमा करें” ……….आचार्य गर्ग नें हाथ जोड़े ।
नही, नही भगवन् ! ऐसा पाप क्यों चढ़ा रहे हो आप मुझ पर ।
हाँ मैं अपराधी हूँ ………क्यों की मैने परिचय नही दिया और न मैनें स्पष्ट कहा कि ये वासुदेव है ………नन्दनन्दन नही ……….मुझे कह देना चाहिये था ……पर मै कह नही पाया ।
बृजराज नें हाथ जोड़े अपनें………और उठते हुए बोले ……..कोई बात नही ……….हमें भी पता नही था कि ये लाला हमारा जाया नही है ………….मनसुख नें सम्भाला बृजराज को ……….नेत्रों में अश्रुओं की बाढ़ है …..पर यहाँ रोकर क्या लाभ !
“मैं वृन्दावन जाऊँगा”……..बृजराज अपनें कक्ष की ओर चल पड़े थे ।
वसुदेव देवकी की हिम्मत नही हो रही कि वे बृजराज को कुछ कहें ……सांत्वना दें …….सांत्वना दें ? कैसी सांत्वना ? क्या कहें ?
पर नन्दनन्दन दौड़े थे अपनें बाबा के पीछे ……..कक्ष में बृजराज गए …….अपना सामान बाँधनें लगे…………
चरणों में गिर गए कन्हाई ………..हिलकियों से रो पड़े ………..
बाबा ! ये कृष्ण नन्दनन्दन ही है ……..”मैया” मैने केवल मैया को ही कहा है ….देवकी माता ….माता हैं ……पर मैया नही ।
हिलकियों से बस रोये जा रहे हैं कृष्ण……अब उनसे कुछ बोला नही जा रहा……..नन्दबाबा नें जब ये देखा तो उनसे रहा नही गया ……अपनें लाड़ले को इस तरह रोता हुआ देखकर वो स्वयं बिलख कर बोले ……..लाला ! मेरी तो कोई बात नही……..मैनें तो समझ लिया कि वसुदेव नें ही अदला बदली की है …….मैं पुरुष हूँ लाला ! समझ जाऊँगा ………समझ गया हूँ ……..पर तेरी मैया को कैसे समझाऊंगा ?
क्या कहूँगा उसे ? वो जब दौड़ी आएगी मेरे पास ….और कहेगी कहाँ है मेरा लाला ? तो बता मैं उसे क्या उत्तर दूँगा ………..मर जायेगी लाला ! तेरी मैया !
बाबा ! मेरी मैया को कहना उसका लाला शीघ्र आएगा ……….उसके बिना मथुरा में भी उसका कोइ नही है ………क्या करूँ मैं बाबा ! आप तो समझ रहे हो ना !
हा सब समझ रहे हैं हम ! अब तेरा मन मथुरा में लगनें लगा है …….हाँ …..क्यों जायेगा तू वृन्दावन ? हम लोगों नें तुझे केवल दुःख ही तो दिया है ……और दिया क्या है ? मनसुख ने रोते हुए कहा ।
ऐसा मत कहो भैया मनसुख ! तू तो मेरा प्रिय सखा है ना ?
तेरी गैया रोयेगी तो मैं उसे चुप करा न सकूँगा ………तेरी गैया घास नही खायेगी तो मैं कुछ नही कर पाउँगा ………..और मैं दुबला हो जाऊँगा ……ये कहते हुये कन्हैया से लिपट गया था मनसुख ! मैं अब मोटा नही रहूँगा …………हिलकियों से रो रहा है मनसुख ।
श्रीदामा ! मेरी राधा को सम्भालना ! कहना उसको ………….
क्या कहूँ ? श्रीदामा पूछता रह गया ……….पर श्रीकृष्ण आगे कुछ बोल ही नही पाये………मधुमंगल तोक, आदि सब सखाओं को श्रीकृष्ण अपनें हृदय से लगाकर रोते रहे ।
बाबा ! मेरी मैया को सम्भालना……मेरी गैया को ………..
बलभद्र नें आकर चरण स्पर्श किये ।
सामनें बैल गाडी खड़ी है…………महल से बाहर आये बृजराज समस्त सखा भी हैं ………..किसी एक के मुख में बिना देखे नन्द बाबा नें सबको एक साथ हाथ जोड़कर नमन किया ……और बैल गाडी में बैठ गए थे …………..
बाबा ! मेरी मैया को कहना ……मेरी गेंद को सम्भाल कर रखे …….ये श्रीदामा मेरी गेंद न ले जाए …………मुझे नही चाहिये तेरी गेंद …….श्रीदामा रोते हुये बोला …………और मेरी गोपियों को भी कहना कि मैं शीघ्र आऊँगा ………मैं वृन्दावन शीघ्र आऊँगा बाबा !
बृजराज अपने लाला को देखते रहे……उनकी बैल गाडी चल दी थी वृन्दावन की ओर ……
तात ! कितना रोये बृजराज और बृजवासी ये कहना व्यर्थ है…क्यों की इन्हीं सबके आँसुओं से ही तो बृज का जल खारा हो गया है ।
उद्धव भी अब रो रहे हैं विदुर जी के नेत्रों से निरन्तर अश्रु प्रवाह चल पड़ा है …….।
शेष चरित्र कल-
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