श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! जब धन्य हुई अवन्तिका !!
भाग 2
श्रीकृष्ण चन्द्र जु को मेरे बुद्धि – विवेक पर भरोसा था ….इसलिये वो मुस्कराकर मेरी हर बात सुन रहे थे ।
मै उस समय जो बोला ……वो कंस की मृत्यु के बाद बन आयी परिस्थिति के हिसाब से बिल्कुल उचित था …..और श्रीकृष्ण चन्द्र जु को काशी न भेजना मेरा अपना तर्क था ।
काशी विद्या के लिये जानी जानी है ……..ये सर्व विदित है …….मैने कहा ……..”और आपको पता है …..कंस की पत्नियाँ अपने मायके जा चुकी हैं ……..और उनका मायका काशी के निकट है ……यानि “मगध राज्य” ………..जरासन्ध श्रीकृष्ण के प्रति आक्रोशित है ……उसका वश चले तो वो वध कर देगा “………..उद्धव कहते हैं ……मैने कहा ……काशी के समस्त विद्वानों के सम्पर्क में है जरासन्ध …………वो श्रीकृष्ण के ऊपर कभी भी प्रहार करवा सकता है ………इसलिये मैं कह रहा हूँ कि काशी न भेजा जाए श्रीकृष्ण चन्द्र जु को ।
इतना कहकर मैं बैठ गया था……उद्धव कहते हैं……मेरी बातें सबको अच्छी लगीं……..तब श्रीमान् वसुदेव जी नें मुझ से ही पूछा …..उद्धव ! फिर तुम ही बताओ ……कहाँ भेजा जाए श्रीकृष्ण बलराम को ? मैने स्पष्ट कहा…….अवन्तिका ( उज्जैन ) ।
पर वहाँ कोई विद्वान् हैं ? या कोई गुरुकुल ? अक्रूर जी नें मुझ से प्रश्न किया था ।
हाँ …..एक परम तपश्वी और विद्वान् ऋषि हैं ……उनका नाम है सान्दीपनि……वो अद्भुत ऋषि हैं विद्वत्ता में अद्वितीय हैं…..समस्त शास्त्र वेद पुराणादि सब में निष्णात हैं ………..मेरी प्रार्थना है कि गुप्त रूप से श्रीकृष्ण चन्द्र जु को वहाँ भेजा जाए ……….गुप्त रूप से इसलिये कह रहा हूँ क्यों कि जरासन्ध अभी बहुत क्रोधित है …..वो कुछ भी कर सकता है ……….इसलिये सबको कह दो कि श्रीकृष्ण और बलराम काशी ही जायेंगे विद्या के लिये ……..पर अवन्तिका भेजा जाए ।
तात ! मैनें बड़ी नम्रता से ये सब बातें कहि थीं …..और मैं बैठ गया ।
ठीक है फिर “अवन्तिका” की तैयारी कि जाए …….श्रीवसुदेव जी नें आज्ञा दी ।
तात ! सच में अवन्तिका सप्त पुरियों में आता ही था ………पर श्रीकृष्ण के वहाँ जानें कि बात से ही अवन्तिका तीर्थ के अधिदैव आनन्दित हो उठे थे । अब और धन्य होनें जा रही थी अवन्तिका ।
शेष चरित्र कल –
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