श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! उद्धव बृज की ओर – “उद्धव प्रसंग 6” !!
भाग 2
नही , इतनी जल्दी भी क्या है……..आज ही क्यों आना उद्धव ! कुछ दिन तो बिताओ मेरे वृन्दावन में……मेरा वृन्दावन ! वो जड़ नही है चैतन्य है ……..वो दुःखी होता है प्रसन्न होता है…….और हाँ , मेरी गोपियों से भी तो तुम्हे मिलना है ना !
नाथ ! आप ऐसे न दौड़ें………मैं रथ को रोक लेता हूँ………
तात विदुर जी ! मैं जैसे रथ को रोकनें लगा………नही नही…..अब रोको मत रथ को ……….जाओ तुम ! खड़े होगये श्रीकृष्ण और मुझे बोले – जाओ उद्धव ! जाओ !
रथ को मैं धीरे धीरे ही चला रहा था ……..पर फिर ये क्या हुआ … श्रीकृष्ण फिर दौड़ पड़े थे……..”उद्धव ! राधा के बारे में तो मैने तुम्हे कुछ कहा ही नही……..वो प्रेम का साकार रूप हैं …..उनको कहना उनका श्याम सुन्दर दुःखी है ……बहुत दुःखी है …….राधे ! तुम्हारे बिना श्याम व्यर्थ है” ………….वो आगे फिर बोलनें वाले थे एकाएक अपनें अश्रुओं को पोंछ लिया उन्होंने ……….नही उद्धव ! ये सब मत बोलना ……….मैं दुःखी हूँ ये मत बोलना ……….क्यों की मेरा दुःख श्रीराधा से सहन नही होता ………….मैं दुःखी हूँ सुनकर वो और दुःखी हो जायेगीं ……….नही उद्धव ! कहना श्रीकृष्ण मथुरा में प्रसन्न है ।
मैं रो रहा हूँ ……मैं उनके वियोग में तड़फ़ रहा हूँ ये सब मेरी प्रिया से बिल्कुल मत कहना …………..उद्धव ! उनका प्रेम विलक्षण है …….मैं प्रसन्न हूँ मथुरा में ऐसा उन्हें लगेगा तो वो प्रसन्न होंगी………..अपना सुख दुःख श्रीराधा का है नही है …….मेरे सुख दुःख में ही वो जीती हैं ।
ये कहते हुये मेरे नाथ गिर गए थे …………मैने रथ रोकना चाहा पर उन्होंने संकेत किया ………..जाओ ! जाओ !
मैं उन्हें देखता रहा…….वो भी मुझे देखते हुये अपनें सुकोमल कर हिलाते रहे थे ……….मैं दूर तक उन्हें देखता रहा था ।
शेष चरित्र कल –


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