श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! आँसू के पनारे – “उद्धव प्रसंग 9” !!
भाग 1
कौन होगा ये ? नीलसुन्दर है कोई ! कहीं अक्रूर तो नही है ?
नही, अक्रूर नही है उसका नील वर्ण नही था …..तो कोई और होगा । पर ये मथुरा वारे अब यहाँ पर क्यों आये हैं ! वैसे भी मथुरा का कार्य तो सध गया … कंस मारा गया ………….वहाँ के लोग प्रसन्न हैं ……….फिर अब यहाँ क्यों आया है कोई !
तात ! मेरे रथ को देखकर ग्वाल बाल विभिन्न चर्चा करनें लगे थे ……उनकी चर्चा से ही लगता था कि ….मथुरा के नाम से इन्हें चिढ सी होनें लगी थी ……..और हो भी क्यों नही ……इनके प्राणधन को मथुरा नें ही तो चुराया था ……..मधुवन ! ये नाम कितना कड़वा है …..नाम में ही मधु है बाकी तो विष से भरा है ये मधुवन …………..तभी दूसरा ग्वाल बाल बोला …………विष ही तो लगाकर आयी थी वो प्रथम पूतना …….मधुवन से ही आयी थी …………….
पर ये क्या ! तभी ग्वाल बालों नें रुदन प्रारम्भ कर दिया था……….
मधुवन ! कैसे हरे भरे रहते हो तुम ………..हम तो अब सूख गए ……कन्हैया की विरहाग्नि में जल कर भस्म हो गए हैं ………पर तुम बड़े इठला रहे हो ……..कैसे ?
क्यों न इठलाये …..क्यों न इतराये ……हमारा बृजधन कन्हैया तो अब इनके पास ही है ना ! अब हमारे पास है क्या ! हंसी आती है कभी कभी जिसके साथ बैठकर ताल में कंकड़ मारा करते थे ……….जिसके साथ खेलते थे …………जिसके साथ माखन खाते थे ………और दुर्भाग्य – आज उसी की कहानी सुननी पड़ रही है………अब हमारे पास क्या है ! थे कभी हम भी धनी …….श्याम धन जो हमारे पास था…….मधुवन को हम भी अंगूठा दिखाते थे ……….पर आज ?
क्यों हमें चिढ़ा रहे हो मधुवन ! हम खड़े खड़े झुलस गए हैं ……..दावानल नें लील लिया है…….हाँ तुम तो हरे हो …….हरे भरे ।
“ये दूत है महाराज उग्रसेन का”…….श्रीदामा नें सखाओं से कहा ।
“पर अब हमारे पास देनें के लिये कुछ नही है”
…….मनसुख बोल पड़ा था ।
हाँ वैसे अतिथि जो आये और वो जो माँगे दे देना चाहिए …..हमनें आतिथ्य धर्म का पालन करके अपनें आपको बर्बाद कर लिया …..मधुवन से आया था वो अक्रूर ……….हमनें स्वागत में कोई क़सर नही छोड़ी थी ……पर ऊँगली पकड़ कर पहुँची पकड़ ली उसनें तो ……हमारे सर्वस्व को ही ले गया………अब हम क्या दें इसे !
अब क्या माँगनें आया है ये मधुवन का वासी !
हे तात विदुर जी ! उनकी विकलता देखनें जैसी थी…..वो श्रीकृष्ण बिन ऐसे तड़फ़ रहे थे जैसे मछली जल बिन ।
तोक सखा हंसा था ……विचलित करनें वाला था वो दृश्य …….श्रीकृष्ण सखाओं के आँसू बह रहे हैं और बाहर से हंस भी रहे है………”कंस मर गया है ना ……कंस को मारनें के लिये हमारे कन्हैया को आकर ले गया अक्रूर”………..अब फिर किसी को भेज दिया है कि जाओ , अरे ! उस मरे कंस का श्राद्ध भी तो करना होगा ना …..तो अब फिर कोई आया है यहाँ के किसी को ले जानें” ।
मधुमंगल धरती में गिर गया था …………अब हमारे पास कुछ नही है मथुरा वासियों ! हम तुम्हे क्या दें ।
मैं स्तब्ध रह गया था……..मुझे बारम्बार रोमांच हो रहा था ……कभी कभी मेरी ऐसी स्थिति हो रही थी ……कि मैं भी रोऊँ …..दहाड़ मारकर रोऊँ ……इनके साथ मिलकर रोऊँ ……….नही बनना मुझे मधुवन का ……..मुझे वृन्दावन अपना लग रहा था अब ……….ये क्या हो रहा है मेरे साथ मैं कुछ नही समझ पा रहा था, ओह !
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल-


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