श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! गुरु कृपा की अद्भुत कहानी – “ऋषि सान्दीपनि” !!
भाग 1
अवन्तिका पुरी धन्य हो गयी थी……..वैसे ये पुरी तो महाकाल के कारण धरा धाम को पावन कर ही रही थी …….किंन्तु श्रीकृष्ण चन्द्र का विद्याध्यन के लिये यहाँ आना ……यहाँ के अधिदैव के लिये ये आल्हादकारी था ……..महाकाल स्वयं आनन्दित हो उठे थे ।
इसी अवन्तिका पुरी में एक ऋषि थे सान्दीपनि…….सर्वशास्त्र निष्णात थे …….वेद वेदान्त के अच्छे ज्ञाता थे ……..इतना ही नही कला आदि के ये सरस मर्मज्ञ भी थे……..शायद ही कोई विद्या होगी ऐसी जो ये नही जानते हों…….पर मात्र इसके कारण ही भगवान श्रीकृष्ण किसी को अपना गुरु बनायेगे ? नही ।
क्यों कि ऐसे ऋषि विश्व में और भी थे……..
फिर क्या कारण है कि सान्दीपनि को ही ये गौरव प्राप्त हुआ श्रीकृष्ण के गुरु बननें का ? क्या कारण था ?
उद्धव स्वयं ही समाधान करते हैं –
मात्र विद्वान् को ही श्रीकृष्ण गुरु नही बनायेगे……..तात ! एक बात समझिये……सान्दीपनि ऋषि को उनके गुरु का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त था……इन्हें जो भी विद्या प्राप्त हुयी थी वो इनके “प्रयास” से नही …..गुरु के “प्रसाद” से ।…..आगे उद्धव इनके बारे में बताते हैं – देखा जाये तो विद्या और बुद्धि में सान्दीपनि विद्याकाल में बहुत पिछड़े हुए थे……इनके साथ के अन्य विद्यार्थी इनसे बहुत आगे थे ……..सान्दीपनि के गुरुदेव नें बहुत प्रयास किया पर कुछ हो न सका …..बुद्धि मन्द तो नही पर कुशाग्र भी नही थी ……….इन्हें कोई पाठ कण्ठस्थ नही होता था ………पर ये सान्दीपनि हृदय के पवित्र थे ……इनका हृदय भाव और श्रद्धा से परिपूर्ण रहता था ……..गुरु के चरणों का ही ये ध्यान करते रहते थे………”सान्दीपनि ! तुमसे कुछ न होगा …..तुम कुछ नही कर पाओगे” ……गुरु जी जब सान्दीपनि से ये बोलते तब ये ब्राह्मण कुमार सान्दीपनि मुस्कुराकर कह देते ……..मुझे कुछ करना भी नही है ……बस आपकी सेवा मिल जाए ……..यही करते हुये अपनें जीवन को बिता लूँगा ।
उद्धव विदुर जी को सान्दीपनि ऋषि के बारे में बता रहे हैं ।
एक दिन गुरुकुल में समस्त विद्यार्थी पढ़ रहे थे ………एक श्लोक, चार दिन हो गए ऋषि सान्दीपनि को कण्ठस्थ नही हो रहा था ……..आज सान्दीपनि से वह श्लोक पूछा……..बालक सान्दीपनि कुछ नही बोला …..सिर झुकाकर खड़ा रहा……गुरु जी नें फिर पूछा ……पर सान्दीपनि को याद ही नही था तो सुनाता क्या ? एक श्लोक तुमसे कण्ठस्थ नही होता ? उस दिन चिल्ला उठे थे गुरुदेव ……..क्रोध में भरकर आगे बढ़े और पहली बार एक थप्पड़ सान्दीपनि के गाल में मारा था ।
सान्दीपनि रोता रहा ……….पर वहाँ से गुरुदेव भी चले गए थे ।
भोजन नही किया सान्दीपनि नें ………वो बस रोता ही रहा ……….
गुरुदेव के कान में ये बात पहुँची……..उन्हें दुःख हुआ ……..जिसकी जितनी मति होती है वो उतना ही तो विद्या को ग्रहण कर पाता है ।
गुरुदेव गए सान्दीपनि के पास…….वत्स ! , सान्दीपनि उठकर आगये चरणों में सिर रखकर रोनें लगे……गुरुदेव बोले …….मैने तुझे थप्पड़ मारा ना…….तुझे लगी होगी इसलिये इतना रो रहा है तू ?
नही , नही गुरुदेव ! “आपको लगी होगी”………आपके ये कोमल हाथ ……..मुझे मारनें में आपको कष्ट हुआ होगा ना ! सान्दीपनि ये कहते हुये रो रहा था …..गुरुदेव गदगद् हो गए बालक सान्दीपनि को हृदय से लगा लिया ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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