श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! प्रेम का चमत्कार – “उद्धव प्रसंग 14” !!
भाग 2
विदुर जी ये बात सुनकर बिलख उठे थे…… ये कैसा अद्भुत प्रेम !
मैं यमुना में गया ….स्नान किया ….फिर सन्ध्या करनें बैठा ही था कि –
“हमारा श्याम आया है आपके साथ ?” वो छोटे छोटे बालक आगये थे मेरे पास और मुझ से पूछनें लगे थे ।
“अभी तो नही आये किन्तु,” मैं इतना ही बोला था कि ……..पर मेरे “ना” कहनें का प्रभाव ऐसा पड़ेगा मैने सोचा नही था ।…………..यमुना तुरन्त सूख गयी थी ……..कछुओं कि भरमार …….मैने दृष्टि घुमाई और जहाँ जहाँ तक देख रहा था वो सब कुछ जल गया था …….मानों अभी अभी दावाग्नि लग गयी हो……..इनके प्रेम का ऐसा चमत्कार …..विषम वियोग कि ज्वाला जो इन बृजवासियों के अंदर धधक रही थी ……….उसका प्रभाव प्रकृति पर पड़ रहा था ……..प्रकृति पूरी प्रभावित हो रही थी ……………..
अभी अभी ये कितनें सुन्दर थे ……..देवताओं का रूप भी इनके आगे तुच्छ था ………..पर “नही आये श्याम” ये सुनते ही काला पड़ गया था इनका रूप ………कृश हो गए थे ये, कल्पनातीत ।
पर मुझे घबराहट होनें लगी……..ये क्या है ?
मेरी सन्ध्या छूट गयी थी ……..मेरा गायत्री का जाप छूट गया था ।
पर तभी एक सुन्दर सा ग्वाला आया……..और मुस्कुराते हुये बोला …….ये झुठ बोल रहे हैं ……”.हमारा श्याम तो आगया”……..वो सुनो ……श्याम की बाँसुरी…….तात ! मुझे कोई बाँसुरी सुनाई नही दी …………पर वो सब ग्वाले सुन्दर हो गए पहले कि तरह …….यमुना निर्मल और जल अगाध हो गया …..कछुये गम्भीर जल में चले गए ।
वन फिर से हरा भरा हो गया…..”श्याम आगया” “श्याम आगया” ये सब ग्वाल बाल कहते हुये दौड़ रहे थे ………मैं चेतना शून्य सा देखता रहा उन दौड़ते हुये ग्वाल बालों को ………ऐसा भी होता है ! मेरी बुद्धि मुझ से पूछ रही थी ………हो रहा है देखा नही तुमनें ? मैनें बुद्धि को उत्तर दिया था ।
तात ! ये प्रेम का चमत्कार था…….ओहो ! प्रेम प्रकृति को प्रभावित कर रहा था…….प्रेम नें प्रकृति को बदल दिया था ।
पर हंसी आती है……प्रकृति क्या प्रेम तो पुरुष ( ब्रह्म ) को भी बदल रही थी ……श्रीकृष्ण ऐसे ही तो नही रोते मथुरा में इन लोगों के लिये !
उद्धव के देह में कम्पन शुरू हो गया था……ये प्रेम का ही चमत्कार था ।
शेष चरित्र कल –


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