श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! पाण्डित्य जब गलनें लगा – “उद्धव प्रसंग 12” !!
भाग 2
पर विदुर जी ! अब नन्द बाबा बोले थे …….वो जो बोले ……उससे मेरे अंदर का जितना पाण्डित्य था सब गल गया…………मैं बृहस्पति का शिष्य ! और ये लोग बृजवासी ! वन में रहनें वाले ……….पर !
बालक है ये उद्धव …….तुम इसकी बात का बुरा मत मानना यशोदा !
उठकर रोती हुयी अपनी भार्या को जल दिया था नन्द बाबा नें ।
अपनें श्याम कि तरह ही तो है ये भी……..देखो तो यशोदा !
इसके केश भी घुँघराले……श्याम वर्ण ….पीताम्बरी भी वैसी ही धारण कर रखी है……”लाला कि है”……..बहते आँसुओं को पोंछते हुये मैया बोलीं थीं ।
उद्धव ! एक बात कहूँ !
नन्दबाबा वात्सल्य से भर कर मुझ से बोले ।
तुम देवभाग के पुत्र हो …….मुझे पता है तुम देव गुरु बृहस्पति के पास गए थे विद्याध्यन के लिये…….मुझे तुम्हारे पिता देवभाग नें ही एक बार मथुरा में बताया था……..तुम बुद्धिमान हो ऐसा मैं मानता था ……तुम ज्ञानी हो ऐसा मैं समझता था ……पर तुम तो बालक हो उद्धव ! निरे अबोध……….
तुम क्या बोले अभी ? कि श्रीकृष्ण भगवान है ………फिर तुमनें उसकी भगवत्ता का वर्णन भी किया ………….उद्धव ! यहाँ तक तो ठीक था ………पर आगे तुमनें क्या कहा …………..कि “श्रीकृष्ण को आप लोग भूल जाएँ ? ” उद्धव ! क्या ये तुम्हारी बात शास्त्र अनुकूल है ?
किस शास्त्र में लिखा है कि भगवान को भूलना चाहिये ……..मैने तो आज तक कहीं पढ़ा नही है …………..उद्धव ! तुमनें एक दिक्कत हमारे सामनें खड़ी कर दी है …….वो ये कि …..आज तक हम मानते थे कि श्रीकृष्ण हमारा पुत्र है ……..हम रोते रहे …….हम बिलखते रहे …..कभी कभी हमारे मन में आता रहा …….कि ये मोह है ….पुत्र मोह है ……….और शास्त्र कहते हैं मोह अच्छा नही है ……हम भी यही मानते थे ……….पर रोते थे ……….किन्तु आज तुमनें तो ये अद्भुत बात बता दी ……….कि कन्हैया भगवान है …………तो उद्धव ! जब कन्हैया भगवान है तो फिर उसे भूलनें के लिये क्यों कह रहे हो ? जब हम भगवान को ही भूल जाएँ तो याद किसे रखें ? ओहो ! ये क्या कह दिया था नन्दबाबा नें ! मैं ? इतना बड़ा ज्ञानी ……..पर ये मुझ से क्या हो गया ? मैं क्या बोल रहा था यहाँ ! नन्दबाबा मुझ से पूछ रहे थे …..कन्हैया भगवान है …..तो क्या फिर भगवान को भूल जाएँ ?
मैं क्या कहूँ अब ? मेरे पास कुछ शब्द नही है !
मैं झुक गया था ……मेरा गर्व से उठा सिर इन बाबा और मैया के आगे नतमस्तक हो गया था …………..
मेरा कन्हैया आएगा ? फिर बिलखती मैया का प्रश्न ।
आज आएगा ? आएगा तो माखन माँगेगा …….चलो मैं माखन निकालती हूँ ………वो मैया उठनें लगी थी दधि मन्थन करनें ……..
नन्दबाबा अपनें अश्रुओं को बारबार पोंछ रहे थे ………….वो मेरी ओर देख रहे थे …………कि मैं कुछ तो कहूँ ! कुछ और कहूँ ……कुछ सांत्वना दूँ ? पर …………..मैं क्या कहता ! मेरा पास कहनें के लिये अब कुछ नही था ……………..
मैया यशोदा दधि मन्थन करनें लगी थी …..अर्ध रात्रि हो गयी है ……….
मेरा लाला आएगा …..मेरा राजा आएगा ….मेरा कान्हा आएगा ।
अब रोनें कि बारी मेरी थी ………….मैं उठा और मैया और बाबा के आगे साष्टांग लेट गया ……….मेरे अश्रु बह चले थे ।
शेष चरित्र कल –


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