श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! महर्षि सान्दीपनि गुरुकुल !!
भाग 2
दूध चिउरा खाकर ये सो गए, ……थके थे रात्रि भी हो गयी थी ।
हाँ रात्रि में एक बार देखनें के लिये अवश्य आये थे महर्षि सान्दीपनि…..गहरी नींद में सोता देख लौट गए ।
ॐ गणेशाय नमः …..ॐ सरस्वत्यै नमः ………
पुष्प दूर्वा बिल्व पत्र इन सबसे पूजन किया भगवती वीणापाणी का और गणपति का ………महाकाल का पूजन बड़ी श्रद्धा से किया था श्रीकृष्ण नें ।
सुदामा अब अन्य छात्रों के साथ नही उठता बैठता …..ये श्रीकृष्ण के साथ ही रहता है …….विद्याध्यन के समय भी ।
“वेदाध्यन”…….हे श्रीकृष्ण बलराम ! कल ये वेद कि ऋचा तुम सुनाओगे ………कण्ठस्थ करके लाना ………सान्दीपनि नें पाठ दिया ।
गुरु जी ! मैं हूँ ना ……सब पढ़ा दूँगा ………….सुदामा बोला ।
हे कृष्ण ! ये बालक तुम्हारा मित्र बनने योग्य है …….क्यों कि इसके मन में न छल है न दम्भ …….जैसा है वैसा ही रहता है ……विप्र कुल में जन्मा है ……..सत्य ही बोलता है ।
सुदामा की ओर देखकर श्रीकृष्ण मुस्कुरा रहे थे …….पर सुदामा कहता जा रहा था गुरु जी तो कुछ भी कह देते हैं ………सुनो ! मैं तुम्हे सब सिखा दूँगा ….तुम चिन्ता मत करो ……….हंसते हुए श्रीकृष्ण नें सुदामा को कहा …….तुम्हारे जैसे मित्र होते हुए मुझे क्यों चिन्ता होगी ?
गुरु जी को प्रणाम करके उठ गए थे ये तीनों अब अन्य छात्र आगये थे पढ़नें के लिये ।
चलो रटो , सुदामा नें कहा श्रीकृष्ण से – वेद के ये मन्त्र तुम्हे गुरु जी को सुनानी हैं तुम्हे पता है ना ?
पर श्रीकृष्ण नें कोई उत्तर नही दिया हंसते हुए बोले ……….अब किसकी पढ़ाई होगी ? अब कुछ देर में “शस्त्र विद्या” सुदामा बोला…….पर मेरी रूचि नही है ….इसलिये मैं जाता ही नही है इस शस्त्र विद्या को पढ़नें के लिये ।
सुदामा बोलता बहुत है ………….
पर तुम तो जाओ ! तुम क्षत्रिय हो ना ? सुदामा नें पूछा ।
“हाँ” कहा श्रीकृष्ण नें । फिर तो तुम जाओ ………..
पर तुम्हे भी सीखनी चाहिये ये विद्या ? श्रीकृष्ण बोले ।
क्यों मुझे क्यों ? तुम क्षत्रिय किस दिन काम आओगे ! क्या हमारी रक्षा नही करोगे ? और तुम न सही……..जिसनें हमें जनम दिया है वो परमात्मा तो करेगा ही………इतना कहकर सुदामा वेद का पाठ करनें लगा ।
हंसते हुये श्रीकृष्ण शस्त्र विद्या सीखनें चले गए ।
धनुष , तलवार, भाले गदा – अन्य शस्त्रों को भी सिखा रहे हैं महर्षि ।
धनुष चलाया महर्षि नें ……..उनको देखकर श्रीकृष्ण नें ऐसा धनुष चलाया कि अन्य छात्र तो देखते ही रह गए थे ।
बलराम जी नें गदा अच्छी सीख ली ……….शेष रूप को सीखनें की आवश्यकता क्या ! पर अवतारकाल की मर्यादा तो है ही ।
उपनिषद् की शिक्षा…………..
सुदामा इसमें भाग लेता है ……और सबसे अच्छा विद्यार्थी है ये ।
बात बात में श्रीकृष्ण से कहता है ………मुझ से पूछ लेना जो समझ में न आये ……क्यों की ये वेदान्त है सबकी समझ में कहा आता है ।
श्रीकृष्ण उसकी हर बात पर हंसते हैं ………..और हाँ ही कहते हैं ।
अब समय है ……….”राजनीति”…………..क्षत्रिय के बालक ही इसमें भाग लेते हैं ………..राजनीति में साम दाम दण्ड भेद ………कैसे और कहा प्रयोग करनें हैं ………..विस्तृत अध्यन कराते हैं महर्षि ।
विभिन्न उपवेदों की शिक्षा ……………..
अब पता है ……अब शाम होनें वाली है ……अब गान्धर्ववेद …..यानि संगीत । सुदामा बताता है ।
बालकों ! अपनें अपनें प्रिय वाद्य उठाओ ……….महर्षी सान्दीपनि नें कहा ।
सबनें उठाये ………पर श्रीकृष्ण नें कोई वाद्य नही उठाया ।
तुम्हे संगीत प्रिय नही है क्या ? सुदामा नें उठा लिया है …….मृदंग …..ये इसे प्रिय है ……….ताल में पारंगत है पारंगत है सुदामा ।
कन्हैया ! पीछे से दौड़ते हुये आये थे बलराम जी ……..
ये वाद्य इसको प्रिय है बलराम जी नें कहा ।
…..बाँसुरी ! सुदामा बोला ।
बाँसुरी को देखते ही नेत्रों में जल भर आये थे श्रीकृष्ण के …..और जल नयनों में इसलिये भी आगये थे कि बहुत दिन के बाद बलराम नें “कन्हैया” कहा था ।
बजाओ हे कृष्ण बजाओ ! ऋषि सान्दीपनि नें कहा …….श्रीकृष्ण नें बाँसुरी ली ….रुके थोडा ……….सुदामा बोला ….डरो मत बजाओ ……जो नही आएगा मैं बता दूँगा ……….
अन्य छात्र देख रहे हैं ……ये दोनों सुन्दर बालक कौन हैं !
और बाँसुरी इसके हाथ में क्या अद्भुत लग रही है ……….
सब देख रहे हैं …………थोडा झुके श्रीकृष्ण, प्रणाम किया ।
“सरस्वती देवी को प्रणाम स्वीकार है” ……अब बजाओ ……पीछे से सुदामा बोलता जा रहा है ।
पर महर्षि नें ऊपर देखा …….हंस वाहिनी तो स्वयं इनको प्रणाम कर रही थीं । ……फिर ये प्रणाम किसे कर रहे थे ? विदुर जी नें पूछा .
उद्धव बोले – तात ! ये प्रणाम कर रहे थे अपनी अल्हादिनी शक्ति श्रीराधा रानी को ।
कुछ देर मौन होगये ये कहते हुये उद्धव ………..फिर आगे प्रसंग को सुनानें लगे ।
बाँसुरी बजाई श्रीकृष्ण नें …………..गुरुकुल झूम उठा …..महर्षि की समाधि लग गयी ………सुदामा नाच रहा है …….अन्य छात्र आनन्दित हो उठे …………..श्रीकृष्ण नें बन्द कर दिया बजाना और प्रणाम करके वो चल दिए अपनें स्थान में ।
श्रीकृष्ण सुन रहे हैं ……..बाहर सुदामा नें पूछा बलराम जी से …….कितनी मधुर बाँसुरी बजाई ना कृष्ण नें !
बलराम जी नें कहा ……..सुदामा ! यहाँ तो कुछ नही बजाई ……..बजाता था ये वृन्दावन में बाँसुरी !
श्रीकृष्ण भीतर से ये बात सुन रहे थे ।
आह ! भरी वृन्दावन को याद करके श्रीकृष्ण नें ।
शेष चरित्र कल –


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