श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! तेरो लाला दुःख पावे – “उद्धव प्रसंग 2” !!
भाग 2
उद्धव ! मैं क्या बताऊँ उन बृजवासियों के बारे में …….तुम चार भक्तों में उन्हें बाँट रहे हो ? वो न आर्त हैं , न मुझे कभी आवाज देकर पुकारेंगे ….न मुझ से कभी कुछ चाहेंगे ……..अर्थार्थी भी नही हैं ……वो तो मुझे ही देंगे …….दिया ही है उन्होंने मुझे …..ये कृष्ण उन्हीं का ऋणी रहेगा सदैव ………….पता है उद्धव ! वो मेरी मैया ! मेरी यशोदा मैया ! गर्मियों में रात रात भर सोती नही थी ……..मुझे पँखा करती रहती थी ………मुझे थोड़े भी स्वेद बिन्दु आजाते तो वो उठकर बैठ जाती …..गीला वस्त्र मेरे माथे में रखकर पँखा ……….गर्मियों में वो कभी रात में सोई नही ………….मेरे लिये माखन निकालती थी …….श्रीकृष्ण रोते जा रहे हैं और बताते जा रहे हैं उद्धव को ……..मैया के यहाँ दास दासियों को कमी नही थी ………फिर भी मेरे लिए दास दासियों से नही ….स्वयं ही माखन निकालती ………निकालते हुये गदगद् हो जाती …ओह उद्धव ! मुझे जब माखन खिलाती थी ना …मैं खानें के बाद कहता – बस हो गया मेरा पेट भर गया …………तो वो मेरा पेट देखती थी …..दबाती थी मेरे पेट को ……….फिर कहती अभी तो और भी जायेगा इसमें माखन ………..उद्धव ! मैं क्या कहूँ उस बृज की बात !
मेरे ग्वाल बाल ! मनसुख मेरा सखा ! मेरा श्रीदामा ! ओह ! यहाँ भी आये थे ये लोग ……जब जानें लगे तो मुझ से बोले ……..चल कन्हैया वृन्दावन ! मैं कुछ न बोल सका उनसे ……..वो मेरी और देखते रहे वो सोच रहे थे मैं कुछ कहूँ …..पर मैं भी निष्ठुर बना रहा ।
उद्धव ! मैं क्या करूँ ? वृन्दावन को मैं भूल नही पा रहा !
गोपियाँ ! वो बाबरी गोपियाँ ……..मुझे देखनें के लिये क्या क्या नही करती थीं …………झुठ बोलतीं , परिवार वालों की डाँट खातीं ……पतियों की ताड़ना भी उन्हें मुझ से विचलित नही कर पाती थी ।
तो आप कहना चाहते हैं ……ये भक्त नही है ?
नही है …….गोपियाँ भक्ता नही है ……..ये मेरी अपनी हैं …………मैं उनका सर्वस्व हूँ ………भक्त जो होता है वो मन मुझ से लगाता है …पर गोपियों नें अपना मन मुझ में नही लगाया ………..गोपियाँ का मन ही मैं बन गया हूँ उद्धव ! यमुना के किनारे ये कहते हुए श्रीकृष्ण गिर गए थे ………..इस बार तात ! मैं उन्हें सम्भाल न सका था ।
कुछ देर में उन्हें होश आया था ……..वो मैया ! मैया ! मैया ! कह रहे थे ।
“तेरो लाला बडौ ही दुःख पावे या मथुरा में मैया !”
वो बोले जा रहे थे ….उनके नेत्र बन्द थे ……..हृदय कि धड़कनें तेज चल रही थीं …उनके देह से कमल कि गन्ध नें यमुना के किनारे उड़ रहे भ्रमरों को निमन्त्रण दे दिया था ………वो सब इधर उधर मण्डरानें लगे थे ।
मैया ! यहाँ गेंद नही हैं, खेलवे वारो कोई सखा नही है …….मैया ! जाडेन में तातो पानी करके न्हवायवे वारो कोई नही है ……यहाँ माखन देवे वारो कोई नही है ……….मैया ! सब महाराज वासुदेव कहें हैं ….पर माखन चोर कहके तोते शिकायत करवे वारो कोई नही है ……मैने कितनौ खायो नाय खायो काहूँ कुँ मतलब नही है ……छप्पन भोग तो हैं यहाँ पर , रोटी में माखन रख के दैवे वारो कोई नही है , पेट पकड़ के “लाला ! आज कम खायो तेनें” जे कहवे वारो कोई नही है ।
उफ़ ! ये कैसी स्थिति हो गयी थी मेरे श्रीकृष्ण की ।
तात ! मैं तो स्तब्ध हो गया था ।
शेष चरित्र कल –
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877