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November 21, 2024 5:16 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!!-गुरु कृपा की अद्भुत कहानी – “ऋषि सान्दीपनि” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!!-गुरु कृपा की अद्भुत कहानी – “ऋषि सान्दीपनि” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! गुरु कृपा की अद्भुत कहानी – “ऋषि सान्दीपनि” !!

भाग 2

गुरुदेव गए सान्दीपनि के पास…….वत्स ! , सान्दीपनि उठकर आगये चरणों में सिर रखकर रोनें लगे……गुरुदेव बोले …….मैने तुझे थप्पड़ मारा ना…….तुझे लगी होगी इसलिये इतना रो रहा है तू ?

नही , नही गुरुदेव ! “आपको लगी होगी”………आपके ये कोमल हाथ ……..मुझे मारनें में आपको कष्ट हुआ होगा ना ! सान्दीपनि ये कहते हुये रो रहा था …..गुरुदेव गदगद् हो गए बालक सान्दीपनि को हृदय से लगा लिया ।


वत्स !

सान्दीपनि के पास अर्धरात्रि को आज गुरुदेव पधारे ।

गुरुदेव को देखते ही उठकर चरणों में साष्टांग प्रणाम करनें लगा था सान्दीपनि ।

आप क्यों आये मुझे ही बुला लेते गुरुदेव ? सान्दीपनि नें हाथ जोड़कर ये बात कही थी ।

वत्स ! ग्रह गोचर के हिसाब से कल से ही मैं 12 वर्ष के लिये विक्षिप्त हो रहा हूँ ……….क्या तुम मेरी उन दिनों सेवा कर सकते हो ?

गुरुदेव नें सान्दीपनि से पूछा था ।

गुरुदेव ! मैं आपको छोड़कर कहीं नही जाऊँगा ……….मैं आपके साथ ही रहूँगा ………आपका सुख दुःख सब मेरा है ।………सान्दीपनि नें अपना मस्तक गुरुदेव के चरणों में रख दिया ।

मैं तुम्हे मार पीट भी सकता हूँ ……..सान्दीपनि नें हँसकर कहा – आप मेरे प्राण ले लेलीजिये मैं उफ़ नही करूँगा ।

गुरुदेव लौटकर चले आये सान्दीपनि के सिर में हाथ रखकर ।

समय हुआ ………ग्रह का खेल था ……..पागल हो गए सान्दीपनि के गुरुदेव……..सान्दीपनि नें देखा ……गुरुकुल में विद्यार्थियों को मारना पीटना शुरू कर दिया था उन्होंने ………..विद्यार्थी सब भाग गए ……गुरुकुल छोड़कर ही भाग गए………सान्दीपनि नें गुरुकुल के एक कक्ष में अपनें गुरुदेव को बन्द किया…….और भोजन इत्यादि सब देते थे ……स्वयं अपनें हाथों से भीतर जाकर खिलाते थे …..उस समय गुरुदेव सान्दीपनि को पीटते पर ये सब सह लेते …..जबरदस्ती मुँह में भोजन देते थे …….फिर कक्ष बन्दकर के कराहते हुये बाहर आते ……….उनको ये सेवा करते हुये बहुत कष्ट सहना पड़ता था………कभी कभी लाठी से मारते उनके गुरुदेव, रक्त बहनें लगता सिर से सान्दीपनि के……पर ये अपनें गुरुदेव को भोजन कराकर ही बाहर आते ……….और फिर कक्ष का द्वार बन्द ।

तात ! इस तरह बारह वर्ष बीत गए ……..कैसे बीतें होंगे !

बस बारह वर्ष के बाद ये ठीक होगये थे……..मानसिक रोग इनका ठीक हो गया …………….

वत्स ! तुम कौन हो ? सान्दीपनि को देखा तो उनके गुरुदेव नें पूछा ।

मैं , मैं आपका सेवक सान्दीपनि । सान्दीपनि नें चरणों में वन्दन करते हुये कहा ।

ओह ! तुम गए नही ? सारे विद्यार्थी मुझे छोड़कर चले गए जो उचित ही था …….पर तुम क्यों नही गए ?

चरणों में अश्रु बहाते हुये सान्दीपनि नें कहा …..कहाँ जाता गुरुदेव !

तुम्हारे ये घाव ? गुरुदेव नें पूछा ।

कुछ नही …..सान्दीपनि नें नही बताया …….पर गुरुदेव प्रतापी थे …..वो समझ गए …………..सिर में हाथ रखा उन्होंने और अपनें नेत्र बन्द किये …..”समस्त विद्याएँ तुम को आजायें सान्दीपनि” आशीर्वाद दे दिया था गुरुदेव नें ।

“आगयीं विद्याएँ तो”……..गुरु की कृपा हो जाए तो क्या असम्भव था !

इतनें से भी सन्तुष्टि नही मिली गुरुदेव को …..वो शिष्य की सेवा से पूरे ही रीझ गए थे ……….उन्होंने तुरन्त कहा……..”.भगवान श्रीकृष्ण के गुरु बननें का गौरव तुम्हे प्राप्त होगा” ………हे सान्दीपनि ! तुम जाओ अवन्तिका पुरी , गुरुकुल की स्थापना करो वहाँ …….देखना एक दिन तुम्हारे यहाँ विद्याध्यन करनें के लिये स्वयं श्रीकृष्णचन्द्र पधारेंगे …..और तुम उन्हें विद्या का दान दोगे ………..विद्यानिधि को विद्या का दान देंने वाले तुम ही होगे ……..जाओ सान्दीपनि ! जाओ !

तात ! सान्दीपनि महान विद्वान् हो गए थे ……….ये कृपा थी गुरुदेव की …….ये “प्रसाद” था ………..स्वयं का “प्रयास” नही ……..गुरु का प्रसाद …….आहा ! तभी तो नन्दनन्दन इनके शिष्य बनें ।

उद्धव नें विदुर जी को कहा …………और मौन हो गए थे ।

शेष चरित्र कल –

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