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September 13, 2025 11:48 pm

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महान भक्त कवि सूरदास जी की 544 वी जयंती : Kusuma Giridhar

महान भक्त कवि सूरदास जी की 544 वी जयंती : Kusuma Giridhar

जय श्री कृष्ण
🌹🔥🌹
आज महान भक्त कवि सूरदास जी की 544 वी जयंती है ।
जन्म से अंधे सूरदास जी छोटी उम्र में अपना घर छोड़कर कुटिया बनाकर रहते थे ।उनकी कही हुई बातें सही निकलती थी इसलिए लोग उन्हें स्वामी कहने लगे थे ।
आगरा और मथुरा के बीच गऊ घाट पर एक बार महाप्रभु वल्लभाचार्य पधारे ।सूरदास जी को उनके बारे में जानकारी मिली तो सूरदास जी उनके दर्शन करने गये। वहां उन्होंने वल्लभाचार्य जी के आदेश पर दो पद सुनाएं ।
एक पद था
हरि मैं सब पतितन को टीको ।
और पतित सब दिवस चार के
मैं तो जनमत ही को ।
महाप्रभु जी ने उनसे कहा कि आप सूर हो अर्थात शूरवीर। फिर ऐसे घिघियात काहे हो ।
कछु हरीलीला पद गाओ।
अर्थात शूरवीर हो करके और तुम इस प्रकार दीनता क्यों दिखा रहे हो ।भगवान की लीला का वर्णन करो ।
सूरदास जी ने कहा कि मैंने तो प्रभु की लीला का कभी वर्णन सुना ही नहीं ।आप मुझे शरण में लो और प्रभु लीला का दर्शन करें।
तब उन्होंने महाप्रभु जी को अपना गुरु बनाया ।वल्लभाचार्य जी ने उनको भागवत की अनुक्रमणिका सुनाई। दिव्य ज्ञान उनके हृदय में स्थित हुआ ।
कुछ लोग मानते हैं कि वह जन्मांध नहीं थे ।परंतु सूरदास ने स्वयं एक पद में लिखा है ।
किन तेरो गोविंद नाम धर्यो।


सूर् की बिरिया निठुर व्है बैठे ,
जनम अंध कर्यो।।

एक और पद उन्होंने अपने गुरु के लिए लिखा है उसमें वो लिखते हैं ।
भरोसो दृढ़ इन चरणन केरो।
///**/
सूर कहा कहै द्विविध आंधरो बिना मोल को चेरो

अर्थात मैं तो दोनों प्रकार से अंधा हूं ज्ञान के नेत्र भी नहीं है और बाहरी नेत्र भी नहीं।

सूरदास जी ने दृष्टिकूट पद भी लिखे हैं ।
जन्म से अंधे ,शिक्षा से वंचित ,कवि पर गुरु की कृपा से ,मां सरस्वती प्रसन्न हुई ,और उन्होंने हिंदी साहित्य को इतना महान योगदान दिया कि उनको हिंदी साहित्य का सूर्य कहा गया।

दृष्टिकूट पद में जो कहा गया है वह एकदम से समझना कठिन होता है ,इसीलिए इसको दृष्टि कूट कहा है ,दृष्टि की ओट में पहाड़ ,उसको पार करें तो अर्थ समझ में आएगा ।

एक पद और उसका अर्थ पढ़ें 🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚

कहा कहो परदेसी की बात।
मंदिर भाग अर्ध करि कही गए ,हरि भख देखो जात ।
शशि रिपु वरष ,सुर रिपु युग भर ,हर रिपु की अब घात ,
नक्षत्र वेद ग्रह मिल अर्ध कर, सोई बने अब खात।
रवि पंचक ले गए स्याम घन, ताते मन अकुलात,
सूरदास वश भई विरह के ,कर मींडत पछतात।।

हे सखी, प्रियतम परदेश चले गए, अब परदेशी की बात, स्मरण क्या करना
वे निठुर हैं, मंदर अर्थात घर, इसका एक भाग अर्थात पक्ष, इसका आधा अर्थात एक सप्ताह की अवधि में लौट आऊंगा ऐसा वचन दिया था, परंतु हरि अर्थात सिंह, इसका भोजन अर्थात मास, एक मास, महिना हो गया ,वे लौट कर नहीं आये।

शशि अर्थात चन्द्रमा, उसका रिपु -शत्रु अर्थात दिन, एक दिन एक वर्ष जैसा बीतरहा है और सूर -सूर्य, उसकी शत्रु रात, वह रात तो एक युग जैसी बड़ी ,लंबी लगती है । हर अर्थात शिव, उनका शत्रु, अर्थात काम के प्रहार हो रहे हैं, इससे बहुत दुख पा रही हूं।
नक्षत्र=२७,वेद=४,ग्रह =९ ,इनका योग चालीस होता है, इसका आधा अर्थात बीस,। तो अब विष खाने पर ही दुख से मुक्ति मिलेगी ।

सूर्य से पांचवे ग्रह बृहस्पति का एक नाम जीव है, जीव मने मन, दिल। मेरा जीव तो श्याम ले गये, इससे मैंव्याकुल हूं। ।सूरदासजी कहते हैं कि विरह से व्याकुल हो हाथ मींड कर कहरही है कि मैं झूठे वचनों पर विश्वास कर पछता रही हूं ।

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