श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! मथुरा लौटे उद्धव – “उद्धव प्रसंग 29” !!
भाग 1
नित्य की तरह मैं ब्रह्ममुहूर्त में उठ गया था ……..पर बाबा और मैया यशोदा रात भर सोये नही थे …….वो आपस में बातें ही करते बैठे रहे ।
मैया यशोदा तो मुझे रात में दो तीन बार देखकर भी गयीं थीं ….मेरी नींद कच्ची है ……थोड़ी आहट में ही खुल जाती है ।
ये उद्धव हमारे कन्हैया की तरह सोता है ………रंग भी हमारे कन्हैया जैसा है ……….हाँ , ये थोडा गम्भीर है ……..कन्हैया चंचल ।
सो जाओ ना ! बाबा मैया को कहते थे …….तब मैया कहती…….माखन निकालना है कन्हैया के लिये ……..मैने कह दिया है कन्हैया को जाकर देना …….मैं माखन निकाल लेती हूँ ……..वो उठनें लगतीं तो बाबा कहते …….अभी अर्धरात्रि है …….. ओह ! फिर रुक जातीं यशोदा ………।
पता नही कब आएगा कन्हैया ?
मैया कहतीं तो बाबा उत्तर देते …….राजनीति से घिर गया मथुरा में जाकर अपना कन्हैया………….हम क्या जानें राजनीति ! बस रोना आता है हम बाबरों को तो ……..पर बेचारा लाला कितनें संकट से घिरा है तुम्हे पता है !
कैसा संकट जी ? मैया बिलख कर पूछती ।
तो बाबा बताते ………..जरासन्ध रोष में है मथुरा के प्रति !
ये जरासन्ध कौन है ? आप लोग जाकर उससे बचाकर ले आइये ना लाला को ! हमारी लाठी क्या काम देंगी उन शस्त्र अस्त्र के सामनें ………..हम क्या रक्षा कर सकेंगे अपनें लाला की !
ये बात आपको उद्धव नें बताई ? मैया पूछती है ।
हाँ उसकी बातो से समझ में तो आही जाता है ना !
क्या कह रहा था बताइये ना !
कह रहा था ……..हम मथुरा वासी चिंतित हैं कहीं जरासन्ध आक्रमण न कर दे मथुरा के ऊपर …. … …
तो ले आइये अपनें लाला को ! जैसे भी हो हम उसे छिपाकर कर रखेंगे …..जरासन्ध पता भी नही लगा पायेगा ………मैं छुपाउंगी अपनें लाला को ……….एकाएक उन्मादिनी हो उठती हैं यशोदा मैया ।
बाबा समझाते हैं……..यशोदा मैया रोती रहीं ।
मैं उठा , इस तरह पूरी रात बीत गयी थी ।
मैया यशोदा मन्थन कर रही थीं , दधि मन्थन ।
मैने उठकर मैया के चरण वन्दन किये ……बाबा तो यमुना स्नान को जा चुके थे …..मैं भी चला गया और स्नानादि – सन्ध्या गायत्री करके लौट आया था नन्दभवन ।
मैं जब नन्दभवन आया तो पूरा बृजमण्डल ही भवन के आँगन में उपस्थित था …….सखा आदि सब खड़े थे मेरी प्रतीक्षा में ।
श्रीराधारानी पधारीं थीं ……उनकी अष्ट सखियाँ साथ में ही थीं ।
ये मोर का पंख ! वो संकोच करती हुयी मुझे देनें लगीं …… उन्होंनें मुझ से कहा – उद्धव ! हम वनवासी लोग है वृन्दावन में रहनें वाले हैं तुम्हारे मथुराधीश को हम दे ही क्या सकतीं हैं …..ये मोर का पंख उनके मस्तक पर धारण करा देना ………..और सुनो ! पीले रेशम के वस्त्र पर लिपटी बाँसुरी मुझे दी ………ये उन्हें दे देना …..।
इनके नेत्रों में अश्रु भरे हुए थे ……..मैं आज रोऊँगी नही ………हंसते हुये बोलीं थीं वो करुणा मयी ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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