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November 21, 2024 5:45 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! बृज बिसरत नाहीं – “उद्धव प्रसंग 4” !!-भाग 1: Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! बृज बिसरत नाहीं – “उद्धव प्रसंग 4” !!-भाग 1: Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! बृज बिसरत नाहीं – “उद्धव प्रसंग 4” !!

भाग 1

नाथ ! ऐसे विकल मत होइये…….अपनें आपको संभालिये !

मेरे गुरु बृहस्पति जी कहते थे – श्रीकृष्ण तो सबकी आत्मा हैं …..वो तो घटघटवासी हैं……एक ही हैं जो सर्वत्र हैं और सर्वदा हैं ……..नाथ ! आपनें ये उपदेश नही किया उन गोपियों को ……आपनें उपदेश नही किया उन ग्वालों को ? तात ! मैने श्रीकृष्ण को भाव समाधि से जगाया था ……वो उठे थे…….मैं उनको लेकर अब महल की ओर आरहा था …..तब मैने उन्हें ये सब कहा …..उद्धव नें विदुर जी को बताया था ।

“उद्धव ! प्रेम में उपदेश नही होता…….वहाँ उपदेश की मान्यता भी नही है …..वहाँ तो बस प्रेम होता है ….अधिकार होता है”…….इतना कहकर श्रीकृष्ण चुप हो गए थे………क्यों की प्रेम वाणी का विषय नही है ….ये बात मैं समझ नही पा रहा था पर श्रीकृष्ण इस बात को समझकर ही चुप हो गए थे ।

महल के द्वार पर माता देवकी खड़ी हैं………..उन्हें देखकर श्रीकृष्ण नें अपनें अश्रुओं को पोंछ लिया था ।

चरण वन्दन किये श्रीकृष्ण नें ……..संकोच करती हैं माता देवकी जब जब श्रीकृष्ण उनके चरण छूते हैं ।

“कृष्ण ! मुझे पता नही था कि तुम्हे क्या प्रिय है ! आज मैने रोहिणी से पूछा तो उन्होंने बताया” , माता देवकी बोलीं थीं ।………महल में आगये थे हम लोग ।

माता के हाथों में कुछ था …..थाल थी………उसमें उन्होंने श्रीकृष्ण के लिये कुछ रखा था ।

सोचो कृष्ण ! क्या है इसमें ?

देवकी माता श्रीकृष्ण से पूछ रही थीं ………..पर श्रीकृष्ण आज गहरी उदासी में डूबे हुये हैं …….मैं ही दोनों कि बातों को सम्भाल रहा था ।

क्या है माता ! आप दिखा दीजिये ! मैने कहा ।

उद्धव ! इसकी प्रिय वस्तु है…..जो ये “वृन्दावन” में खाता था…..तुम्हे क्या बताऊँ ये इस सामान्य सी वस्तु के लिये चोरी करता ।

श्रीकृष्ण का मुखमण्डल फिर “वृन्दावन” ये नाम सुनते ही गम्भीर हो गया था ।

“माखन” – मैने पूछा ।

हाँ , माखन ………ये इसे बहुत प्रिय था ………ये चोरी करता था वृन्दावन में इसके लिये उद्धव ! यशोदा इसको माखन देती थी……शायद पेट भरकर नही देती थी …….इसलिये चोरी करता था ……है ना कृष्ण ! देवकी माता मुस्कुराते हुये बोले जा रही थीं ….

…..पर ये क्या !

श्रीकृष्ण रो पड़े थे ………एकाएक रो पड़े …..हिलकियों से रो पड़े …….

भयभीत-स्तब्ध हो गयीं थीं माता देवकी ……….क्या हुआ ! फिर मेरी ओर देखकर बोलीं ……..गलती हो गयी क्या मुझ से ? फिर श्रीकृष्ण से बोलीं……..क्या तुम्हे मेरा ये सब लाना प्रिय नही लगा ?

माता ! मेरे लिये आप छप्पन भोग लाओ ………मुझे कोई आपत्ति नही है ……पर मेरे लिये ये माखन ……..माखन मत लाना ! वो रोये जा रहे थे ……….उनका रुदन बढ़ता ही जा रहा था ।

पर क्यों ? इतना तो पूछ ही सकती हूँ ना मैं ?
देवकी माता नें पूछा ।

“क्यों कि माखन को देखकर मुझे मेरी मैया यशोदा याद आती है”….

ओह ! ये कहते हुए फूटफुट कर रो पड़े थे मेरे नाथ ।

कैसे माखन निकालती थी वो ! सुबह ही उठ जाती थी ……..दास दासियों से नही ……अपनें हाथों से ……..कहती थी मैया …..अपनें लाला के लिये मैं ही माखन निकालूंगी ………….वो माखन देती थी ……पेट भर के देती थी ………मेरी मैया यशोदा को मैं भूलना चाहता हूँ ………पर भुला नही पा रहा ………उसकी वो सूनी आँखें जो मथुरा कि ओर लगीं रहती हैं ………वो आँखें मुझे चैन नही लेनें देतीं ।

माता ! माखन मत रखना मेरी थाल में……..मैं माखन नही खाऊँगा !

क्रमशः …
शेष चरित्र कल –

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