श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! बृजरानी का विचित्र उन्माद !!
भाग 2
मैं जाऊँगी मथुरा ……….हाँ, रहूँगी नही ……रात में लौट आऊँगी ……..
फिर कुछ सोचकर कहती हैं मैया…….मैं कुछ दिन तो रह सकती हूँ ना मथुरा में………लाला के कक्ष में ही रह जाऊँगी ………नीचे बिस्तर लगाकर सो जाऊँगी……..उसको रात भर देखती रहूँगी …..दिन भर उसकी हर वस्तु का सम्भाल करूंगी ।
वैसे भी मैं सेविका ही तो हूँ…….माता तो देवकी है……मैं तो धाय हूँ ……बस देवकी के पुत्र का सम्भाल किया है मैने……बाकी मैं हूँ क्या ?
यशोदा बोलती रहीं बृजराज सुनते रहे और रोते रहे ………………पूरी रात ऐसे ही रोते हुये बीत गयी थी ……………….बृजराज उठे ……सूर्योदय होनें को आया ……….ओह ! ब्रह्म मुहूर्त का समय बीत गया ……..यशोदा ! मैं यमुना स्नान करके आता हूँ ।
नन्द बाबा चले गए थे यमुना स्नान करनें ।
अरे ! कोई रथ आ रहा है ………..सुवर्ण का रथ है ……..और वही रथ है जिसको लेकर अक्रूर आया था ………यशोदा बाहर ही बैठती हैं आज कल ……और उनकी दृष्टि मथुरा के मार्ग में ही रहती है ।
दो चार बूढी गोपियाँ आजाती हैं ……और इन सबकी वही कन्हैया की बातें ………….बात करनें के लिये और है क्या ?
मेरा लाला आरहा है …………….रथ को देखते ही अपनें महल की ओर दौड़ीं यशोदा मैया ………..मेरा लाला आगया …….मैं कह रही थी ना ! आपतो मेरी बात मानते ही नही हैं ……..देखो ! रथ आया है रथ में मेरा लाला आया है ………..कितनी ख़ुशी से उछल रही थीं ये बेचारी मैया ।
बृजराज भी बाहर आये ……..रथ देखा ……रथ वही था सुवर्ण का रथ ….जिसे अक्रूर लेकर आया था ……….पर रथ खाली है ……….रथ महल में ही आकर रुका ………”.मेरा लाला कहाँ है”……….अब इस यशोदा मैया को कौन समझाये कि – लाला, कौन लाला ? हाँ यही प्रश्न किया उस रथवान नें ……बड़ी नम्रता से पूछा ……कौन लाला ?
मैया नें रथवान के प्रश्न का कोई उत्तर नही दिया ……..वो तो रथ के आगे पीछे सब देखनें लगीं थीं …………….
कौन हो , क्यों आये हो ? बृजराज नें पूछा ।
महाराज वसुदेव जी नें भेजा है मुझे …………..रथ वान बोला ।
पर क्यों ? बृजराज नें फिर पूछा ।
रोहिणी महारानी को बुलवाया है …..उनको लेनें के लिये मैं आया हूँ ।
ओह ! यशोदा नें जैसे ही सुना …….”अब रोहिणी भी चली जायेगी” ।
वो भागी महल के भीतर …….रोहिणी ! तुझे लेनें के लिये भैया वसुदेव नें रथ भेजा है ……..जा ! अब तू जा ! हाँ तू भी जायेगी ही …….
पर सुन ! मेरे लाला के लिये माखन ले जायेगी ? ले जाना …..मैं निकाल देती हूँ ………और सुन ! कहना तेरी मैया तुझे बहुत याद करती हैं , तू आजा ! कहना रोहिणी लाला से – वो अब तुझे नही मारेगी …..तू चोरी कर ….तू मटकी फोड़ ……सारे मटकी फोड़ दे बृज के ……तुझे कुछ नही कहेगी तेरी मैया ………..तू आजा ! एक बार तो आजा !
जीजी ! मेरा भी मन नही लगेगा मथुरा में ……पर आर्यपुत्र नें बुलाया है तो जाना तो पड़ेगा ही ।
यशोदा मैया के गले लगीं रोहिणी और गयीं ।
“सामान बांध कर रोहिणी भी गयी …..रथ में बैठ कर गयी रोहिणी”
हाँ , यहाँ अब वो क्यों रहेगी ? उसका बेटा बलराम वहीं है ……..उसके पति वहीं हैं …….यहाँ क्या है ? हंसती हैं यशोदा …….रोहिणी भी गयी …………रात्रि के समय ……..यशोदा का उन्माद फिर प्रारम्भ हो रहा था ।
शेष चरित्र कल –
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