श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! उद्धव बृज की ओर – “उद्धव प्रसंग 6” !!
भाग 1
मुझे सजा धजा कर मेरे नाथ रथ तक ले आये थे ।
वो सुवर्ण का रथ…..मथुरा नरेश का रथ था वो ….पर श्रीकृष्ण को ही दे दिया था महाराज उग्रसेन नें ……इसी रथ में बैठकर वृन्दावन से मथुरा आये थे श्रीकृष्ण……….इसलिये मुझे भी इसी रथ में भेज रहे थे ।
मेरा हाथ पकड़ कर रथ तक लाये और मुझे बिठाया ।
जाओ उद्धव ! मेरे वृन्दावन में जाओ ……….
मैने रथ में बैठे बैठे ही सिर झुकाया उन कमलनयन के चरणों में……और रथ की लगाम खींच दी ……चल पड़े थे अश्व ।
“आराम से आना हैं उद्धव ! मैं मथुरा में हूँ यहाँ की तनिक भी चिन्ता मत करना…….तुम जब तक रहना चाहो रह लेना वृन्दावन में …….अपना ही घर समझना ……….तुम्हारा बड़ा ध्यान रखेगी मेरी मैया ! उद्धव ! मैया के हाथ का माखन अवश्य खाना ….हो सके तो उसकी डाँट भी खाना…..हंसे श्रीकृष्ण ये कहते हुये …..पर हंसी में भी आँसू थे उनके नयनों में ।……..मेरे बाबा के पास भी बैठना ……उनके मन की बात जानना …….. देवत्व से भी ऊँचे हैं मेरे नन्द बाबा ……….और मेरे सखाओं से भी मिलना………ओह ! ये फिर प्रेमोन्माद से ग्रस्त हो गए थे …….मेरा रथ चल रहा था मेरे श्रीकृष्ण रथ के साथ ही दौड़ रहे थे …….और मुझे कहते जा रहे थे ……..एक मास तो रहना उद्धव ! तभी तुम सबको समझ सकोगे ……….”पर मैं तो घड़ी भर घड़ी में लौट आऊँगा ……..मैं सन्ध्या तक में वापस आजाऊंगा नाथ “
नही , इतनी जल्दी भी क्या है……..आज ही क्यों आना उद्धव ! कुछ दिन तो बिताओ मेरे वृन्दावन में……मेरा वृन्दावन ! वो जड़ नही है चैतन्य है ……..वो दुःखी होता है प्रसन्न होता है…….और हाँ , मेरी गोपियों से भी तो तुम्हे मिलना है ना !
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –
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