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September 13, 2025 11:48 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! श्रीराधा का प्रेमोन्माद – “उद्धव प्रसंग 18” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! श्रीराधा का प्रेमोन्माद – “उद्धव प्रसंग 18” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! श्रीराधा का प्रेमोन्माद – “उद्धव प्रसंग 18” !!

भाग 2

बुरा मान जायेंगे ना श्याम सुन्दर !

ओह ! बुरा मान जायेंगे ? श्रीराधारानी को ये सुनते ही उन्माद चढ़ गया ………..वो उठ खड़ी हुयीं चारों ओर देखनें लगीं …….उस भ्रमर को रोको ……..वो जानें न पाये प्रियतम के पास ……….

श्रीराधारानी दौड़ीं ……..इधर उधर ……..उस भौरें को देखनें के लिये …..उसे रोकनें के लिये …….पर कहीं नही दिखाई दे रहा वो ।

व्याकुलता में ……….श्याम सुन्दर को ये सारी बातें कह देगा ?

फिर तो वो कभी वृन्दावन नही आएंगे ……..

धड़ाम से धरती पर गिरीं श्रीराधारानी ……….रोको उस भ्रमर को …..जानें न पाये मथुरा ……यही बोल रहीं थीं ।

गोपियों नें सम्भाला है श्रीराधारानी को ……………

पर ये क्या ! गुन गुन गुन गुन …….वो काला भौरां फिर आगया था वहाँ पर ……..और श्रीराधारानी के चरणों को छूनें लगा था ।

उसे देखते ही उठकर बैठ गयीं श्रीराधा ……………अपनी चुनरी बिछा दी धरती पर ……..फिर बड़े प्रेम से बोलीं …….हे भ्रमर ! बताओ ना ! हमारे श्याम सुन्दर मथुरा में कुशल तो है ना ? प्रसन्न तो है ना ?

सुन भ्रमर ! बता ना ! हमारी कभी याद करते हैं वे ? कभी भी !

बता ना ! नेत्रों में फिर जल भर आया श्रीराधारानी के ……….

कभी भी ? किसी भी प्रसंग में ! बता ना भ्रमर ! बता ना !

फिर अपनें आँसुओं को पोंछकर हँसनें लगीं ………

मैं भी पागल ही हूँ ……हमको भला मथुरा में वो क्यों याद करनें लगे ! हमारे पास ऐसा कोई गुण ही कहाँ है ? न हम उन्हें रिझाना जानती थीं …..न उन्हें प्रसन्न रखना जानती थीं…..फिर क्यों हमें याद करनें लगे वे !

पर …….श्रीराधारानी उस भ्रमर से बातें कर रही हैं ……….बातें करते हुये रुक जाती हैं फिर बोलना शुरू कर देती हैं ….

” हे भ्रमर ! कभी……कोई फूलों की माला अगर बेकार बनाई हो किसी मथुरा की नागरी नें, तो श्याम नें हमें याद किया ? और और सुन ! सुन भ्रमर ! वो तो राजसी ठाट बाट में रहते हैं न………नाच गाना भी उनके यहाँ होता होगा ……..नृत्यांगनाएं आती होंगी नृत्य दिखाती होंगी ……..उनके नृत्य को देखते हुये कभी तुझ से कहा हो ………एक ये है नागरी ……और एक वो थीं ………वृन्दावन की राधा …….जिसे न नाचना आता था न रूप था न सौन्दर्य …….बस ऐसे ही मटकती थी …..टेढ़ी मेड़ी…..ये कहकर कभी हंसते हैं मेरे प्रियतम ! भ्रमर ! अगर हमें ऐसे भी वो याद करते होंगे ना तो भी हम अपनें आपको भाग्यशालिनी मानेगी……..कैसे भी हो हमें याद तो किया…….बता ना !

बता ! क्या वे आएंगे यहाँ ? क्या वो फिर अपनें अधरों का रस हमें पिलाएंगे ……….अधरामृत पिलाकर क्या फिर से हमें जीवित करेंगे ? बता ना भ्रमर ! बता ! श्रीराधारानी ये कहते हुये विरह सागर में डूब गयीं थीं……..उनको अब देह भान नही था………उन्हें कुछ भी भान नही था ……..बस – श्याम श्याम श्याम !

उद्धव कहते हैं……हे विदुर जी ! मुझे ये सब देखकर घबराहट होनें लगी थी………मैं क्या करूँ अब ?

क्यों की वो भ्रमर तो उड़ गया था…………ओह !

शेष चरित्र कल –

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