श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! श्रीकृष्ण विरह में बाबरी गोपी !!
भाग 2
गोप अपनी पत्नी को जगाकर गौएँ घेरनें के लिये चला गया है ।
गोपी उठती है ……..चलती है धीरे धीरे……..पैर कहाँ पड़ रहे हैं इसके इसको भी कहाँ पता ! सिर में गगरी है ……….ओह ! पैर में काँटा भी गढ़ गया………..
बैठ गयी ……..गगरी रख दी बगल में ……..बैठ गयी ………..
पहले भी गढ़ते थे काँटें तो …………खूब गढ़ते थे ………..कितनी इठलाती थी ये ………इतराती भी तो खूब थी ………
“श्याम सुन्दर ! मेरे काँटे निकालो”………हट्ट अब यही काम रह गया है मेरा …….श्याम सुन्दर मना कर देते …….देख लो ! माखन नही दूँगी !
पता नही इसके माखन में ऐसा क्या है ……….श्याम सुन्दर तुरन्त बैठ जाते उस गोपी के पास ………और उसके पांवों को ………
महावर अच्छी लगी है ना ! दिखाती थी अपनें श्याम सुन्दर को …….
हाँ अच्छी लगी है ………देखो ना ! ये बिछुआ ……..और ये पायल ………काँटा निकाल दिया और जानें लगे श्याम सुन्दर …….अभी कहाँ जा रहे हो ……रुको रुको ………..ना , मुझे देर हो जायेगी जानें दे ……..और भाग गए ।
पर आज श्याम सुन्दर नही हैं यहाँ ……..रोती जा रही है ये गोपी और पैर का काँटा जैसे तैसे स्वयं निकाल लिया ।
फिर उठी ……गगरी जल की सिर पर रखी…….फिर भूल जाती है ये कि श्याम सुन्दर मथुरा जा चुके हैं……रूकती है चलते चलते ……रूकती इसलिये कि श्याम सुन्दर पीछे से आयें और इसकी मटकी फोड़ दें ………पर इसकी मटकी फूट नही रही……..क्या हुआ ? श्याम सुन्दर कहाँ गए ? क्यों नही आये आज मटकी फोड़नें !
फिर रुक जाती है ……….रात होनें वाली है अब …….ये बढ़नें लगती है अपनें घर कि ओर……..पर इसे भान तब होता है इस बात का कि मथुरा गए मेरे प्यारे…….जब वो श्रीराधारानी को कदम्ब के नीचे विरहाकुल देख लेती है ………..इसका तो वहीं रोना शुरू …….हिलकियों से रोना………रोते रोते घर कि ओर आती है ………सास प्रतीक्षा में है ……..”आज मटकी फूटी नही”……सास को देखते ही बोलती है ………….वो समय भी था जब मटकी फूटती थी ………कंकड़ मारकर फोड़ देता था वो नटखट ………पर उस समय की बात ही अलग थी ……सास डाँटेगी …….ये पता होते हुये भी एक उल्लास उमंग मन में होता था ……डर मन में होता सास का ……पर उस डर में भी टीस प्यार की होती ……….उफ़ !
पर आज मटकी फूटी नही है ……..फिर भी सास के गले लगकर ये रो रही है ……हिलकियों से रो रही है ……और ये कहते हुये रो रही है कि …….”मेरी मटकी नही फोड़ी उस नटखट नें”………सास भी रो रही है अपनी बहू के साथ ।
उद्धव रो पड़े हैं इस विरह का वर्णन करते हुये ………विदुर जी सुबुकते हुये देखे जा सकते हैं ……….ओह !
शेष चरित्र कल –


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