जय श्री कृष्ण
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चक्रवर्तीसम्राटसुधन्वाकेताम्रलेखकाहिंदी_अनुवाद~~
श्री महाकालनाथाय नमः
श्री महाकाली नमः
“””श्री सदाशिव अपरावतार शंकर की चौसंठ कला विलास विहार मूर्ति , बौद्घ आदि दानवों के लिए नृसिंह मूर्ति , वैदिक वर्णाश्रम शिद्धान्त के उद्धारक मूर्ति, मेरे साम्राज्य की व्यवस्थापक मूर्ति, विश्वेश्वर गुरु के पदपर गायी जाने वाली मूर्ति, सम्पूर्ण योगियों के चक्रवर्ती, श्री शंकराचार्य के चरण कमलों में (प्रणाम करके) भ्रमर के समान मैं सुधन्वा राजा चंद्रवंश चूड़ामणि महाराज युधिष्ठिर की परम्परा से प्राप्त भारतवर्ष का राजा हाथ जोड़कर विनम्र निवेदन करता हूँ।
●भगवत्पाद ने दिग्विजय करके सभी वादियों को पराजित किया।
●सत्ययुग के समान चारो वर्ण–आश्रमों को स्थापित करके पूर्णरूप से वैदिक मार्ग पर शास्त्रानुसार (वैदिक धर्म) में नियुक्त किया।
●ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर तथा शक्ति आदि देवताओं के स्थानों को, जो कि सम्पूर्ण देश में स्थित है, उनका उद्धार किया।
◆समस्त ब्राह्मण कुलों का उद्धार किया।
●सम्पूर्ण देश में हमारे जैसे राजकुलों द्वारा ब्रह्मविद्या का प्रचार प्रसार करके, अध्ययन-अध्यापन द्वारा उन्नत किया।
◆हम जैसे प्रमुख ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि की प्रार्थना से सम्पूर्ण देश के चारों दिशाओं में चार राजधानियों, पूर्व में जगन्नाथ, उत्तर में बदरी नारायण, पश्चिम में द्वारका तथा दक्षिण में श्रृंगी ऋषि के क्षेत्र में श्रृंगेरी के क्रमानुसार भोगवर्धन, ज्योति, शारदा तथा श्रृंगेरी नामक मठ स्थापित किये।
■उत्तर दिशा में योगीजनों की प्रधानता वाले धर्म की मर्यादा की रक्षा सरलता से करने वाले ज्योतिर्मठ में श्री त्रोटकाचार्य जिनका दूसरा नाम प्रतर्दनाचार्य को, श्रृंगी ऋषि के आश्रम श्रृंगेरी मठ में उन्ही के समान प्रभाव वाले पृथ्वीधाराचार्य जिनका दूसरा नाम हस्तामलकाचार्य है को,भोगवर्धन जगन्नाथपुरी में अत्यंत अभीष्ट, उग्र स्वभाव वाले, सबकुछ जानने में समर्थ, पद्मपादाचार्य जिनका दूसरा नाम सनन्दनाचार्य है को, तथा बौद्ध कापालिक आदि सम्पूर्ण वादियों की प्रधानता वाली पश्चिमी दिशा में वादी रूपी दैत्यों को परास्त करके द्वारका शारदा मठ में भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ द्वारा निर्मित भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर को जैनियों द्वारा ध्वस्त देखकर उसकी दुर्दशा को दूर किया तथा त्रैलोक्य सुंदर नाम का भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर निर्माण करके शास्त्र मर्यादा से प्रतिष्ठित किया।
★सम्पूर्ण वैदिक, लौकिक तथा तांत्रिक मर्यादा के पालक विश्वविख्यात कीर्तिमान, सर्वज्ञान स्वरूप विश्वरूपाचार्य जिनका अपर नाम सुरेश्वचार्य है को, हम सब लोगों की लोकसम्पत्ति से अभिषिक्त किया।
★भारतवर्ष की चारों दिशाओं में चारों आचार्यों को नियुक्त करके आज्ञा दी, यह चारों आचार्य अपने-अपने पीठ के मर्यादा अनुसार मण्डल की रक्षा करते हुए वैदिक मार्ग को प्रकाशित करें।
◆हम सभी मण्डलस्थ ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि मंडलों के अधिकारी आचार्यों की आज्ञा का पालन करते हुए व्यवहार करें।
★भगवान शंकराचार्य जी की आज्ञानुसार वेद, धर्मशास्त्र, इतिहास, पुराण आदिकों का महत् निर्णय करने में परम् समर्थ श्री सुरेश्वचार्य जो कि उक्त लक्षणों से युक्त हैं, वे सबके व्यवस्थापक हों।
■हमारी राजसत्ता के समान निरंकुश गुरुसत्ता भी ऊपर कही हुई शास्त्र मर्यादा के अनुसार अविचल रूप से कार्य करें।
★मेरे इस पीठ पर परम्पराप्राप्त जन्म से महाकुलीन ब्राह्मण, सन्यासी, सम्पूर्ण वेदादि शास्त्रों के ज्ञाता आचार्य के विशेषताओं से युक्त ही भगवत्पाद शंकराचार्य के पीठ पर बैठने के अधिकारी हों, इसके विपरीत नही।
◆इसप्रकार भगवत्पाद की आज्ञानुसार नियमों में बंधे हुए हम ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि वंश में उतपन्न हुए लोगों को इन आदेशों का परम् प्रेमपूर्वक पालन करना चाहिए।
यही आपलोगों से मेरी भी प्रार्थना है।
विश्व का कल्याण हो।
∆●युधिष्ठिर सम्वत् २६६३ अश्विन शुक्ल १५ “””
सभी धर्मपरायण कुलीन आर्यजनों (ब्राह्म, क्षात्र, वैश्य, शूद्र) को शिवावतार भगवत्पाद जगद्गुरु श्री आद्यशङ्कराचार्यजी के प्रकटोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ…….🙏


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