श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! अब गुरु दक्षिणा की बारी थी !!
भाग 2
धनुष साथ में था श्रीकृष्ण के ……अपार जल राशि लहरा रही थी सामनें ……..सागर को देखकर जैसे ही धनुष को खींचा …..सागर तो भयभीत हो गया ……..त्रेतायुग को भूला नही है अभी तक ……श्रीरघुनाथ जी का वो बाण …………..इसलिये सागर अधिदैव रूप से प्रकट हुआ था वहाँ पर ।
“मेरे गुरुपुत्र को वापस करो”…….आदेश था श्रीकृष्ण का ।
मेरे पास नही है भगवन् ! आपके गुरुपुत्र । हाँ आज से कुछ वर्ष पहले एक शंख रूप असुर नें आपके गुरुपुत्र का हरण किया था …….वो शंख के रूप में रहता है ………मैं स्वयं उससे आतंकित हूँ । सागर के मुख से इतना सुनते ही सुदामा और बलभद्र को वहीं बैठाकर…..श्रीकृष्ण अपार जल राशि में कूद गए ……….वो नीचे जा रहे हैं समुद्र के तल पर …….तभी वो शंख रूप असुर मिला ………….श्रीकृष्ण के लिये ये क्या था ………असुर का तो वध किया पर वहाँ गुरुपुत्र नही मिला ….पर हाँ ….एक शंख अवश्य मिल गया ……..पाञ्चजन्य शंख ।
क्षणों में ही ऊपर आगये श्रीकृष्ण ………..सुदामा नें पूछा …….गुरुपुत्र मिला ? नही सुदामा ! फिर क्या करोगे कृष्ण ! सुदामा सचिन्त बोला था ………..मैं अब यमपुरी जा रहा हूँ ………क्यों की गुरुपुत्र अब स्थूल देह को त्याग चुका है ……….वो वहीं होगा ।
बलभद्र नें कहा …..मैं भी चलूँ ? नही भैया ! आप और सुदामा यहीं रहो !
श्रीकृष्ण गए यमपुरी में ……..और वहाँ जाकर पाञ्चजन्य शंख बजाया ….जोर से बजाया …………सब कुछ बदलनें लगा शंख के नाद से ।
वहाँ के लोग शान्त हो गए ………..अग्नि शीतल हो गयी …….वातावरण में जो नकारात्मक ऊर्जा थी ……….वो दिव्य हो गयी थी ।
चित्रगुप्त के खाते से सबके हिसाब किताब मिटनें लगे ………..स्वर्ग नर्क के जीव अब प्रसन्न थे ………अतिप्रसन्न ।
ये क्या हो रहा है ? चित्रगुप्त नें दौड़कर यमराज को सारी बातें बताईं ………..यमराज समझ गए मेरे परमाराध्य श्रीकृष्ण चन्द्र जु नें शंख नाद किया है ….वो दौड़े दौड़े आये ……..चरणों में प्रणाम किया ।
आदेश हे भगवन् ! यम चरणों में है श्रीकृष्ण के ।
“मेरे गुरुपुत्र को लौटा दो”………श्रीकृष्ण की आज्ञा ।
पर सूक्ष्म शरीर है मेरे पास ……………
स्थूल देह मैं दे दूँगा उसे ……….श्रीकृष्ण नें कहा ।
यमराज को क्या आपत्ति हो सकती है ……जब सर्वेश्वर ही सबकुछ करनें वाले हैं …..गुरुपुत्र का सूक्ष्म देह वापस किया यमराज नें ।
उसे लेकर समुद्र के किनारे आये श्रीकृष्ण …….और वहाँ स्थूल देह प्रदान करके उस गुरुपुत्र को सान्दीपनि के पास ले आये थे ……..।
माता नें जब अपनें पुत्र को देखा ……..वो तो आनन्द के कारण झूम उठीं ….अपनें पुत्र को हृदय से लगाये कर वात्सल्य रस खो गयीं थीं ।
हे कृष्ण ! तुमनें जो कार्य किया है वो सामान्य मानवी नही कर सकता ……मुझे पता है मेरा पुत्र कहीं खोया नही था…….उसे शंख रूप असुर नें मार दिया था सागर में……तुम नें मेरे मृत पुत्र को जीवन देकर मुझे प्रदान किया…….तुम ईश्वर हो, तुम सर्वेश्वर हे कृष्ण ! जगत का आदि अन्त तुम से ही है……मैं धन्य हुआ तुम्हे शिष्य के रूप में पाकर ।
भाव से भरे सान्दीपनि बोले जा रहे थे …………श्रीकृष्ण नें गुरु चरणों में वन्दन किया और रथ की ओर जब बढ़े ………..सुदामा दौड़ा …….कृष्ण ! कृष्ण !
मुड़े श्री कृष्ण ……हृदय से लगा लिया …….मित्र सुदामा ! मैं जहाँ रहूँगा तुम्हारा ऋणी ही रहूँगा ………तुम्हारा त्याग , तुम्हारा निःश्वार्थ प्रेम …..
नेत्रों से अश्रु छलक पड़े थे श्रीकृष्ण के ….सुदामा तो अपलक देखता रहा अपनें सखा को …………सुदामा ! “अब तेरी बारी है तू आना मेरे पास ………हम ऐसे ही आनन्द लेंगे” …….रथ में बैठे दोनों बलराम और कृष्ण …….रथ चल पड़ा था ……………सुदामा अब रोता रहा अपनें मित्र को वापस मथुरा जाते हुए देखकर ……फिर चिल्लाकर रुंधे कण्ठ से बोला ………कृष्ण ! तू आना !
“हाँ मथुरा से कहीं जाना पड़ा तो तेरे पास ही आऊँगा सुदामा !
कृष्ण भी चिल्लाकर बोले थे चलती रथ से …………
रथ दौड़ रहा था मथुरा की ओर …………अवन्तिका पुरी से ।
शेष चरित्र कल –


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