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December 4, 2024 8:30 am

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दादरा नगर हवेली एवं दमन-दीव क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रभारी श्री दुष्यन्त भाई पटेल एवं प्रदेश अध्यक्ष श्री दीपेश टंडेल जी के नेतृत्व में संगठन पर्व संगठन कार्यक्रम दादरा नगर हवेली के कार्य पाठशाला का आयोजन किया गया.

श्रीकृष्णचरितामृतम्-! श्रीकृष्ण विरह में बाबरी गोपी !!-भाग 1: Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-! श्रीकृष्ण विरह में बाबरी गोपी !!-भाग 1: Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! श्रीकृष्ण विरह में बाबरी गोपी !!

भाग 1

क्या कहें तात ! बृज की दशा तो विचित्र बन गयी है ……..

बाबरे हो गए हैं सब ……….शून्य में तांकते रहते हैं बृजवासी ……..अपनें श्याम सुन्दर को याद करके समाधिस्थ हो जाते हैं ।

वियोग भी योग की तरह समाधि में पहुँचा देता है ………वि + योग …..ये योग से भी विशेष है ………यम – नियम, आसन , प्रत्याहार, धारणा ध्यान और अन्त में समाधि ………योग में इस तरह से पहुँचा जाता है समाधि तक …….पर वियोग में ? वियोग में तो इन सबकी आवश्यकता ही नही है ….सीधे ……प्रियतम की याद में हृदय जल उठा ……उसी जलनें में सब कुछ जल गया ……..मन, बुद्धि चित्त अहंकार सब जल गया ………..बस समाधि उपलब्ध हो गयी……।

समाधि ? आप जाग रहे हैं पर निद्रा नही है …….मनोलय भी नही है और शरीर का भान भी नही है ….किसी इन्द्रिय से मन कोई सूचना ग्रहण नही कर रहा …….और स्वयं किसी द्वन्द में भी उलझा नही है ………मतलब कोई मनोराज्य ही नही है ………इसी अवस्था का नाम समाधि है …….और इसी समाधि की स्थिति बृजजनों नें श्रीकृष्ण के वियोग से प्राप्त कर लिया था ।

“गोपीयाँ”

….जाती हैं यमुना जल भरनें के लिये…….बस वहीं खो जाती हैं ……”श्याम नही आये”…….मन में यही चलता रहता है उनके ……….क्या आएंगे ? फिर प्रश्न उठता है …………

घण्टों तक शून्य में ताकती रहती हैं ……….बुद्धि खो जाती है …..मन अमन हो जाता है ………शून्य में अहंकार विसर्जित हो गया है ।

लग गयी समाधि इन बाबरी गोपियों की ………….ये स्थिति घण्टों तक बनी रहती है ……….दिन में आईँ थीं अब शाम होनें को आई ।

उठती है गोपी ………..इसी गोपी के पति नें आकर झकझोरा था इसे तभी ये उठी थी ………..वापस देह भान हुआ था ।

पति को गौएँ भी तो देखनी हैं …………..आज कल गौएँ अपनें आप नही आतीं ………वो भी अपनें में खो गयी हैं ……मुँह बाये देखती रहती हैं मथुरा की ओर ………..घास भी नही चरतीं………….आँखों से अश्रु बहाती रहतीं हैं ………उनका गोपाल क्यों रूठ गया उनसे ……..इनके समझ में नही आता ।

गोप अपनी पत्नी को जगाकर गौएँ घेरनें के लिये चला गया है ।

गोपी उठती है ……..चलती है धीरे धीरे……..पैर कहाँ पड़ रहे हैं इसके इसको भी कहाँ पता ! सिर में गगरी है ……….ओह ! पैर में काँटा भी गढ़ गया………..

बैठ गयी ……..गगरी रख दी बगल में ……..बैठ गयी ………..

पहले भी गढ़ते थे काँटें तो …………खूब गढ़ते थे ………..कितनी इठलाती थी ये ………इतराती भी तो खूब थी ………

“श्याम सुन्दर ! मेरे काँटे निकालो”………हट्ट अब यही काम रह गया है मेरा …….श्याम सुन्दर मना कर देते …….देख लो ! माखन नही दूँगी !

क्रमशः …

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