श्रीकृष्णचरितामृतम्–
!! सुनहुँ गोपी हरि को सन्देश – “उद्धव प्रसंग 21” !!
भाग 1
हे गोपियों ! दुःखी मत हो ……दुःखी होनें से कोई लाभ नही है ।
उद्धव गोपियों को श्रीकृष्ण का सन्देश सुनानें लगे थे …….हजारों गोपियाँ बैठ गयीं थीं अपनें अपनें कपोलों में हाथ धरकर …..और बड़े ध्यान से सुन रही थीं ।
दुःखी क्यों होना , दुःखी होनें से लाभ क्या ?
हे मेरी प्यारी बृजांगनाओं ! मेरी बात अब ध्यान से सुनो ………
मेरा सन्देश भेजनें का कारण इतना ही है …कि …… मैनें तुम लोगों से कहा था मैं आऊँगा ……..मैं शीघ्र मथुरा से लौटकर आऊँगा …….पर मैं नही आपाया ………..इस बात का मुझे खेद है ।
इस बात से तुम मुझ पर अप्रसन्न भी होगी ……….और मेरे वियोग के कारण तुम दुःख के भँवर में भी फंस गयी होगी ………पर एक बात मैं कहता हूँ हाँ , लौकिक दृष्टि से देखा जाए तो मैं दूर हूँ ……..तुम्हारा और हमारा वियोग है …….पर वास्तविकता में ऐसा नही है …..अब तुम लोग कहोगी ……( ये बात तात ! मैं अपनी ओर से व्याख्या कर रहा था – उद्धव विदुर जी को बोले ) दूर तो हैं तुमसे श्याम सुन्दर ….. पर नही दूरी द्वैत में है …..अद्वैत में कहाँ दूरी ! जहाँ दो प्रतीत होते हैं वहीँ दुःख विषाद घना छाया रहता है …..पर जहाँ अद्वैत नही है ………वहाँ न दुःख है न विषाद ……क्यों की वियोग नही है ना ! यही वास्तविकता है …….हे मेरी गोपियों ! आत्मा के रूप में हम सब एक हैं ……सब एक हैं यहाँ द्वैत है ही नही ……….।
अब तुम कहोगी ……भिन्न भिन्न तो सब है ………द्वैत तो है ही ….नन्दगाँव बरसाना गोवर्धन रावल ये सब भिन्न भिन्न नही हैं क्या ?
उद्धव बोले ………इसका उत्तर ये दिया है श्रीकृष्ण नें ………उद्धव व्याख्या कर रहे हैं ………..गोपियाँ बस सुन रही हैं ……बड़े ध्यान से सुन रही हैं …………….
इस को ऐसे समझो ……..हे मेरी गोपियों ! अण्डज, स्वेदज से उत्पन्न होनें वाले जीव , मनुष्य, नाना प्रकार के अन्य जीव …वृक्षादि …..इन सबमें क्या एक आत्म तत्व ही विद्यमान नही है ? उद्धव पूछते हैं गोपियों से …….पर गोपियाँ न हाँ कहती हैं न ना कहती हैं ……बस सुन रही हैं ।
फिर भिन्नता कहाँ रही ? जब सबमें एक आत्म तत्व ही है ……फिर द्वैत कहाँ रहा ? ये सब मिलन और वियोग मिथ्या है ….झूठ है …….क्यों की जो मिलता है ….वो बिछुडता भी है ………एक रस एक समान नित्य रहनें वाला तो आत्म तत्व ही है ……..है ना ?
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –
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