श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! श्रीराधा का प्रेमोन्माद – “उद्धव प्रसंग 18” !!
भाग 1
बुद्धि का विषय ही नही है प्रेम ……और मैं “बुद्धिमानों में श्रेष्ठ उद्धव” चला था प्रेम को पराजित करनें …..बुद्धि कहाँ समझ पाईँ है प्रेम को ……ये तो शुद्ध हृदय का विषय है ।
श्रीराधारानी जो मेरे नाथ की अल्हादिनी थीं ………विशुद्ध प्रेम का साकार रूप थीं…….उनका मैने प्रेमोन्माद देखा…….कभी कभी लग रहा था कि मैं रोऊँ ! दहाड़ मारकर रोऊँ ! फिर बुद्धि आड़े आजाती थी तो मैं भी कमर कसकर ज्ञान का टिमटिमाता दीया जलानें का प्रयास करता …..पर जहाँ प्रेम रूपी भास्कर का प्रचण्ड प्रकाश समस्त ब्रज को आलोकित कर रहा हो वहाँ मेरा दीया !
उद्धव यमुना किनारे विदुर जी को “श्रीकृष्णचरितामृतम्” सुना रहे हैं ………और इस समय प्रसंग, उद्धव के स्वयं का है …..इसलिये प्रेम भाव से ये भी भरे हुये गदगद् हो बोल रहे हैं ।
चारों और से गोपियों द्वारा घिरी हुयी श्रीराधारानी मध्य में बैठी हैं ….इन सबके चर्चा का विषय एक मात्र इनके प्रियतम श्रीकृष्ण ही हैं ।
क्या क्या क्या !
इस बार श्रीराधारानी के कानों के पास आकर वो भ्रमर “गुन गुन”करनें लगा था ………..तब श्रीराधारानी का वो प्रेमोन्माद प्रकट हुआ ।
क्या क्या क्या ! फिर बोलना भौरें ! क्या कह रहा है तू ?
क्या ! तू हमें मथुरा ले जानें आया है ? तेरे मित्र नें तुझे यहाँ भेजा है ?
हमें बुलाया है ?
गुन गुन गुन ……( हाँ, आपको आपके प्रियतम नें बुलाया है )
जा तू यहाँ से ……..क्यों तेरे मित्र को कुब्जा से फुर्सत मिल गयी ?
और वैसे भी जैसे तेरे मित्र रस के सिद्धान्त को नही जानते ……..तू भी नही जानता……..ऐसे दीन हीन होकर हम क्या जानें लगीं तेरे मित्र के पास ………हम जो भी हैं यहाँ हैं …….वियोगिनी, पागलनी …..पर मथुरा में जाकर ऐसी नही रहेंगी……और सौत के सामनें तो बिलकुल नही ।
फिर कुछ देर में बोलीं श्रीराधारानी – ओ भौरें ! एक बात तो बता क्यों बुला रहे हैं हमें तेरे मित्र ? हम वहाँ जाकर करेंगी क्या ? अच्छा ! तू ही सोच मथुरा की स्त्रियों से घिरे रहेंगे वो………कुब्जा उन्हें छोड़ देगी ? श्रीराधारानी फिर हंसती हैं …..सूखी हंसी …………भ्रमर ! तू जा और कह दे कि गोपियाँ नही आना चाहतीं मथुरा ………वृन्दावन छोड़कर हम कहीं न जाएँगी …….हाँ तेरे मित्र को आना हो तो आजाये ।
वो भ्रमर तो उड़ कर चला गया………….श्रीराधारानी उसे देखती रहीं ……उड़ा भी तो वो मथुरा की ओर ही था ।
हे प्रिया जु ! आपनें जो इससे बातें कही हैं ये बातें अगर जाकर श्याम सुन्दर को भ्रमर नें कह दिया तो ?
एक गोपी नें श्रीराधारानी के कान में कह दिया था ।
कह दिया तो ? चौंक गयीं श्रीराधारानी ………उस गोपी की ओर देखकर पूछा ……….कह दिया तो ?
बुरा मान जायेंगे ना श्याम सुन्दर !
ओह ! बुरा मान जायेंगे ? श्रीराधारानी को ये सुनते ही उन्माद चढ़ गया ………..वो उठ खड़ी हुयीं चारों ओर देखनें लगीं …….उस भ्रमर को रोको ……..वो जानें न पाये प्रियतम के पास ……….
श्रीराधारानी दौड़ीं ……..इधर उधर ……..उस भौरें को देखनें के लिये …..उसे रोकनें के लिये …….पर कहीं नही दिखाई दे रहा वो ।
व्याकुलता में ……….श्याम सुन्दर को ये सारी बातें कह देगा ?
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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