श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! चिन्मय वृन्दावन – “उद्धव प्रसंग 7” !!
भाग 1
ओह ! ये वृन्दावन है ? मैं स्तब्ध – चकित था ।
तात ! मैने देवताओं का वन नन्दनकानन देखा था ……मेरे गुरु बृहस्पति जी मुझे वहाँ लेकर गए थे …….वो कानन सुन्दर था अति सुन्दर, सुन्दरतम था ……..मुझे स्मरण है उन देवों का वन देखकर मैं अपनें गुरु बृहस्पति जी को बारबार धन्यवाद दे रहा था ………पर ये वृन्दावन !
ये तो सुन्दरतम नही ……ये तो चिन्मय है …….हाँ, वो नन्दनकानन भले ही विश्व ब्रह्माण्ड का सुन्दर वन था पर ये वृन्दावन तो चैतन्य है……..इसका कण कण चैतन्य है ……..इसके वृक्ष इसकी लताएँ सब बोलती हैं …….पूछती हैं……अपनी ओर खींचतीं हैं …….उद्धव विदुर जी को बता रहे हैं जब उनके रथ नें वृन्दावन में प्रवेश किया तब उन्हें जो अनुभूति हुयी ……वो अद्भुत थी ।
क्या पूछ रही थीं वृन्दावन की लताएँ ! क्या कहकर अपनी और खींच रहे थे वहाँ के वृक्ष ? विदुर जी नें पूछा ।
तात ! क्या कहूँ मैं………मेरे रथ नें जैसे ही वृन्दावन की सीमा में प्रवेश किया – “स्वागत – समुत्सुका” , वृन्दावन को देखकर सर्वत्र मुझे तो प्रथम यही अनुभूति हुयी…..मानों सब स्वागत के लिये उत्सुक थे ।
मुझे देखते ही वृक्ष झूमनें लगे थे …….लताएँ हिलकर अपना आनन्द अभिव्यक्त कर रही थीं ………..मुझे देखते ही नाना सरोवरों के कमल खिल गए थे ………..सुरभित हवाएँ चल पडीं थीं ………….स्वच्छ भूमि ………कुछ सूखे पत्ते भी थे …….पर हवा नें उन्हें क्षण में ही उड़ा दिया था ……मेरे देखते ही देखते शुष्क और पीले पत्ते गायब ही हो गए थे ……उनके स्थान पर हरित भूमि मानों बिछ गयी थी……मैं जिधर देख रहा था उधर ही हरीतिमा के सिवा और कुछ नही दिखाई दे रहा था ।
उद्धव विदुर जी को आगे बताते हैं – तात ! मैं अब धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था ………..पर उसी समय मेरे कन्धे पर कनक लता झुक गयी थी ……उस समय न वायु का चलना था ……न किसी नें झुकाया था ……..वो स्वयं झुक गयी थी ……..और मानों मुझ से पूछ रही थी…….”कहाँ हैं मेरे श्याम” !
मैं चौंक गया…..तभी दूसरे ही क्षण मेरी पीताम्बरी “कदम्ब” में उलझ गयी थी , ….और वो कदम्ब भी यही पूछ रहा था …..”श्याम कहाँ” ।
पुष्प झरनें लगे थे मेरे ऊपर…..और सबका यही प्रश्न था – “श्याम कहाँ हैं” इतना ही नही अब तो पक्षी आगये थे …..तोता मैना कोयल सब आकर मेरे रथ के आगे पीछे मण्डरानें लगे थे ……..कहाँ हैं श्याम !
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
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