श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! भ्रमर और श्रीराधा – “उद्धव प्रसंग 16” !!
भाग 2
तू उन्हीं का मित्र है ……….हाँ पक्का तू उन्हीं का मित्र है ……
वो काले तू काला , कपटी वो, तो तू भी कपटी ……..फूलों के रस को निचोड़कर उसे छोड़ देना ये तेरी भी आदत ………ये आदत उनकी है …..पुरानी आदत है उनकी………प्रेम करना ……..फिर अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से फंसा लेना…….फिर उसको ऐसे छोड़ देना जैसे वे जानते ही नही ……..हट्ट ! तू जा यहाँ से भौरें !
फिर दृष्टि नीचे करके श्रीराधारानी बैठ गयीं थीं ।
अरे तू तो धूर्त भी है ……..मैने कहा ना …..तू जा ! भाग यहाँ से
ये तेरी मूँछे ……छि ! जा तू ! मुँह फेर लिया था श्रीजी नें ।
और तेरी इस मूँछ में केशर भी लगा है ……….हट्ट हट्ट हट्ट !
श्रीजी को कुछ रोष भी आ रहा था अब ।
गुन गुन गुन ….( केशर तो सुगन्धित होता है ………और ये केशर मथुरा से लगाकर आया हूँ ……..आप केशर के लिये “छि” क्यों कह रही हैं ! )
श्रीराधारानी नें भ्रमर की ओर देखा …….बड़े रोष में देखा ।
भौरें ! मुझे केशर से क्या दिक्कत ! पर ये केशर जो तू लगा के आया है ना अपनी मूँछ में …..ये केशर कहाँ से लगा है हम सब समझी हैं ।
गुन गुन गुन गुन …..(केशर कहाँ से लगा है आप ही बता दीजिये ) भौरें नें मानों श्रीजी से फिर पूछा ।
भौरें ! मथुरा की वो सुन्दर सुन्दर नारियाँ अपनें वक्ष में केशर लगाती हैं ……..और हाँ हमनें सुना है तेरे मित्र नें उस कुब्जा को भी अपना बना लिया ………..कुब्जा ? वो कंस की दासी ! हाँ, वो लगाती होगी ना अपनें वक्ष में केशर ……फिर तेरा वो मित्र वनमाला पहन कर गया होगा उसके पास ……….उस सौत नें तेरे मित्र को आलिंगन किया होगा ……..अब आलिंगन तो आलिंगन है ………..वक्ष का केशर लग गया माला में ………उन माला के पुष्पों में तू बैठा होगा ……….केशर तेरे मूँछों में लग गया ………और तू सीधा हमारे पास आगया ।
सौत के वक्ष का केशर हमें क्या दिखा रहा है भौरें ! जा तू जा ।
श्रीराधारानी नें अपना हाथ झटक कर कहा था . …….तो वो भ्रमर उड़ कर चला गया !………………लम्बी साँस ली श्रीराधा जी नें ……….और अन्य सखियों से कहा ……….वहीँ से आया था ……उन्हीं नें भेजा था ……..कपटी का मित्र ! अच्छा हुआ गया ।
तात ! मुझे रोना आरहा था अब ………इन महान प्रेमयोगिनियों को मैं क्या समझाऊंगा ?
क्या कहकर समझाऊँ ? मैं तमाल वृक्ष के झुरमुट से देख रहा था महाभाव स्वरूपा श्रीराधारानी को ……और सुन रहा था उनके द्वारा गाये गए प्रेम के इस महागीत को ।
पर ये क्या ! वो भ्रमर तो फिर आगया था….और वही गुन गुन गुन !
शेष चरित्र कल –


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