श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! उद्धव की प्रेम दीक्षा – “उद्धव प्रसंग 26” !!
भाग 1
मैने जब बरसाना में अपनें पाँव रखे ….ओह ! कितनी कोमल भूमि थी वो ….और वहाँ की ऊर्जा , विशुद्ध प्रेम की ऊर्जा …….थोड़े बहुत ज्ञान के संस्कार बचे भी थे मेरे तो वो यहाँ आकर सम्पूर्ण नष्ट हो गए थे ।
गहवर वन ……..मैने दर्शन किये ……..मेरे ऊपर ललिता सखी की पूरी कृपा थी ……उन्होंने मुझे हर स्थान दिखाया ……..साँकरी खोर …..प्रेम सरोवर …….प्रेम सरोवर में स्नान करनें की मेरी स्वयं इच्छा हुयी थी ….जो मैने ललिता सखी से कहा …….तो वो इतना ही बोलीं …….ये प्रेम सरोवर है …….हे उद्धव ! जो डूबा वो किसी के काम का नही रहता ।
ललिते ! मुझे अब किसी का रहना भी नही है …….मेरे ठाकुर श्रीकृष्ण हैं तो मेरी ठकुरानी हैं श्रीराधारानी ।
मैनें स्नान किया…….मुझे बार बार रोमांच हो रहा था ……”श्याम श्याम श्याम” मेरे रोम रोम से प्रकट हो रहा था ।
मैं उन्मत्त हो नाचनें लगा…….ललिता सखी नें मुझे पकड़ कर श्रीजी के सामनें खड़ा कर दिया था …..अहो ! वो श्रीकृष्ण की आल्हादिनी ! प्रेम महाभाव की साकार रूप …..श्रीराधारानी ।
वो कुञ्जों में बैठीं थीं …….आज वो शान्त थीं ………दृष्टि नीचे करके किसी भाव देश में विचरण कर रही थीं ।
ललिता सखी नें मुझे आगे जानें के लिये कहा…..मैं तनिक आगे बढ़ा ….और उनके चरण कमल का बिना स्पर्श किये दूर से प्रणाम किया था ।
कौन ? दृष्टी ऊपर करके रासेश्वरी मुझ से पूछ रही थीं ।
“मैं श्रीकृष्ण सखा उद्धव , मथुरा से”……..परिचय तो देना ही था पर परिचय देनें से तो विरहाकुल हो उठीं थीं क्षणों में ही श्रीजी ।
हा श्याम ! हा श्याम ! कहकर पुकारनें लगीं थीं ।
कैसे हैं मेरे श्याम सुन्दर ! कैसे हैं मेरे प्राणेश ! उद्धव ! कुछ तो बताओ ! हिलकियों से रो रोकर वो मुझ से पूछनें लगीं थीं ।
पर विदुर जी ! मुझ से एक अपराध बन गया ………मैने तो इन हरिप्रिया जु को कुछ सांत्वना मिलेगी कहकर ये सब कहा था …….पर- ….उद्धव कुछ देर अश्रु बहाते और पोंछते रहे …….फिर बोले ……तात ! ठीक ही हुआ ……..क्यों की मुझे श्रीराधारानी से प्रेम की दीक्षा जो मिल गयी ।
प्रेम क्या है ? प्रेम क्या होता है ! मुझे समझा दिया था श्रीजी नें ।
क्या कहा तुमनें ऐसा उद्धव ? फिर तुम्हे कैसे प्रेम की दीक्षा मिली …..बताओ ! मैं भी आतुर हूँ उस अद्भुत प्रेमपूर्ण प्रसंग को सुननें के लिये ।
विदुर जी नें उद्धव से प्रश्न किया था ।
हे हरिप्रिये ! आप इस तरह विलाप न करें ……..आप इस तरह अपनें आपको कष्ट न दें ……न रोयें ………आप ऐसा कतई न समझें कि श्रीकृष्ण आपको भूल गए हैं ……..या वो आपको स्मरण ही नही करते ……हे कृष्ण प्रिये ! उनके सामनें आपका कोई नाम भी ले लेता है ना तो वो बिलख उठते हैं ………कभी कभी तो देह भान भुलाकर, हा राधा ! हा राधा ! पुकारनें लगते हैं ……..हे स्वामिनी ! मैं आपके सामनें झूठ नही कहूँगा ……….वो आपका स्मरण करते ही अलग ही हो जाते हैं मथुरा के वो कहीं से नही लगते ……….वो विशुद्ध वनवासी होकर यमुना के किनारे किनारे चलते रहते हैं और आपका नाम पुकारते रहते हैं । हे सर्वेश्वरी ! माता देवकी भोजन देती है तो उनसे वो भोजन नही किया जाता ……..नींद नही आती उन्हें ……आपका स्मरण करके कहते हैं……मेरी राधा कैसी होगी ? मेरी राधा मेरे बिना कैसे रहती होगी ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल-
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