श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! उफ़ ! नींद भी गई – “उद्धव प्रसंग 15” !!
भाग 1
मैं चकित भाव से सब कुछ देख रहा था …….मैं किस प्रेम देश में आगया …….मैं स्तब्ध था……..सन्ध्या – गायत्री जाप मेरा सब छूट चुका था …….मैं अब क्या करूँ ! मेरे सामनें कल कल बहती कालिन्दी थी ….मैं फिर नित्य कर्म करनें बैठूँ ? और करनें भी बैठा तो मुझ से अब हो सकेगा !
मैं करनें कि स्थिति से बाहर जा चुका था………
तभी मुझे दूर एक दिव्य प्रकाश सा दिखाई दिया…क्या था ये ! कौन बैठे थे वहाँ…..मैं जब पास में जा रहा था तो मुझे उन्हीं सबके सुबुकनें की – विरह – विलाप से त्रस्त गोपियाँ दिखाई दीं ….मध्य में जो ज्योति पुञ्ज दिखाई दिया था वो गोपियों कि प्रमुख श्रीराधिका जु थीं ।
सखी ! श्याम मेरे सपनें में आये ……….
एक सखी बोल रही थी …..अपना सपना सुना रही थी ।
मैं तमाल के झुरमुट में छिप गया…….ताकि वो सब मुझे न देख सकें ……और मैं उनकी बातें सुन लूँ …….मैं छिप गया था तात !
क्या किया सपनें में श्याम नें ? दूसरी सखी नें पूछा ।
मैं यमुना जल भरनें आयी थी …..जल भर भी लिया …..पर सिर में न रख सकी ………इधर उधर देखा …….”श्याम आजाते” ……..ये भाव मन में जैसे ही आया……श्याम आगये ! वो सखी सबको बता रही थी ।
फिर ? फिर क्या हुआ ? तीसरी सखी नें पूछा ।
श्याम आगये और मेरी मटकी उठा दी …..फिर मेरे साथ साथ बतियाते हुये चल रहे थे ……..मैने भी उनसे पूछ लिया – श्याम सुन्दर ! आप तो मथुरा गए थे ना ! फिर यहाँ कैसे ?
वो गोपी आगे कुछ बोल न सकी…….उसके नेत्रों से अश्रु प्रवाह चल पड़े …….कहनें लगे श्याम – सखी ! मथुरा में तू नही है ना ! इसलिये मेरा मन नही लगता वहाँ ! इतना कहकर हिलकियाँ बंध गयीं उस गोपी की ।
दूसरी गोपी कुछ देर बाद बोली …….मैने भी सपना देखा ……
अब तू भी सुना !………अन्य गोपियाँ सुनना चाहती हैं सपना ।
मैं भी यमुना जल भरनें आयी थी, जल भर लिया और लेकर जब चल रही थी तभी मेरे पांव में एक काँटा गढ़ गया……ओह ! मैने निकालना चाहा पर नही निकला……..मैं तो बैठ गयी और रोनें लगी …..तभी श्याम सुन्दर आगये और उन्होंने मेरे पैर का काँटा निकाल दिया …..मैने भी उनसे पूछा था ……..तुम तो मथुरा गए थे फिर कैसे यहाँ आगये ! सखियों ! मेरी ठोढ़ी में हाथ रखकर बड़े प्रेम से सजल नेत्र करके मुझ से बोले ……मथुरा में तू नही है ना सखी ! जहाँ तू है वहीं मैं हूँ । ये कहते हुये ये गोपी भी रोनें लगी …..विलाप करनें लगी ।
मैं ये सब देख रहा था इन गोपियों की व्यथा सुन रहा था ……
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –


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