श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! प्रेम की पाती कैसे बांचें – “उद्धव प्रसंग 20” !!
भाग 2
कुछ देर बाद रोते हुये वो पाती लौटा रही थीं गोपियाँ ………उद्धव चकित रह गए ……..वापस लौटा रही हो ? अरे ! तुम्हारे प्रियतम नें लिखा है क्यों लौटा रही हो पाती को ?
उद्धव ! अब तुम ही पढ़कर सुनाओ कि इसमें हमारे प्यारे नें क्या लिखा है ! पढ़ो उद्धव ! तुम ही पढ़ो ! गोपियों नें पाती लौटा दी थी ….और उद्धव से ही पढ़नें का आग्रह करनें लगी थीं ।
अरे नही …..किसी के लिये किसी नें पत्र लिखा है ……..और कई बातें प्रेमियों में गुह्य होती ही हैं …….सबको नही बताया जाता ……..मुझे भी तो नही बताया मेरे स्वामी नें …..फिर मैं कैसे पढूँ किसी का पत्र ।
उद्धव नें गोपियों को कहा, और पत्र अपनें पास रखनें को भी कहा ।
उद्धव ! अब क्या गुह्य ? सबकुछ उजागर है………हाँ हमारी दुर्दशा तो ऐसी हो गयी है कि हम पत्र को अपनें पास रख भी नही सकतीं …..पढ़नें की बात तो छोडो ।
क्यों ? उद्धव नें पूछा था ।
अब क्या बताएं उद्धव ! हम अगर पढ़ें पाती को ……..तो हमारे आँसू बह जाएंगे…….कज्जल मिश्रित अश्रुओं से ये पाती भींग जायेगी …….प्यारे के लिखे अक्षर सब मिट जायेंगे…….और उद्धव ! अगर हम इस पाती को अपनी छाती से लगा लें…….प्यारे नें लिखी है कहकर …….तो सच कहतीं हैं ….ये पाती अभी जल कर राख हो जायेगी ।
सुलग रही है आग इस हृदय में, विरह की आग इसे थोड़ी चिंगारी ही तो चाहिये ………..उद्धव ! हम क्या करें ! ये कहते हुये सब गोपियाँ दहाड़ मार कर रोनें लगीं थीं ।
उद्धव के हाथों में अब श्याम सुन्दर की पाती थी…….अब इन्हें ही सुनाना था……अपनें आपको सम्भाला उद्धव नें ……….पत्र में जो लिखा था उसे एक बार देख लिया था …….ज्ञान मिश्रित सन्देश था श्रीकृष्ण का …..ये देखकर उद्धव को अच्छा लगा ………..इसमें तो मैं अपना योग – ज्ञान भी जोड़कर गोपियों को बता सकता हूँ । …..अब उद्धव तैयार हैं पाती के माध्यम से अपना ज्ञान बघारनें के लिए ।
शेष चरित्र कल –


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