श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! मथुरा में – “यज्ञोपवीत संस्कार” !!
भाग 2
रोहिणी ! रोहिणी ! देवकी नें आवाज दी ।
……..पर एकान्त में बैठीं हैं रोहिणी ……..”यशोदा जीजी नें आना अस्वीकार कर दिया है ……..और भैया बृजराज भी नही आरहे”……..यही सूचना आई है अभी अभी रोहिणी के पास ।
रोहिणी ! देवकी नें फिर आवाज दी ।
हाँ ……हाँ हड़बड़ाते हुये उठीं ।
सुनो रोहिणी ! कृष्ण को मैं स्नान कराऊंगी ……बलराम तुम्हारा पुत्र है इसलिये बलराम को तुम करा देना…….देवकी नें रोहिणी को कहा ….माता ही मंगल स्नान कराती है उपनयन में ।
रोहिणी मन ही मन सोचनें लगीं ……….फिर तो यशोदा जीजी का हक़ है ये, कि कृष्ण को वही स्नान कराये …….जनम देंने मात्र से क्या होता है …..कृष्ण के हृदय से पूछो ……..वो किसका पुत्र है ? देवकी का या यशोदा का ? कृष्ण का रोम रोम बोलेगा – मैया ! ।
नही , बलराम का भी स्नान आपही करवा दो………..रोहिणी नें कहा …………..पर रोहिणी ! ये तो माता का गौरव होता है ……….नेत्रों से अश्रु बह चले रोहिणी के ………गौरव ? कैसा गौरव ! अगर ये गौरव मिलना है तो उन बृजरानी को मिलना चाहिये ……..जिसका सब कुछ लाला है ………..उसके जीवन में और कुछ नही है ………पर ये बात मुख से बाहर नही आयी रोहिणी के ……….”आप ही स्नान करा देना”…..बस इतना ही बोलीं ………देवकी नें फिर जिद्द भी नही कि ….क्यों कि सब जानते हैं वृन्दावन से आयी हैं रोहिणी ……..और उदास सी रहती हैं …..किसी से बात भी ज्यादा नही करतीं …….यमुना को देखती रहतीं हैं …….और अश्रु बहाती रहती हैं ।
माता देवकी नें ही मंगल स्नान कराया स्वयं भी किया …….आचार्य गर्ग नें पूजन प्रारम्भ किया था……..गणपति का पूजन प्रथम, नवग्रह का पूजन फिर तिल से भरे पात्र में सुवर्ण रखकर विप्रों को दान ।
विधि निष्ठुर होती है …….मात्र लंगोट पहनें हैं राम श्याम ……….उनका वो श्याम अंग चमक रहा है…..बलराम का गौर अंग दिव्य लग रहा है ।
तभी नाई आया………ये राज परिवार का नाई था…….आकर बैठा ……इसके सामनें सिर झुकाये बैठे हैं त्रिलोकी नाथ ।
ओह ! इतनें सुन्दर घुँघराले केश ………..मैं इन्हें काटूँ ………….नेत्रों से झरझर अश्रु बह चले उसके …….मुझ से ये नही होगा ………रोनें लगा वो नाई तो……..श्रीकृष्ण बोले ……..ऐसा मत करो ……विधि है ये पूरी करनी ही होगी ……..तुम केश काटो………श्रीकृष्ण का आदेश न मानने कि किसमें हिम्मत है ? सृष्टि कर्ता भी काँपते हैं इनके आगे ।
काटनें ही पड़े केश …….पर बाबरा हो गया वो नाई तो ….अपना शस्त्र फेंक दिया …….तोड़ दिया …….और बोला आज के बाद मैं किसी के केश नही काटूँगा ……….जिन हाथों नें त्रिभुवन सुन्दर के सुन्दर केश काटे हों …….वो फिर ऐसे वैसे के केश को क्यों छूए ?
उस नाई को मणि हीरे मोती मिले …….पर उसको तो बहुत कुछ मिल गया था अब उसे कुछ नही चाहिये …..वो परमानन्द में लीन हो गया ।
यज्ञोपवीत धारण कराया दोनों को आचार्य नें …….गायत्री मन्त्र की दीक्षा दी ………अग्नि और विप्रों के समक्ष तो ये हो ही रहा था ……..अब भिक्षा माँगनें के लिये निकले थे ये दोनों…….मुण्डित केश, कन्धे में यज्ञोपवीत …….मृगचर्म बगल में दवाये ।……”भगवती भिक्षाम् देहि” माँगनें लगे भिक्षा …………महालक्ष्मी रूप बदल कर प्रकट हो गयीं भिक्षा देनें के लिये……..स्वयं अन्नपूर्णा रूप बदल कर आईँ और भिक्षा देनें लगीं ……….यदुवंशियों की नारियाँ तो गदगद् थीं इस समय ……सबनें भिक्षा दी ………और उस भिक्षा को लाकर अपनें गुरुदेव के चरणों में समर्पित किया श्रीकृष्ण और बलराम नें ।
हा हा हा हा हा हा हा ………………आज कई दिनों के बाद थोड़ी झपकी ली है यशोदा मैया नें …………तभी ……..वो हंस पडीं ………
बृजराज डर गए हंसते हुए यशोदा को सुनकर ……हड़बड़ाते हुये उठे …….क्या हुआ यशोदा ? उठाना ही पड़ा यशोदा मैया को ।
मेरा लाला ! कैसे मुण्डित हो गया था ………..और वो कैसा लग रहा था ….बिना केश के …………..वो भिक्षा मांग रहा था …………..
मैं नही थी ना वहाँ ……तो बाद में मेरे लिये कह रहा था कि ……..मैया नही आई ……….मैया ! कुट्टी …….अब मैं तुझ से नही बोलूंगा !
फिर एकाएक सजल नयन हो गए यशोदा के …………सुनिये ना ! अब ग्रीष्म ऋतु आरही है ………..वहाँ तो गर्मी होगी ना ! उसे बुला लीजिये ना यहाँ ……वृन्दावन में कुञ्ज हैं ……….घनें वन हैं ……यहाँ शीतलता है ……….अब वहाँ तो स्फटिक के महल हैं ….धूप पड़ते ही गर्म हो जातें हैं वो महल …………उसे यहाँ ले आइये ना …………..मैं रात भर पँखा करती रहूँगी उसे…….पंखे में जल का छींटा देकर पँखा करूंगी ….ले आइये ना उसे ……….।
अब क्या कहें नन्दबाबा…..वो भी बस रो ही तो सकते हैं…..रो देते हैं…..और अपनी बृजरानी मैया, ये तो अपनें लाला के लिये पागल है ।
शेष चरित्र कल –


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