श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! कहा कहूँ बृज की बात – “उद्धव प्रसंग 8” !!
भाग 1
कहा कहूँ मैं बृज की बात ! तात ! हर दिशाओं से ऐसी आवाज आती थी मानों कोई रो रहा हो ।
मैं जब वृन्दावन पहुँचा था तब शाम हो गयी थी ……..मेरा रथ चला ही कहाँ था ………मुश्किल से चार कदम ही बढ़ पाते थे अश्व ……..फिर रूक जाते ………कपि मोर शुक पपीहा सब हमारे रथ को देखते ……कपि तो भीतर झाँक कर देखते ………फिर उदासी से भर जाते क्यों की वहाँ उनका “श्याम” नही था ……..मेरी ओर देखते ……मैं उन्हें क्या कहता ……….ऐसे वृन्दावन में हमारा प्रवेश हो रहा था …….इस वृन्दावन को देखकर लग रहा था यहाँ सबका अपना कोई है तो वो है “श्याम”…………बाकी सब पराये हैं ……और वही श्याम इन्हें छोड़कर चला गया था ।
मैं आगे बढ़ रहा था धीरे धीरे…….धीरे धीरे इसलिये कि यहाँ के लता पत्र भी मुझे चेतन लग रहे थे …….श्याम प्रेमी लग रहे थे ……..मैं किसी लता पत्र को रौंदते हुये आगे नही बढ़ सकता था ……और यहाँ की लताएँ थीं कि………मुझे देखकर और झुकीं जा रही थीं …….कोई तो मेरे पैरों से लिपट रही थीं । उद्धव विदुर जी को अपनी बात बता रहे थे ।
तभी मैने देखा सामनें कुछ ग्वाल बाल खड़े हैं ………….पीले पीले वस्त्र सबनें पहनें हैं ……..मुझे तो बाद में पता चला कि अन्य सब रंगों को इन बृजवासियों नें त्याग ही दिया था ……..सब पीले वस्त्र ही पहनते थे श्रीकृष्ण के मथुरा जानें के बाद ………….तात ! मैने देखा …..बस नन्दबाबा को छोड़कर ……वो तो तपश्वी की तरह रहनें लगे थे इन दिनों ……बाकी बूढ़े बड़े ग्वाल भी पीले ही रंग के वस्त्र पहन रहे थे ।
वो ग्वाल बाल लौट रहे थे अपने घरों की ओर ……उद्धव नें कहा ।
फिर उद्धव विदुर जी से बोले – तात ! ये नित्य आते थे ………मथुरा की सीमा में आकर खड़े हो जाते थे……..इनके साथ गौएँ भी आती थीं …..वो तृण नही चरतीं ……बस मथुरा की ओर ही देखती रहतीं ……उनके नेत्रों से अश्रु बहते रहते ।
मुझे तो इन्हीं ग्वाल बालों नें बताया कि …..ये ग्वाल बाल नित्य आते हैं मथुरा की सीमा में और देखते रहते हैं……..कोई भी मथुरा से आता तो ये लोग उस परदेशी से पूछते …..हमारा श्याम सुन्दर कैसा है ?
वो जब कुछ ज्यादा नही बता पाता …….तब ये लोग उसके पैर पकड़ लेते ………..रोते बिलखते और कहते ……कुछ तो बताओ हमारा श्याम सुन्दर हमसे रूठ गया है ……मथुरा जाकर बैठा है ………उसके सम्बन्ध में बता दो ……वो भागता ………..उद्धव हंसते हुये अपनें आँसुओं को पोंछते हैं ………इस तरह से तात ! लोगों नें उस मार्ग से चलना ही छोड़ दिया है ………कोई नही जाता उस मार्ग से ।
मेरे रथ को उन ग्वालों नें देख लिया था ……………….
क्या बताऊँ तात ! मानों मृत देह में प्राण आगये थे………….जैसे योगी शून्य में त्राटक करता है ………..वैसे ही वो सब ग्वाल बाल रथ पर त्राटक करनें लगे थे ।
एक कह रहा था – आगया हमारा श्याम सुन्दर ……….दूसरा ख़ुशी से उछलते हुये कह रहा था ……मैने तो कहा था ना ……….वो आएगा ……देखो आगया ! तीसरा, चौथे ग्वाले का हाथ पकड़कर नाचते हुये
कह रहा था मेरी दाहिनी आँख फड़क रही थी ……..मैने तो तुझ से कहा था ना ! देख आगया हमारा कन्हैया ।
ये रथ ? एक ग्वाल बाल दूर रथ को देखते हुए कुछ बोल रहा था ।
हाँ हाँ मैं पहचानता हूँ ये वही रथ है ……….जिसमें हमारा श्याम सुन्दर मथुरा गया था ……….लो अब आगया ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –
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