श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! सुनहुँ गोपी हरि को सन्देश – “उद्धव प्रसंग 21” !!
भाग 2
फिर भिन्नता कहाँ रही ? जब सबमें एक आत्म तत्व ही है ……फिर द्वैत कहाँ रहा ? ये सब मिलन और वियोग मिथ्या है ….झूठ है …….क्यों की जो मिलता है ….वो बिछुडता भी है ………एक रस एक समान नित्य रहनें वाला तो आत्म तत्व ही है ……..है ना ?
उद्धव प्रसन्न हो रहे हैं …..उन्हें लग रहा है ….गोपियाँ इतनें ध्यान से सुन रही हैं ……तो स्वीकार भी कर रही होंगी …………उद्धव अपनी ज्ञान की पोथी भी खोलनें लगे ………..श्रीकृष्ण का सन्देश सुनाते हुए अपना ज्ञान भी बीच बीच में प्रेषित करना नही भूलते ।
तीन ही गुण हैं …..प्रकृति के ये तीन गुण होते हैं इन तीनों गुणों से ये जीव बंधा हुआ है ………सत्व रज तम …..सत्वगुण जब बढ़ जाता है तब मन शान्त होता है ….रजोगुण के कारण कर्म में जीव की प्रवृति होती है ….और तमोगुण के कारण जीव मूढ़ सा रहता है ……..इसलिये सत्व गुण को अपनाओ ……..सत्व के लिये ध्यान करो …आँखें बन्द करो ….साँस को देखो ……….ये योग है ………या फिर समझ लो …..कि तुम और हम सब चराचर एक आत्मा ही है …….और आत्मा ही परमात्मा है ………..जब सब एक है तो अद्वैत घटित हुआ की नही ?
अब तुम पूछोगी कि फिर हम बन्धन में क्यों पड़ जाते हैं ?
तो इसका उत्तर ये है कि …मन के कारण ……..सब कुछ मन की कल्पना ही है …………मिथ्या जगत , मिथ्या पदार्थ में ही ये मन जाता है ……..और उस मन के पीछे हम जाते हैं ……….फिर हम रोते हैं ……..क्यों की वो वस्तु तो मिथ्या है……..और हमें मिलेगी नही ….और मिलेगी भी तो कुछ समय के लिये …….पर हमारी आत्मा जो है……वो तो सदैव है ….सदैव रहेगी …………हम सब वही हैं …….फिर अपनें आपको देह मानकर हम क्यों दुःखी सुखी हों ………….
हे गोपियों ! इसलिये तुम लोगों से मुझे यही कहना है कि ……..
कोई किसी से अलग नही है ……..सब एक ही है……..इस मेरे ज्ञान को जीवन में उतारो तुम्हे शान्ति मिलेगी ।
इतना कहकर उद्धव चुप हो गए थे ………..क्यों की सन्देश पूरा हो चुका था ……..पर गोपियाँ अभी भी उद्धव की ओर ही देख रही थीं ….कपोल में हाथ धरके …………..।
शेष चरित्र कल –
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