Explore

Search

September 14, 2025 1:40 am

लेटेस्ट न्यूज़
Advertisements

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! अद्भुत भ्रमरगीत – “उद्धव प्रसंग 17” !!-भाग 2- Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! अद्भुत भ्रमरगीत – “उद्धव प्रसंग 17” !!-भाग 2- Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! अद्भुत भ्रमरगीत – “उद्धव प्रसंग 17” !!

भाग 2

भौरें ! बाली को छुपकर क्यों बाण से मारा तेरे मित्र नें …..क्या ये कपट नही है ! और तो और बेचारी सूर्पनखा के नाक कान काट दिए …क्यों ? क्या अपराध किया था उसनें ? प्रेम प्रस्ताव ही तो लेकर आयी थी वो ……….कि मैं ब्याह करूंगी तुमसे ………ये क्या अपराध है ? स्त्री को , एक अबला को विरूप कर देना कहाँ का न्याय है ! ये क्या कपट नही है …….? ये कहते हुये अत्यन्त रोष से भर जाती हैं श्रीराधारानी ……………और हमारे साथ क्या किया ? तुझे दूत बनाकर भेज रहे हैं वृन्दावन में ………और स्वयं कुब्जा के साथ विहार कर रहे हैं …………कुब्जा ? अपनें मित्र को तू समझाता नही है ……कुब्जा भी कहीं प्रियतमा बनानें योग्य है क्या ?

इतना कहते हुये हिलकियो से रोनें लगीं श्रीराधारानी ………….

गुन गुन गुन ……( आप का दुःख कम होगा, मुझ से अपनें प्रियतम की कुछ चर्चा सुन लीजिये )

दीन भाव से भर गयीं हैं अब श्रीजी ……….हाथ जोड़ती हैं भौरें को …..और कहती हैं ……..हमें उसकी कथा – चर्चा सुनानें से क्या मिलेगा तुझे ?

सुनानी ही है ना ……तो कुब्जा को सुना ………महारानी बना लिया है तेरे यार नें उसे ……..उसे सुना ……खूब गहनों से लाद दिया होगा उसे …..उस सौत को सुना ये सब कथा ……….वो देगी तुझे पुरस्कार ……..हम क्या दें ! हमारे पास क्या है तुझे देंने के लिये ………हे भौरें ! हम तो वन वासिनी हैं ……हम तो वृन्दावन में रहनें वाली हैं ………हमारे पास क्या मिलेगा तुझे ! जा , जा भौरें ! जा !

उद्धव ! कहीं श्रीराधारानी उस भ्रमर के बहानें से तुम्हे तो नही कह रही थीं ………विदुर जी नें उद्धव से कहा ।

तात ! मुझे भी यही लगा………मैं वहाँ से जानें लगा तो श्रीराधारानी नें उस भौरें से कहा……..जा जा मधुप ! जा !

हमें सुनानें से तुझे परिश्रम ही होगा व्यर्थ में ……जा तू !

और सुन !

तात ! मैं रुका ……मैं फिर सुननें लगा श्रीराधारानी की बातें ।

जिस कथा को तू गुन गुन गुन करके सुना रहा है न ! ……….उसमें तो बड़ी मत्तता है …………..हमें देख ! और सुन हमारे प्रियतम के कथा की एक बून्द भी कोई पी लेता है न अपनें कर्णरंध्रों से, तो वो सब छोड़ छाड़ कर चल देता है …….हंसती हैं श्रीराधारानी …….उसका घर वार छूट जाता है…….वो कृष्ण कृष्ण कृष्ण कहता हुआ वन वन जंगल जंगल घूमता है ………हे भौरें ! कृष्ण कथा की एक बून्द से ये स्थिति होती है ………फिर हमें देख ! ना ! ना ! हमनें एक बून्द नही पी …..हमनें तो पूरा का पूरा घड़ा ही पीया है ………सोच ! कितनी आग जल रही होगी हमारे भीतर ………….इतना कहते हुये श्रीराधारानी को प्रेमोन्माद छा गया………और वो अट्टहास करनें लगीं ।

ये सिद्धावस्था थी प्रेम की ………….मैं वहीं जड़वत् खड़ा रहा सोचनें समझनें की शक्ति मेरी धीरे धीरे खतम होती जा रही थी ……प्रेम में क्या समझना और सोचना ………ये प्रेम है प्रेम तात !

विदुर जी इस अद्भुत प्रेम गीत को सुनकर अपनें अश्रु पोंछ रहे थे ।

शेष चरित्र कल –

admin
Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

Leave a Comment

Advertisement
Advertisements
लाइव क्रिकेट स्कोर
कोरोना अपडेट
पंचांग
Advertisements